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“रगों में रक्त की तरह दौड़ती कविता”

यह केवल कविता है
जो रगों में रक्त की तरह दौड़ती है
आंखो से तेज़ाब की तरह बहती है।

यह केवल कविता है
जिसने उठा रखा है कंधो पर कवि का बोझ
विचारों की एक माला
जिसे वह जपता है।

यह केवल कविता है
जो बाज़ार में अकेली तनकर खड़ी है
बेबाक और निडर
भावनाओं की परछाईं उतारती है
समाज के दर्पण से।

यह केवल कविता है
जो कहानी में से सार ढूंढती है
भावों की मंज़िल को
रूह के करीब लाती है।

यह केवल कविता है
पर कलम से कागज़ ही नहीं
हृदय पर भी छप जाती है
और कायम रखती है
अपने निशान।

यह केवल कविता है
जो भांप लेती है
कवि का मन
एक माँ के भांति
बनती है उसकी
अभिव्यक्ति का माध्यम।

यह केवल कविता है
जिसे अपने लम्बाई में नहीं बढ़ना
अपितु फैलना है चारों दिशाओं में
शाखाओं की भांति।

यह केवल कविता है
जो प्रसन्नता देती
प्यासे को पानी के समान
और धूप में छांव की तरह।

यह केवल कविता है
सिर्फ लिखे जाने कि लिए नहीं
कहानी जैसे भूले जाने के लिए तो हरगिज़ नहीं
पढ़े जाने के लिए और
ताबीज़ की तरह
देह से लगाकर पहने जाने कि लिए बार बार।


By- भाव्या पांडे

नोट: इस कविता को प्रतिसंधि फाउंडेशन के कॉन्टेस्ट Waging Wordsके तहत प्रकाशित किया गया है। प्रतियोगिता में भाव्या पांडे पहले स्थान पर रही हैं।

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