भारत और नेपाल के बीच सीमा विवाद लगातार गहराता जा रहा है। आए दिन हिंसक झड़पें होने की खबरें आ रही हैं। इससे दोनों देशों के लोगों के बीच असंतोष की भावना भी बढ़ती जा रही है। नेपाल ने भारत से लगी अपनी सीमा पर सेना तैनात करके अपनी सीमाओं की निगरानी बढ़ा दी है। इससे भारत और नेपाल के रिश्तों पर काफी फर्क पड़ा है।
आर्थिक और सामाजिक गतिविधियों पर पड़ेगा बुरा असर
भारत और नेपाल के बीच करीब 1,800 किलोमीटर लंबी सीमा है। इसका एक बहुत बड़ा हिस्सा बिहार की सीमा है। पहले जब भारत और नेपाल के रिश्ते सामान्य थे तब भारत और नेपाल के लोगों का बराबर आना-जाना लगा रहता था।
कई भारतीयों के खेत भी नेपाल में हैं, मवेशियों को चराने लोग आते-जाते रहते हैं लेकिन सीमा विवाद के बाद इन सारी गतिविधियों पर प्रभाव पड़ा है। नेपाल के बहुत से लोग रोज़गार की तलाश में भारत आते हैं। भारत के लोग फल और सब्जियां आदि ले जाकर नेपाल में बेचते रहे हैं। ऐसे में, सीमा विवाद के बाद यह सारी आर्थिक गतिविधियां भी बुरी तरह प्रभावित होंगी।
आर्थिक गतिविधियों के साथ-ही-साथ दोनों तरफ के समाज पर भी इसका बुरा असर पड़ेगा। जहां अब तक नेपाल का भारत के साथ रोटी-बेटी तक का संबंध रहा है, वहीं अब सीमा विवाद के बाद दोनों तरफ के आम लोगों के बीच भी आपसी भिडंत देखने को मिल रही है।
हाल ही में बिहार के किशनगंज के तीन व्यक्ति अपने मवेशियों की खोज में नेपाल की सीमा में प्रवेश कर गए थे। इसके बाद नेपाली सेना से हुई झड़प में भारतीय नागरिक जितेंद्र कुमार को गोली लग गई। फिलहाल जितेंद्र का इलाज किशनगंज में चल रहा है।
इसी तरह बिहार के सीतामढ़ी में नेपाली सेना और भारत के लोगों के बीच झड़प हुई। इससे दोनों तरफ के लोगों के मन में एक-दूसरे के प्रति दुर्भावना भी बढ़ रही है जो कि नेपाल और भारत के लोगों के आपसी संबंध को भी प्रभावित कर रही है।
क्या है भारत-नेपाल का जल विवाद?
लगभग 600 नदियां और छोटी धाराएं नेपाल से बहते हुए भारत में प्रवेश करती हैं और ड्राई सीज़न के दौरान गंगा नदी की जलराशि में लगभग 70 प्रतिशत का योगदान देती हैं। ऐसे में, जब ये नदियां उफान पर होती हैं, तो नेपाल और भारत के मैदानी इलाके बाढ़ से त्रस्त हो जाते हैं।
नेपाल सीमा पर लगे बांधनुमा ढांचों को इसके लिए दोषी ठहराता है। नेपाल का कहना है कि यह ढांचे भारत की ओर बह रहे पानी के प्रवाह को रोकते हैं। इससे नेपाल की हज़ारों हेक्टेयर ज़मीन डूब जाती है।
ऐसा नहीं है कि इससे सिर्फ नुकसान नेपाल का होता है। इससे भारत का भी नुकसान होना है। अकेले बिहार में ही राज्य सरकार के अनुसार, लगभग 19 लाख से ज़्यादा लोगों को अपने घर छोड़ने पड़े हैं। जब गंगा की सहायक नदियां कोसी और गंडक उफनती हैं, तो बिहार को बहुत ज़्यादा नुकसान झेलना पड़ता है।
अक्सर इसका दोष नेपाल को दिया जाता है कि उसने फ्लडगेट खोलकर नदी के निचले हिस्से में रहने वाली आबादी को खतरे में डाल दिया। मगर हकीकत यह है कि भले इन दोनों नदियों पर बने बैराज नेपाल में हैं लेकिन इनका प्रबंधन भारत सरकार ही करती है।
दोनों देशों के बीच 1954 में हुई ‘कोसी संधि’ और 1959 में हुई ‘गंडक संधि’ के तहत ऐसा किया जाता है। ऐसे में, सीमा विवाद बढ़ने के बाद यह विवाद अभी किस तरफ जाएगा इसको लेकर अभी स्थिति साफ नहीं हो पा रही है लेकिन यह तो साफ तौर पर दिख रहा है कि भारत का इससे ज़्यादा नुकसान होगा।
क्या हैं इस सीमा विवाद के राजनीतिक प्रभाव?
अंत में इस सीमा विवाद के राजनीतिक प्रभाव पर नजर डालते हैं। यह तो साफ हो चुका है कि वर्तमान में भारत के अपने किसी भी पड़ोसी से बहुत ही प्रगाढ़ रिश्ते नहीं हैं। यह किसी भी देश की सुरक्षा के लिए खतरनाक साबित हो सकता है।
दूसरी तरफ एक फायदा नज़र यह भी आता है कि सीमा बन जाने के कारण शायद अवैध तरीके से नकली नोटों, गांजा, हेरोइन, चरस आदि की अवैध तस्करी, मानव तस्करी आदि अपराधों पर भी थोड़ा नियंत्रण होगा। वर्तमान में विश्व में जो दो गुट बन गए हैं उसमें एक गुट का नेतृत्व अमेरिका कर रहा है, तो दूसरे गुट का नेतृत्व चीन कर रहा है।
भारत अमेरिकी गुट में है जबकि नेपाल, पाकिस्तान आदि भारत के पड़ोसी देश चीन के गुट में हैं। ऐसे में, भारत की सीमाओं की सुरक्षा का अतिरिक्त भार भारत पर है। एक समय नेपाल और बांग्लादेश हमारे बहुत अच्छे मित्र हुआ करते थे लेकिन आज वो चीन के साथ खड़े हैं इसके लिए कौन ज़िम्मेदार हैं?
भारत इन देशों को अपने साथ रखने में कहां असफल हो गया? कहां भारत की विदेश नीति में चूक हो गई? यह ऐसे सवाल हैं जिसका जवाब भारत को खोजना होगा और किस तरह हम इन पड़ोसियों से अपने रिश्ते प्रगाढ़ करें ,उसको लेकर भारत को अपनी रणनीति बनानी होगी।