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“स्टूडेंट्स के लिए मानसिक अवसाद का समय बन जाता है रिजल्ट का सीजन”

इस समय पूरे देश में रिजल्ट का माहौल चल रहा है। अभी कुछ दिन पहले यूपी बोर्ड और सीबीएसई बोर्ड के रिजल्ट घोषित हुए हैं जो लोग अच्छे अंकों के साथ पास हो गए, वे तो बहुत खुश हैं। हर जगह दोस्तों-यारों के पास फोन करके एक-दूसरे के रिजल्ट का हाल ले रहे हैं, वहीं जिनके नम्बर थोडे़ कम आए, वे कुछ निराश या परेशान हैं।

बचपन से अच्छे नंबर लाने और टॉप करने का डाला जाता है दबाव

दरअसल बात कक्षा दस और बारहवीं की ही नहीं बच्चों को छोटी कक्षाओं से ही कक्षा में टॉप करने या अच्छे नंबर लाने के लिए टॉर्चर किया जाता है। उनके घर परिवार वाले या आस-पड़ोस वाले सब बारी-बारी से आकर के ताना मारते हैं। यहां तक कि कई बार यह भी कह दिया जाता है कि यह तो कुछ कर ही नहीं कर पाएगा।

इसके लिए उदाहरण भी दिए जाते हैं कि फलाने के बच्चे के तुमसे ज़्यादा नंबर आए हैं। इस बीच अगर किसी ने टॉप कर दिया, तो इसका अलग दबाव बनाया जाता है, स्कूल-कॉलेजों का दबाव अलग से रहता ही है।

A person reads a book open on a table
प्रतीकात्मक तस्वीर

रिजल्ट आने के चार दिन पहले से ही बच्चे भारी भरकम दबाव झेलने लगते हैं। चार दिन पहले से ही दोस्त, रिश्तेदार और पास-पड़ोस वाले रिजल्ट के बारे में टोंकने लगते हैं। गाँव में तो लोग कॉम्पटीशन लगाने लगते हैं कि देखते हैं तुम्हारे पर्सेंट अच्छे आते हैं या मेरे बच्चे के।

आस-पड़ोस वाले दो दिन पहले से ही रोल नंबर मांगने लगते हैं। रिजल्ट का यह प्रेशर रिजल्ट आने के चार दिन पहले से रिजल्ट आने के चार दिन बाद तक बना रहता है। अगर नम्बर अच्छे आए तब तो ठीक है और अगर पर्सेंटेज कम आ गई, तो परिवार वालों और आस-पड़ोस वालों से नज़र मिलाना मुश्किल हो जाता है और स्टूडेंट्स मानसिक रुप से परेशान हो जाते हैं।

अभिभावकों को बढ़ाना चाहिए बच्चों का मनोबल

अभी कुछ दिन पहले मेरा भी इण्टरमीडिएट का रिजल्ट घोषित हुआ। मेरा रिजल्ट 27 जून को आना था। दो दिन पहले से ही घर में रिजल्ट का माहौल बनने लगा। मैं भी थोड़ा नर्वस हुआ मेरे मन में भी उहापोह की स्थिति हो गई कि पता नहीं कैसा रिजल्ट आए।

एक दिन पहले से ही सीने की धड़कन बढ़ने लगी, जिस दिन रिजल्ट आना था उस दिन सुबह से ही सभी यार दोस्तों का फोन आने लगा। किसी से बात करने का मन नहीं कर रहा था दोपहर में रिजल्ट आ गया लेकिन जितना मैंने सोचा था उस हिसाब से मेरे नम्बर कम आए। ऊपर जिन बातों का जिक्र मैंने किया है उन्हीं सब घटनाओं से मुझे भी गुज़रना पड़ा।

मूलतः यह जो रिजल्ट का सीजन होता है। यह स्टूडेंट्स के लिए मानसिक अवसाद का समय होता है। खासकर जिनके नम्बर कम आए हुए होते हैं। आदर्श स्थिति तो यह है कि ऐसा नहीं होना चाहिए पैरेंट्स को अपने बच्चे का मनोबल बढ़ाना चाहिए, ना कि मनोबल तोड़ना चाहिए लेकिन यही हमारे देश की शिक्षा व्यवस्था और समाज की असल सच्चाई है।

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