बिजली की समस्या को हमेशा लोग आम मानते आए हैं, जिस कारण इस पर कोई बात नहीं करता है। जबकि बिजली की समस्या एक बेहद बड़ी समस्या है, क्योंकि बिजली के ज़रिये ही अनेकों साधन जुड़े होते हैं। ऐसे भी किसी भी राज्य की तरक्की तभी हो सकती है, जब वहां की बिजली दुरुस्त हो।
बिहार हमेशा से अनेक कारणों से चर्चा में बना रहता है, क्योंकि यहां की जनता अनेक कारणों से परेशान रहती है मगर परेशानियों का कोई हल नहीं मिलता है। बिहार में बिजली की स्थिति पर गौर करने पर ज़मीनी हकीकत सामने आती है।
फाइलों में कलम की सुगंध में जाने से बेहतर है कि ज़मीनी हकीकत पर बात करना।
मुज़फ्फरपुर के बिजली कर्मचारी नहीं देते हैं जवाब
मुज़फ्फरपुर का ही वाकया है कि यहां घंटों बिजली नहीं रहती है। अगर बिजली आ भी जाती है, तो वह किसी काम की नहीं होती क्योंकि वोल्टेज की समस्या भी एक अहम समस्या होती है। मुज़फ्फरपुर में कई दफा बिजली की समस्या की शिकायत करने के लिए कॉल और मैसेज करने पर भी कोई ज़वाब नहीं मिलता है।
ऐसे तो पूरा मुज़फ्परपुर बिजली की समस्या से ग्रसित है मगर मुज़फ्फरपुर के चंदवारा की हालत बहुत खराब रहती है।
यहां के जूनियर इंजीनियर समेत अन्य कर्मचारी कोई भी जवाब नहीं देते हैं। बिजली शिकायत के लिए जारी नंबर पर कॉल करने पर भी कोई जवाब नहीं दिया जाता है। साथ ही हेल्पलाइन नंबर हमेशा व्यस्त मिलता है और अगर कॉल उठा लिया जाए तो बिना सुने ही काट दिया जाता है।
मुज़फ्फरपुर में बिजली की ज़मीनी हकीकत यही है कि जनता सवाल पूछते रहती है मगर बिजली कर्मचारी अपनी दूनिया में व्यस्त रहते हैं।
बिहार में बिजली के लिए आवंटित अरबों रुपये कहां गए?
बिहार के ऊर्जा मंत्री बिजेंद्र यादव ने पिछले साल कहा था कि राज्य की कुल बिजली आपूर्ति क्षमता 10,930 मेगावाट से बढ़कर 11,346 मेगावाट की जाएगी ताकि प्रदेश के लोगों को निर्बाध एवं गुणवत्तापूर्ण बिजली मिल सके।
साथ ही उन्होंने बिहार विधानसभा में वित्तीय वर्ष 2019-20 के लिए ऊर्जा विभाग के 88 अरब 94 करोड़ 31 लाख 85 हज़ार रुपये बिजली की स्थिति को सामान्य करने लिए आवंटित हुए थे मगर अफसोस इस बात का है कि लोगों को निर्बाध बिजली नहीं मिल सकी। इतना सारा आवंटित पैसा आखिर कहां चला गया, यह बात समझ से परे है।
बिजली नहीं मतलब वोट नहीं!
बिहार के मुख्यमंत्री अर्थात सुशासन बाबू ने कहा था कि अगर वो प्रदेश में बिजली की स्थिति में सुधार नहीं ला सके तो 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में वोट मांगने के लिए लोगों के बीच नहीं जाएंगे।
नीतीश कुमार ने वादा किया था कि अगर गाँवों में बिजली पहुंचाएंगे तो वोट मांगने जाएंगे मगर जब शहरों की ही हालत खराब है, तो गाँवों के हालत का अंदाज़ा आप लगा सकते हैं।
बिहार को बढ़ानी होगी अपनी क्षमता
एक आंकलन के अनुसार, 2019-20 में 2309 करोड़ यूनिट बिजली खपत होने का अनुमान है। 2020-21 में 2697 करोड़ यूनिट तो वहीं 2021-22 में 3230 करोड़ यूनिट बिजली खपत होने का अनुमान किया गया है। इन आंकड़ों में शामिल होने के लिए बिहार को बिजली क्षमता बढ़ानी होगी। इसमें बिजली उत्पादन के अन्य तरीकों को शामिल करना होगा ताकि बिजली की समस्या का हल सामने आ सके।
साथ ही बिजली बोर्ड के कर्मचारियों को जनता के सवालों का जवाब देना चाहिए। आय दिन होने वाली इस परेशानी का उपाय सरकार के साथ-साथ स्थानीय कर्मचारियों को भी ढ़ूंढ़ना होगा क्योंकि स्थानीय स्तर पर भी अनेकों ट्रांसफार्मर खराब और जर्जर हालत में पड़े रहते हैं।
बिजली के गुज़रने वाले तारों की समस्या होती है। समस्याएं अनेक हैं मगर अब इन्हें हल करने की दिशा में आगे बढ़ाना होगा ताकि जनता को परेशानियों का सामना ना करना पड़े।