समाज आज इतना ज़रूरी हो गया है कि किसी की क्या चाहत है चाहे तो उसको पूरी तरह से नज़रअंदाज़ कर दें। लोगों की मानसिकता को संतुष्ट करना आवश्यक क्यों है?
आप चाहें तो संतुष्ट हों या ना हों, इससे किसी को कोई मतलब नहीं। आप मर भी जाएं तब भी कोई फर्क नहीं पड़ता। फिर वही तकिया कलाम “लोग क्या कहेंगे? लोग क्या समझेंगे?”
समाज की सोच से उलट है हकीकत
इंसान क्या खुद अपने मन से अपनी ज़िंदगी नहीं जी सकता? मुझे शादी नहीं करनी तो नहीं करनी, मुझे शादी का बंधन पसंद नहीं जो समाज को ठीक दिख रहा होता है। सबकी अपनी अपनी प्राथमिकताएं होती हैं। सबको अपनी मर्ज़ी के मुताबिक ज़िन्दगी जीने का अधिकार है। किसी को आप ज़बरदस्ती किसी भी चीज़ के लिए फोर्स नहीं कर सकते।
बेशक आप अच्छे माता-पिता हैं, आप अपने बच्चे की भलाई सोचते हैं। आप सोचते हैं कि आपके बच्चे की शादी हो जाए तो समझो उसकी ज़िंदगी पूरी हो गई? नहीं, बिल्कुल भी नहीं, आप ऐसा सोचते हैं लेकिन हकीकत कुछ और ही होती है।
समलैंगिकता को छुपाने पर क्यों मजबूर होते हैं लोग?
मेरा लेख आज उन सभी लोगों के लिए है जो अपनी आत्मसंतुष्टि के कारण दूसरों को बलि का बकरा बनाते हैं। किसी भी समलैंगिक इंसान को प्रताड़ना क्यों झेलनी होती है? आपके बच्चे ने आपको नहीं बताया कि वह समलैंगिक है, उसने आपको क्यों नहीं बताया यह आपकी कमी है।
आपने उसको ऐसा वातावरण नहीं दिया जिससे वह आपसे अपने मन की हर बात कह सके। उसको बचपन में ही सिखा दिया जाता है कि आप लड़की हों या लड़के, इसके अलावा वह दूसरा नाम ही नहीं लेते हैं।
क्या आप अपने बच्चों से यह पूछ सकते हैं कि क्या आप किसी लड़के या लड़की से प्यार करते हैं? अपने बच्चों को ऐसे वातावरण में ढालें जहां वह सहज हो और आपसे कैसी भी बात कर सके, वह आपको समझ सके और आप उसको समझ सकें।
क्यों समलैंगिक लोगों को समझने की कोशिश नहीं की जाती है?
समलैंगिक लोगों के लिए सबसे कठिन समय तब होता है जब वह पढ़ रहे होते हैं। जब वह टीनएज़र होते हैं लेकिन उससे भी ज़्यादा मुश्किल वक्त वह होता है जब उनकी शादी की उम्र हो जाती है।
वह इस योग्य हो जाता है कि परिवार वाले उसके लिए जीवनसाथी ढूंढना शुरू कर देते हैं। यही वह समय होता है जब समलैंगिक लोगों को ऐसा लगने लगता है कि हमारा कोई नहीं है, हमारी कोई नहीं सुनेगा। उनमें इस कदर डर भर दिया जाता है कि वह समलैंगिक शब्द से ही डरने लगते हैं।
ऐसे बच्चे शुरुआत से ही हीन भावना से ग्रसित होते हैं और फिर ऊपर से उनकी लैंगिकता पर सवाल उठाया जाने लगता है। जो मानव अधिकार का उल्लंघन करता है।
समलैंगिक लोगों के लिए बनाना होगा एक सहज माहौल
समलैंगिक बच्चों को पहचानें और उनकी प्राथमिकता पर ध्यान दें। उनको भी सहारे की ज़रूरत होती है और उनको भी एक हाथ चाहिए होता है जो बुरे समय में उनके सिर पर रखा हुआ हो। वह भी एक कंधा ढूंढते हैं जिसपर सिर रखकर वे रो सकें।
इस समुदाय के कुछ लोग तो बहुत आत्मविश्वास के साथ आगे की ओर बढ़ जाते हैं लेकिन कुछ बहुत पीछे छूट जाते हैं। कुछ तो खुद को खत्म तक कर लेते हैं। आपसे अनुरोध है कि ऐसे लोगों की आवाज़ बनें, उनका हौसला बनें। जिससे हमारे समाज में फैली कई प्रकार की भ्रांतियों पर रोक लगेगी।