मनुष्य अक्सर भूल जाते हैं कि हम काफी हद तक प्रकृति पर निर्भर हैं और इसकी देखभाल करने के प्रति अनभिज्ञ हैं। हम प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और सतत विकास के लिए इतने अनिच्छुक हैं कि हम पृथ्वी की सुंदरता को पूरी तरह से भूल गए हैं।
लॉकडाउन ने प्रकृति के बारे में सोचने को किया मजबूर
दुनिया भर में लगाए गए कोरोना लॉकडाउन ने हममें से हर एक किसी-न-किसी रूप में प्रभावित किया है और इसने हमें यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि प्रकृति हमारे जीवन के लिए कितनी महत्वपूर्ण है। हाल के दिनों में प्रकृति में हुए कुछ सुधारों ने हमें विश्वास दिलाया है कि पृथ्वी को बचाया जा सकता है।
इस महामारी और लॉकडाउन के दौरान हमने यह देखा है कि हमारे कार्य पृथ्वी की स्थिरता को बहुत अच्छी तरह से प्रभावित कर सकते हैं। शुद्ध हवा में सांस लेने के लिए हरियाली वाले पेड़ों की सुरक्षा, विभिन्न शहरों में विलुप्त हो चुके वन्यजीवों का नज़र आना कुछ महत्वपूर्ण पर्यावरणीय परिवर्तन हैं जो हमने भारत में कोरोनो वायरस लॉकडाउन के दौरान देखे हैं।
COVID-19 महामारी की शुरुआत से पहले, हमारे आस-पास की हवा सदियों से उत्सर्जित होने वाली ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा के कारण सांस लेने के लिए बहुत जहरीली समझी जाती थी। पृथ्वी को बढ़ते तापमान का सामना करना पड़ा, जिसके कारण ग्लेशियर पिघलने लगे और समुद्र का जल स्तर बढ़ने लगा।
पिछले कई सालों से वायु, जल और मिट्टी जैसे संसाधनों के बुरी तरह से प्रभावित होने के कारण पर्यावरणीय क्षरण तेजी से हो रहा था लेकिन कोरोनोवायरस लॉकडाउन शुरू होने के बाद, पर्यावरण में थोड़े सकारात्मक बदलाव देखने को मिले हैं।
पर्यावरण पर COVID-19 और लॉकडाउन का प्रभाव
हवा की गुणवत्ता:
कई देशों में लॉकडाउन लगाए जाने के बाद, लोगों द्वारा यात्रा करने में भारी कमी आई। चाहे वह अपनी कारों से हो या ट्रेनों और उड़ानों से। यहां तक कि उद्योगों को भी बंद कर दिया गया। इसके कारण वायु प्रदूषण में काफी गिरावट आई।
फैक्ट्रियों से निकलने वाली ज़हरीली गैसों और कई प्रकार के रसायनों की वजह से हवा की गुणवत्ता बहुत खराब हो जाती थी लेकिन लॉकडाउन के दौरान हवा की गुणवत्ता में काफी सुधार देखा गया है, क्योंकि नाइट्रस ऑक्साइड के उत्सर्जन में उल्लेखनीय गिरावट दर्ज आई।
पानी की गुणवत्ता:
भारत में बहुत से पानी के ऐसे स्रोत हैं जिनको मनुष्य इस्तेमाल करता है। भारत में सबसे पवित्र माने जाने वाली गंगा नदी लॉकडाउन से पहले दुर्गन्धित और मैली थी, मगर फिलहाल के दिनों में उसका जल पीने योग्य बन गया है। गंगा दोबारा से पवित्र हो गई।
वहीं बात करें विदेशों की, तो हम देख सकते हैं वेनिस की झीलों का पानी इतना साफ हो गया है कि उसमें हम मछलियों को तैरता हुआ देख सकते हैं। जल-परिवहन के साधनों के बंद होने से जल मार्ग के साफ होने में काफी मदद मिली है। महासागर की स्वछता भी अब देखने योग्य हो गई है।
वन्यजीवों पर प्रभाव:
वन्यजीवों के संबंध में जहां तक मछली की बात है, तो लॉकडाउन में मछली पकड़ने में गिरावट देखी गई है। मछली पकड़ने के व्यापार के लगभग समाप्त हो जाने के बाद अनेक समुद्री जीवों को भी इसका फायदा मिला है।
इसके अलावा जानवरों को स्वतंत्र रूप से ऐसी जगहों पर घूमते हुए देखा गया है जहां पहले वे जाने की हिम्मत भी नहीं करते थे। अब उनको खुले तौर पर घूमते हुए देखा जा सकता है। यहां तक कि समुद्री कछुओं को उन क्षेत्रों में लौटते देखा गया है जहां वे अपने अंडे रखने से बचते थे, यह सब कुछ मानव हस्तक्षेप की कमी के कारण ही संभव हो पाया है।
वनस्पति पर प्रभाव:
स्वच्छ हवा और पानी के कारण पौधे बेहतर तरीके से बढ़ रहे हैं और क्योंकि अभी तक कोई मानव हस्तक्षेप नहीं हो रहा है। एक ठहराव पर सब कुछ नया-सा हो गया है। पौधों को पनपने, बढ़ने, अधिक कवरेज और ऑक्सीजन का उत्पादन करने का मौका मिल रहा है।
हालांकि लॉकडाउन के कारण पर्यावरण पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है लेकिन डर इस बात का है कि एक बार लॉकडाउन खुलने के बाद भी क्या ये सभी सकारात्मक प्रभाव बने रहेंगे?
वैश्विक स्तर पर पर्यावरण और लॉकडाउन
COVID-19 महामारी एक संकट है जिसने सभी को प्रभावित किया है। जैसा कि संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने एकजुटता के लिए अपने आह्वान में उल्लेख किया है,
“हम संयुक्त राष्ट्र के 75 साल के इतिहास में एक विपरीत वैश्विक स्वास्थ्य संकट का सामना कर रहे हैं जो मानव में संक्रमण को फैला रहा है और वैश्विक अर्थव्यवस्था को संक्रमित कर रहा है। साथ ही लोगों के जीवन को प्रभावित कर रहा है।”
उन्होंने यह भी कहा कि हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इससे सबक सीखा जाए और इस संकट के समय स्वास्थ्य संबंधी आपातकालीन तैयारियों के लिए महत्वपूर्ण आयामों को व्यवस्थित करके रखें।
COVID-19 महामारी के बाद पर्यावरण में बदलाव•पर्यावरणीय क्षति मानव गतिविधि से प्रेरित है। जैसा कि महामारी ने हमारी आर्थिक गतिविधियों, खपत और आंदोलन को सीमित कर दिया है, प्रदूषक उत्सर्जन और प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग धीमा हो गया है और अधिकांश क्षेत्रों में पर्यावरणीय क्षति की दर में गिरावट दर्ज की गई है।
• इस बीच वातावरण में CO 2 सांद्रता में वृद्धि जारी है और विशेष रूप से पैकेजिंग में इस्तेमाल किया जाने वाले प्लास्टिक का उपयोग बढ़ा है। उदाहरण के लिए अवैध कचरा-डंपिंग, शिकार और लॉगिंग में वृद्धि के कारण पारिस्थितिक तंत्र और जैव विविधता के संरक्षण के लिए गतिविधियों को प्रतिबंधित किया गया है।
•जैसे-जैसे लोग अपनी आजीविका खो रहे हैं, वैसे-वैसे बढ़ी हुई गरीबी की वजह से अधिक लोग प्राकृतिक संसाधनों की कटाई की ओर अग्रसर होंगे।
• वहीं लॉकडाउन अपेक्षित जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता “सुपर ईयर” में वैश्विक पर्यावरण शासन पर महत्वपूर्ण वार्ताओं को स्थगित करने का एक महत्वपूर्ण कारण बना है।
•महामारी फैलने के बाद से पर्यावरण पर दबाव कम हो गया है और प्रदूषण का जोखिम कम हो गया है। ऐसे में प्रदूषण को कम बनाए रखने और हरित क्षेत्र को बढ़ाने की ज़रूरत है।
लॉकडाउन के बाद भी पर्यावरण पर देना होगा ध्यान
ऐसे में, इस क्षेत्र में सरकारों को अपनी अर्थव्यवस्थाओं को बेहतर बनाने, नौकरियों का निर्माण करने और व्यवसायों का समर्थन करने की आवश्यकता है। जबकि यह भी ध्यान में रखना होगा कि बेहतर वायु गुणवत्ता, जल और स्वच्छता, अपशिष्ट प्रबंधन और जैव विविधता संरक्षण, साथ ही साथ ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन भी कम हो। जिससे वातावरण के स्वच्छ बनने में सहयोग मिलेगा।
सारे तथ्यों का एक ही निष्कर्ष निकल कर यह आता है कि ईश्वर ने हमको कितना सुंदर ग्रह दिया हुआ है और हमारे क्रियाकलापों की वजह से हमने उसका सर्वनाश किया हुआ है।
एक पर्यावरण प्रेमी होने के नाते मैंने यहां तक भी सोचा था कि यह लॉकडाउन कभी खत्म ना हो। मैंने अपनी छत से 1995 में कमल मंदिर देखा था, उसके बाद तो बस घने कोहरे की चादर की तरह सिर्फ धुआं और धूल ही दिखता है। आज हम पूरी दिल्ली साफ-साफ देख सकते हैं। कहीं से कहीं तक। दुनिया नहाई-नहाई लगती है और आसमान भी आसमानी रंग का नज़र आने लगा है।