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कब और किन परिस्थितियों में पुलिस कर सकती है एनकाउंटर?

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पुलिस: प्रतीकात्मक तस्वीर

बीते दिनों कानपुर के बिकरू गांव में अपराधियों द्वारा पुलिस पर घात लगाकर किए गए हमले में 8 पुलिसकर्मी शहीद हो गए। इसके बाद फरार हुए हमले का गैंगस्टर विकास दुबे और उसके गैंग के तकरीबन 5 सदस्यों को पुलिस में एक-एक करके एनकाउंटर में ढेर कर दिया।

इस एनकाउंटर के बाद एक बड़े तपके का मानना है कि आरोपियों की गिरफ्तारी, जांच,चार्जशीट और अदालती कार्यवाही जैसी प्रक्रियाओं को अपनाने के बजाय पुलिस ने खुद ही इसका बीड़ा उठाकर विकास दुबे को दंड दे दिया।

कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि यह कानून के शासन का उल्लंघन है। बहरहाल किसी अपराधी का एनकाउंटर कितना न्याय संगत और संवैधानिक नियमों के अनुकूल है इस पर फिर से बहस शुरू हो गई है।

पुलिस: प्रतीकात्मक तस्वीर

गिरफ्तार करने के बाद की प्रक्रिया

गिरफ्तारी की प्रक्रिया के अनुसार कानून कहता है कि आरोपी को गिरफ्तार करने के बाद पुलिस को न्यायिक प्रक्रिया का पालन करना चाहिए। गिरफ्तारी के बाद आरोपी को मजिस्ट्रेट के सामने पेश करना होती है, उसके बाद मजिस्ट्रेट द्वारा पुलिस रिमांड या न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिए दिया जाता है।

गौरतलब है कि विकास दुबे की गिरफ्तारी करने के बाद पुलिस उसे ना मजिस्ट्रेट के सामने ले गई और ना ही उसके हाथों में हथकड़ी पहनाई गई। इसी बीच जब गाड़ी कानपुर के पास से गुज़र रही थी तब दुर्घटना में पलट गई।

इसके बाद विकास दुबे ने किसी इंस्पेक्टर का रिवाल्वर छीनकर भागने की कोशिश की और जवाबी फायरिंग में वह मारा गया। मजिस्ट्रेट के सामने पेश करने की जो न्यायिक प्रक्रिया थी, वह इसी बीच समाप्त हो गई। इस तरीके से न्याय होना कहीं-न-कहीं अधूरा ही रह गया।

तस्वीर साभार: सोशल मीडिया

एक एनकाउंटर कई सवाल

इस एनकाउंटर के बाद पुलिस व्यवस्था पर कई सावल खड़े किए जा रहे हैं। पहला, इतने संगीन जुर्म के अपराधी को हथकड़ी क्यों नहीं लगाई गई? यदि हथकड़ी पहले लगाई गई होती तो वह सुरक्षा बल की रिवाल्वर को नहीं छीन पाता।

दूसरा, जब विकास गाड़ी से निकलकर भागा तो सुरक्षा बल की टीम उसे दौड़ कर भी पकड़ सकती थी या उसके पैरों में गोली मार सकती थी, तो उसके सीने में गोली कैसे लगी? क्योंकि अगर कोई भागता है तो उसका पीठ पीछे होता है ना कि सीना, इसका मतलब साफ है कि गोली सामने से मारी गई है।

गोली मारना कोई बहादुरी का काम नहीं, बल्कि यह सुरक्षा बल की नाकामी का चित्र है। कैसे कोई अपराधी आपका रिवाल्वर खींच ले रहा है और पलटी हुई गाड़ी से निकल कर भाग जा रहा है। सवाल तो यह भी उठता है कि जिस बदमाश को चार राज्यों की पुलिस तलाश रही है उसे आप बिना हथकड़ी के ले जा रहे थे ऐसे में संदेह तो होगा ही।

गाड़ी पलटने के बाद की तस्वीर

किन परिस्थितियों में पुलिस कर सकती है एनकाउंटर

बीते कई वर्षों में एनकाउंटर और हिरासत में होने वाली मौतों को लेकर कई तरह के सवाल खड़े होते रहे हैं। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने इससे संबंधित कुछ दिशा-निर्देश तय किए हैं । इसमें सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश को भी शामिल किया गया है।

संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत जीवन एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता को मूल अधिकार के तहत संरक्षित किया गया है। एनएचआरसी के मुताबिक पुलिस केवल दो परिस्थितियों में किसी की जान ले सकती है।

पहला, जब किसी पुलिसकर्मी द्वारा अपनी सुरक्षा के अधिकार के तहत आरोपी पर हमला किया गया हो। इसके लिए भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत नियम तय किए गए हैं।

दूसरा, जब किसी मृत्युदंड या आजीवन कैद के आरोपी की गिरफ्तारी के दौरान बल प्रयोग में उसकी मौत हो जाए। इसे भी आईपीसी के तहत निर्धारित किया गया है।

इन दो हालातों को छोड़कर एनएचआरसी के दिशा-निर्देशों में कहा गया है कि मुठभेड़ से होने वाली मौतों का बचाव नहीं किया जा सकता। साथ ही यह भी कहा गया है कि हत्या के मामले में न्यायिक प्रक्रिया का पालन किया जाना आवश्यक है।

कुछ चर्चित एनकाउंटर

हैदराबाद एनकाउंटर केस : चर्चित हैदराबाद रेप केस के अभियुक्त का 6 दिसंबर 2019 को पुलिस ने एनकाउंटर कर दिया। पुलिस “क्राइम सीन रीक्रिएट” करने के लिए चारों अपराधियों को लेकर गई थी। इस एनकाउंटर के बाद पूरे देश में जश्न मनाया गया लेकिन कई मानवाधिकार संगठनों ने पुलिस पर फर्ज़ी एनकाउंटर करने के आरोप भी लगाया।

भोपाल जेल एनकाउंटर : साल 2016, अक्टूबर में सेंट्रल जेल भोपाल से भागे आठ आतंकवादियों को पुलिस ने मार गिराया था। जांच करते वक्त पुलिस की ओर से कहा गया कि आठों आरोपियों से समर्पण की अपील की गई थी लेकिन उन्होंने पुलिस पर फायरिंग शुरू कर दी। पुलिस पर फर्जी एनकाउंटर करने का भी आरोप लगाया गया। बाद में मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने इस मामले में पुलिस को क्लीन चिट दे दी थी।

इशरत जहां केस : गुजरात पुलिस ने साल 2004, जून में एक मुठभेड़ में 19 वर्षीय इशरत जहां और उनके तीन साथियों को मौत के घाट उतार दिया। पुलिस के अनुसार यह चारों आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैय्यबा से जुड़े थे जो गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को मारने की साज़िश रच रहे थे।

इस मामले में गुजरात पुलिस के कई अधिकारियों के खिलाफ फर्जी एनकाउंटर को लेकर कोर्ट में चार्जशीट दाखिल की गई थी। फिलहाल यह मामला सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है।

सोहराबुद्दीन शेख : सोहराबुद्दीन और उनकी पत्नी कौसर बी को अहमदाबाद के बाहरी इलाके में 26 नवंबर 2005 को एनकाउंटर में मार दिया गया। सीबीआई के अनुसार सोहराबुद्दीन एक वांछित अपराधी था। गुजरात पुलिस ने दावा किया था कि शेख लश्कर-ए-तैय्यबा का आतंकवादी था।

वीरप्पन एनकाउंटर केस : अक्टूबर 2004 में, डाकू वीरप्पन को तमिलनाडु स्पेशल टास्क फोर्स ने एनकाउंटर में मार गिराया। वह आंख का इलाज कराने अस्पताल में आया था। तभी पुलिस ने उस पर फायरिंग शुरू कर दी। बाद में तमिलनाडु स्पेशल टास्क फोर्स पर वीरप्पन के फर्ज़ी एनकाउंटर के आरोप लगाए गए थे।

बाटला हाउस एनकाउंटर : दिल्ली के जामिया नगर में 19 सितंबर 2008 को हुए एक मुठभेड़ में मुजाहिद्दीन के दो संदिग्ध आतंकवादी मारे गए। इंस्पेक्टर मोहन शर्मा की इस मुठभेड़ में जान चली गई।

कई लोगों ने पुलिस की इस कार्रवाई पर सवाल भी खड़े किए। इस मामले में दिल्ली पुलिस को क्लीन चिट दी जा चुकी है तथा सुप्रीम कोर्ट ने भी न्यायिक जांच से इनकार कर दिया था।

प्रतीकात्मक तस्वीर, तस्वीर साभार: सोशल मीडिया

विकास दुबे के मामले में पुलिस का तर्क

विकास दुबे एनकाउंटर मामले में पुलिस ने कहा कि विकास हथियार छीन कर भागने की कोशिश कर रहा था। विकास के हमले के बाद आत्मरक्षा में सुरक्षा बलों द्वारा जवाबी फायरिंग में आरोपी विकास को गोली लगी और उसकी मौत हो गई।

हालांकि 2012 में झारखंड राज्य के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था, “पुलिस अधिकारी एक रूप से आरोपी व्यक्ति की हत्या नहीं कर सकती निसंदेह पुलिस का काम सिर्फ आरोपी को गिरफ्तार कर, उसे मुकदमे के लिए पेश करना है ना कि उसकी हत्या करना।”


सौजन्य – प्रभात खबर

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