राजस्थान की राजनीति की अपनी ही एक अनोखी बात है। अगर यहां के पिछले 27 सालों के राजनीतिक इतिहास को उठा कर देखें, तो पता चलता है कि जनता ने देश की दो सबसे बड़ी पार्टियों को बराबर मौका दिया है।
हर पांच सालों के बाद राजस्थान की जनता ने राजस्थान की सत्ता में एक बार कांग्रेस को, तो एक बार बी.जे.पी को जगह देकर जनता के प्रति पार्टी को अपनी कर्मवान निष्ठा दिखाने का पूरा मौका दिया है लेकिन पिछले कुछ समय से राजस्थान में चल रहे राजनीतिक संकट ने जनता के फैसले को ही कटघरे में ला खड़ा किया है।
राजस्थान में हुए 2013 के विधानसभा चुनाव का परिणाम वहां की जनता और कांग्रेस पार्टी बखूबी जानती है। कांग्रेस का नेतृत्व कर रहे राजस्थान के ही दिग्गज नेता अशोक गहलोत को चुनाव में मुंह की खानी पड़ी थी जहां कांग्रेस 200 सीटों वाली विधानसभा में मात्र 21 सीटों पर ही सिमट कर रह गई थी।
बी.जे.पी. के हाथों चुनाव में मिली करारी हार का ही नतीजा था कि कांग्रेस हाईकमान ने 2014 में राजस्थान के पार्टी अध्यक्ष का कार्यभार कांग्रेस के युवा नेता सचिन पायलट के कंधों पर डाला। सचिन पायलट ने भी दी हुई ज़िम्मेदारी को बखूबी निभाया, उन्होंने 2014 से लेकर 2018 तक राजस्थान की जनता के हित के लिए दिन रात काम किया।
सचिन मुख्यमंत्री का पद ना मिलने से पहले से थे नाराज़
राजस्थान की जनता भी सचिन पायलट के किए गए कामों से बेहद खुश थी और उन्हें सचिन पायलट में एक सच्चा और कर्मठ नेता दिखाई देने लगा। इसका परिणाम यह हुआ कि 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने दोबारा राजस्थान का किला फतह कर लिया लेकिन कांग्रेस ने राजस्थान का किला जिसके सहारे जीता उसे ही किले का राजा बनाने से इनकार कर दिया।
चुनाव जीतने के बाद राजस्थान की बागडोर किसे थमाए इसको लेकर पार्टी में दो नामों के बीच उठा पटक शुरू हो गई और अंत में पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की मदद से राजस्थान की बागडोर अशोक गहलोत के हाथों में थमा दी गई और वे राजस्थान के मुख्यमंत्री नियुक्त कर दिए गए।
उधर सचिन पायलट, जो मुख्यमंत्री पद के असली हकदार थे, जिनकी चार सालों की तपस्या के कारण कांग्रेस राजस्थान में वापस आई थी। उन्हें उपमुख्यमंत्री का पद दे दिया गया, जिससे पार्टी के ही कुछ नेता और सचिन पायलट स्वयं भी काफी नाराज़ थे और शायद पार्टी के लिए हुए इस फैसले से राजस्थान की जनता की उम्मीदें भी आहत हुई थीं।
पार्टी के फैसले से सचिन पायलट कहीं-ना-कहीं काफी आहत थे। उन्हें पता था कि शायद उन्हें उनकी मेहनत का फल नहीं दिया गया लेकिन पिछले डेढ़ सालों में भी सचिन पायलट ने उपमुख्यमंत्री पद पर रहते हुए जनता के लिए कई काम किए।
इस बीच उनकी और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की अनबन की खबरें शुरू से ही चर्चा में रहीं और अब हाल ही में एक दूसरे के बीच का विवाद और एक-दूसरे के प्रति अविश्वास भी काफी हद तक बढ़ चुका है, जिसने राजस्थान की विधानसभा को दो गुटों के बीच का मैदानी अखाड़ा बना दिया है।
क्या हैं विवाद के मुख्य कारण?
- सबसे पहला कारण यह है कि सचिन पायलट की उम्मीदों के खिलाफ अशोक गहलोत को राजस्थान का मुख्यमंत्री पद दिया गया, जबकि 2013 की करारी हार के बाद राजस्थान में कांग्रेस को ज़िंदा करने वाले खुद सचिन पायलट थे।
- जब राज्य के मंत्रियों को अलग-अलग पद भार सौंपा गया तब हाईकमान ने अशोक गहलोत को 9 विभाग दिए। जिसमें वित्तीय विभाग एवं गृह विभाग शामिल थे लेकिन सचिन पायलट को सिर्फ पी.डब्ल्यू.डी विभाग से ही संतुष्ट करना पड़ा जबकी पायलट को उपमुख्यमंत्री होने के नाते कहीं-ना-कहीं वित्तीय या गृह विभाग मिलने की उम्मीद थी, जो कि उन्हें नहीं मिला।
- 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान भी सचिन पायलट ने अशोक गहलोत पर यह आरोप लगाया कि वह अपने बेटे वैभव, जो जोधपुर के संसदीय क्षेत्र से खड़े हुए थे, उनके लिए ही प्रचार-प्रसार में जुटे रहे थे और राजस्थान में कहीं किसी और क्षेत्र पर इतना ध्यान नहीं दिया, जिस कारण से अंत में पार्टी को काफी नुकसान उठाना पड़ा।
- 2019 आते-आते पायलट ने अपनी ही पार्टी से कई मुद्दों पर सवाल करना शुरू कर दिया और पार्टी का नेतृत्व अशोक गहलोत कर रहे थे जिस कारण मुख्यमंत्री के नेतृत्व और कार्यों पर ही सवाल उठने लगे।
- दिसम्बर 2019 को जब पार्टी ने अपने पूरे एक साल के कार्यों का विवरण दिया तब भी अशोक गहलोत सरकार ने सचिन पायलट के द्वारा नेतृत्व किए जा रहे विभाग के कार्यों को सूची में शामिल नहीं किया।
- राजस्थान के कोटा के अस्पताल में हुए नवजात शिशुओं की मौत को लेकर भी सचिन पायलट ने सरकार के खिलाफ सवाल किए और कहा कि सरकार को और ज़्यादा संवेदनशील और करुणापूर्ण तरीके से कार्य करना चाहिए, जबकी गहलोत सरकार ने पूरा आरोप बी.जे.पी. पर मढ़ते हुए मामले से अपना पल्ला झाड़ने की कोशिश की थी।
- अभी हाल ही जून 2020 में होने वाले राज्यसभा चुनाव के दौरान अशोक गहलोत ने बी.जे.पी पर आरोप लगाते हुए कहा कि बी.जे.पी उनके कुछ नेताओं को खरीदने की कोशिश कर रही है और प्रदेश में कांग्रेस की सरकार को गिराने की भी कोशिश की जा रही है।
- वहीं, सचिन पायलट ने इन आरोपों को खारिज़ करते हुए कहा कि ऐसा कुछ नही है, हम बहुत ही मजबूत स्थिति में हैं और राज्यसभा के चुनाव में हमारे दोनों उम्मीदवार ज़रूर जीतेंगे और हुआ भी ऐसा ही।
हाल ही में बदले समीकरण
डेढ़ साल से अंदर-ही-अंदर चल रहा यह विवाद हाल ही में इसी महीने देश की जनता के सामने आया, जब सचिन पायलट ने अपनी ही पार्टी के खिलाफ अपने कुछ साथी विधायकों के साथ बगावत कर दी।
इसका सबसे मुख्य कारण यह था कि 10 जुलाई को राजस्थान की स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप ने सचिन पायलट को एक नोटिस भेजा। उनपर यह आरोप लगाया गया कि बी.जे.पी. के द्वारा की जा रही विधायकों की खरीद फरोख्त में वह भी शामिल हैं और वे अशोक गहलोत की राजस्थान सरकार को गिराना चाहते हैं।
स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप ने इस मामले के लिए सचिन पायलट को बुलवाकर पूछताछ करना चाहती थी, जबकी सचिन पायलट ने इस आरोप को खारिज़ करते हुए कहा कि यह नोटिस उन्हें जानबूझकर कर पुलिस या गृह विभाग द्वारा दिया गया है। यह आरोप सिर्फ पार्टी द्वारा उनका अपमान करने के लिए लगाया गया है।
इसी बीच 13 जुलाई को कांग्रेस पार्टी ने व्हीप जारी करते हुए विधानसभा की एक मीटिंग का ऐलान किया जिसमें सचिन पायलट ने जाने से मना कर दिया। जब सचिन पायलट और उनके साथी विधायक मीटिंग के लिए नहीं आए, तब पार्टी ने विधानसभा स्पीकर से दरख्वास्त की कि सचिन पायलट और उनके 18 साथी विधायकों को पार्टी की सदस्यता से बर्खास्त कर दिया जाए लेकिन जब यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तब सुप्रीम कोर्ट ने स्पीकर को इस मामले में जल्दबाजी ना करने का आदेश दिया।
इस बीच कांग्रेस हाईकमान ने सचिन पायलट को उपमुख्यमंत्री पद और प्रदेश अध्यक्ष पद से भी हटा दिया। ऐसे में यह अटकलें लगाई जाने लगी कि कहीं सचिन बी.जे.पी में शामिल ना हो जाएं लेकिन सचिन ने बी.जे.पी में जाने से साफ मना कर दिया था।
इसी बीच सचिन पायलट और अशोक गहलोत खेमे ने बड़ाबंदी भी शुरू कर दी, सचिन अपने 18 साथी विधायकों को लेकर मानेसर के एक रिसॉर्ट में चले गए और गहलोत ने अपने 90 से ज़्यादा विधायकों को जयपुर के होटल में रखा है।
यह देश की राजनीति की एक नई तस्वीर है। राजस्थान की 200 सीटों वाली विधानसभा में सारी गणित लगाने के बाद अशोक गहलोत का मानना है कि अगर सचिन अपने 18 साथी विधायकों को लेकर अलग भी हो जाए तब भी गहलोत सरकार नहीं गिरेगी, क्योंकि अभी भी उनके खेमे में बहुमत साबित करने लायक विधायक हैं।
राज्यपाल की भूमिका
अभी की स्थिति के अनुसार, अशोक गहलोत अपने खेमे को लेकर पूरी तरह से संतुष्ट हैं और चाहते हैं कि राज्यपाल जल्द-से-जल्द फ्लोर टेस्ट करवाएं। ऐसे में, अगर ऐसा होता है तो गहलोत सरकार को छह महीने मिल जाएंगे।
इन छह महीनों में वो सारी स्थिति सामान्य कर लेंगे लेकिन बी.जे.पी. अभी फ्लोर टेस्ट की कोई मांग बिल्कुल नहीं करना चाहती, क्योंकि वह जानती है कि यदि गहलोत सरकार गिर भी गई तब भी वो सरकार बनाने की स्थिति में नहीं है। अब सारी बात राज्यपाल के निर्णय पर आ गई है कि वे फ्लोर टेस्ट करवाते हैं या नहीं।
यदि संविधान के अनुसार देखें तो अनुच्छेद-174 के तहत, राज्यपाल जब चाहे अपने विवेक, ज़रूरत और समय के हिसाब से कभी भी फ्लोर टेस्ट करवा सकते हैं। वहीं अनुच्छेद 163 के अनुसार देखें तो राज्यपाल को मुख्यमंत्री अपनी सलाह दे सकता है और कभी भी फ्लोर टेस्ट करवाने की मांग कर सकता है।
ऐस में, अब सारी बात राज्यपाल कलराज मिश्र के निर्णय पर आ गई है लेकिन ऐसा माना जाता है कि राज्यपाल केंद्र सरकार का होता है और केंद्र में बी.जे.पी की सरकार है और अभी बी.जे.पी नहीं चाहती कि किसी भी कीमत पर फ्लोर टेस्ट करवाया जाए।
इसी बीच अशोक गहलोत राज्यपाल से एक ही हफ्ते में दो बार फ्लोर टेस्ट की मांग कर चुके हैं और राज्यपाल ने दोनों ही बार कोरोना से जुड़ी सुरक्षा को लेकर उनकी मांग को खारिज़ कर दिया। इसी कारण गहलोत खेमा राजभवन के बाहर धरने पर बैठ गया है।
अब ऐसा लगता है कि गहलोत खेमा इस मुद्दे को लेकर सुप्रीम कोर्ट जाएगा, क्योंकि 2016 में जब अरुणाचल प्रदेश में राज्यपाल फ्लोर टेस्ट के लिए मना कर रहे थे तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि राज्यपाल के पास ऐसा कोई अधिकार नही है कि वो फ्लोर टेस्ट ना करवाएं। उन्हें सदन के अनुसार फ्लोर टेस्ट करवाना होगा और उन्हें सदन का निर्णय भी मानना पड़ेगा।
अब यदि ढंग से पूरे मामले का समीकरण समझें, तो गहलोत सरकार फ्लोर टेस्ट की मंजूरी के लिए राज्यपाल पर दबाव बनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ज़रूर जाएगी और सुप्रीम कोर्ट द्वारा लिए गए पिछले कुछ फैसलों पर नज़र डालें, तो फैसला गहलोत सरकार के हक में आ सकता है। ऐसे में, राजस्थान की राजनीति क्या मोड़ लेगी? यह अब सबकुछ सुप्रीम कोर्ट और राज्यपाल के फैसले पर निर्भर दिखाई दे रहा है।