तुर्की के शहर इंस्ताबुल में एक इमारत है। तुर्की के राष्ट्रपति ने कहा है कि इस इमारत को धार्मिक प्रार्थना के लिए खोला जाएगा और 24 जुलाई 2020 को यहां जुम्मे की नमाज़ पढ़ी जाएगी। यह ऐलान अब दो धर्मों के बीच की खाई को और बढ़ीने की वजह बन रहा है। एर्दोआन के इस फैसले की दुनिया भर में आलोचना हो रही है।
यह इमारत है हागिया सोफिया जिसे अया सोफिया के नाम से भी जाना जाता है। इस इमारत से जुड़े हज़ारों किस्से हैं। हर किस्से की अलग-अलग व्याख्या पर चर्च से मस्जिद और मस्जिद से म्यूजियम बने इस इमारत का इतिहास इसके महानता की गवाही स्वयं देता है।
कहा जाता है कि इस इमारत की भव्यता ने ही रूस को क्रिस्चनिटी अपनाने के लिए प्रेरित किया। इतिहास के कालखंड में कभी इसे दुनिया की सबसे महान मस्जिद कहा गया, तो कभी सबसे महान चर्च।
आखिर क्या खास है इस इमारत में?
यह कहानी रोमन साम्रज्य से शुरू होती है। इसके एक सम्राट थे कॉन्स्टेनटिन प्रथम, जिन्होंने ईसाई धर्म को स्वीकार किया और क्रिस्चनिटी रोमन साम्राज्य का आधिकारिक धर्म बन गया। सन् 330 में रोमन साम्राज्य के पूर्वी हिस्से की राजधानी बैजेंटियम को कोकॉन्स्टेनटिन प्रथम ने अपनी राजधानी बना ली। शहर को नया नाम मिला ‘कॉन्स्टेनटिनोपोल’।
इसके बाद 360 ई० में यहां एक चर्च का निर्माण हुआ लेकिन 404 ई० में एक झगड़े में यह जल कर खाक हो गया। फिर 415 ई० में तब के सम्राट थियोडोसीओस ने एक और चर्च का निर्माण करवाया लेकिन 100 साल बाद एक और लड़ाई में इस इमारत का भी वही अंजाम हुआ।
तब इस साम्राज्य की जस्टिनियानोस के पास कमान थी। उन्होंने उसी वक्त एक भव्य और विशाल चर्च के निर्माण का संकल्प लिया। इस योजना को अमलीजामा पहनाने का ज़िम्मा तब की दुनिया के दो सबसे बेहतरीन शिल्पकारों मिलेटस इज़िडोरोस और ट्रालेस एन्थेमियोस को मिला। 23 फरवरी सन् 532 को शुरू हुआ निर्माण कार्य 5 साल बाद एक 269 फीट लंबे और 240 फीट चौड़े दो मंज़िला भव्य इमारत के शक्ल में समाप्त हुआ।
तमाम रत्नों से सजाए गए इस बुलंद इमारत के निर्माण में लगे संगमरमर सिरिया से मंगाए गए थे। वहीं इसकी ईंटे उतरी अफ्रीका से मंगाई गई थीं। इस इमारत को नाम दिया गया ‘हागिया सोफिया’, ग्रीक भाषा के इस शब्द का अर्थ है ‘ईश्वर के पवित्र विवेक की जगह’। यह चर्च इतना भव्य और मनमोहक था कि जब सम्राट जस्टिनियानोस पहली बार इसे देखने पहुंचे तो उनके मुंह से निकला,
‘हे सोलोमन, मैनें आपको पीछे छोड़ दिया है।’ हिब्रू बाइबल को समझने वाले लोग इस वाक्य के वज़न को समझ पाएंगे।
जब ऑटोमन साम्रज्य के सुल्तान महमूद द्वितीय ने किया कब्ज़ा
सैकड़ों सालों तक ईसाई धर्म का प्रतीक चिन्ह बने रहने के बाद इस इमारत के धर्म को ही परिवर्तित कर दिया गया। 29 मई 1453 की देर रात कॉन्स्टेनटिनोपोल के अभेद्य किले को एक 21 साल के सुल्तान की सेना ने जीत लिया। ऑटोमन साम्रज्य के सुल्तान महमूद द्वितीय की सेना ने 52 दिन के घेराव के बाद इस किले पर कब्ज़ा किया।
कॉन्स्टेनटिनोपोल का नाम बदल कर इस्तांबुल रख दिया गया और यह ऑटोमन साम्राज्य की नई राजधानी बना। हागिया सोफिया के धर्मांतरण के बाद इसको नया नाम मिला ‘अया सोफिया’, सुल्तान महमूद ने इस इमारत के चारो कोनों पर 60 मीटर ऊंची मीनारें बनवाई और इसे मस्जिद की शक्ल दी गई।
वक्त यूं ही गुज़रता रहा और ऑटोमन साम्राज्य कमज़ोर होता गया। 1918 में पहले विश्व युद्ध के दौरान ऑटोमन साम्राज्य जर्मनी के साथ मिल गया और उसने रुस पर आक्रमण कर दिया। रूस, ब्रिटेन और फ्रांस ने जवाबी हमला किया। ऑटोमन साम्राज्य और उसके सहयोगियों की हार हुई और इसके अधिकतर हिस्सों को ब्रिटेन, फ्रांस, ग्रीस और रूस ने आपस में बांट लिया।
हागिया सोफिया का धार्मिक स्टेटस कर दिया गया खत्म
1923 में रिपब्लिक ऑफ तुर्की बना और मुस्तफा कमाल अतातुर्क यहां के राष्ट्रपति बने। अतातुर्क ने तुर्की को एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के रूप में स्थापित किया और एक बड़ी पहल करते हुए हागिया सोफिया का धार्मिक स्टेटस खत्म कर दिया।
इस इमारत को म्यूजियम में तब्दील कर दिया गया लेकिन वर्तमान वक्त में तुर्की के सियासी समीकरण अलग है। सत्ता में जस्टिस एंड डेवलपमेंट पार्टी है जो रूढ़िवादी इस्लामिक विचारधारा की समर्थक है और राष्ट्रपति रिसेप तैयप एर्दोगान हैं। जिनका झुकाव है तुर्की के इस्लामिक अतीत की तरफ।
एर्दोगान अलग-अलग मौकों पर हागिया सोफिया को पुनः मस्जिद बनाए जाने की बात कह चुके हैं और उसी कड़ी में 29 मई 2020 को कॉन्स्टेनटिनोपोल पर इस्लामिक सेना की विजय के 567वें वर्षगांठ के उपलक्ष्य में एक उत्सव मनाया गया और अब इससे आगे बढ़ते हुए एर्दोगान ने ऐलान कर दिया है कि हागिया सोफिया को अब धार्मिक प्रार्थना के लिए खोला जाएगा।
‘तुर्की बनाम क्रिस्चनिटी’ का बनता जा रहा है पूरा मामला
हागिया सोफिया के अंदर इस्लामिक गतिविधि, कुरान पढ़े जाने और हागिया सोफिया को पुनः प्रार्थना के लिए खोले जाने के ऐलान पर तमाम ईसाई मुल्क तुर्की से खफा हैं।
ग्रीस, अमेरिका, रूस, यूरोपियन यूनियन समेत कई अन्य मुल्कों ने इसकी निंदा की है और तुर्की को स्पष्ट शब्दों में चेतावनी दी है। यूनेस्को ने भी चिट्ठी लिखकर इस परिवर्तन पर अपना विरोध दर्ज कराया है। ऑटोमन साम्राज्य और बेजेन्टाइन साम्राज्य के बीच हुए टकराव से उत्पन्न हुई यह समस्या अब ‘तुर्की बनाम क्रिस्चनिटी’ बनती हुई दिखाई दे रही है।
आज जब दुनिया एक भयंकर महामारी से जूझ रही है ऐसे में तमाम बड़ी ताकतों का धर्म और धार्मिक स्थान के नाम पर आपस में टकराना एक शुभ संकेत नहीं है।