लॉकडाउन ने जहां सम्पूर्ण विश्व के आर्थिक क्षेत्र की कमर तोड़ दी है, वहीं इसने विकास को भी रोक दिया है। यहां तक कि पूरे विश्व को कई साल पीछे धकेल दिया है, जिससे हर प्रकार की व्यवस्था छिन्न-भिन्न हो गई है।
हमारे लिए यह स्थिति किसी प्रलय से कम नहीं है। इस महामारी ने जहां लोगों के मुंह से खाने के निवाले छीने हैं, वहीं लोगों के पेट पर लात भी पड़ी है।
बच्चों पर नकारात्मक प्रभाव अधिक
हालात ऐसे हैं कि एक तरफ लोगों की नौकरियां छिन गईं, तो वहीं दूसरी ओर लोग शारीरिक और मानसिक तौर पर कमज़ोर हो गए। लोगों को मानसिक आघात झेलना पड़ रहा है। यहां तक कि बच्चों और अभिभावकों के लिए भी मुश्किल घड़ी है।
इन सब के बीच ऑनलाइन कक्षा से कहीं ना कहीं बच्चों पर नकारात्मक प्रभाव अधिक और सकारात्मक प्रभाव कम पड़ता दिखाई दे रहा है। भारत के मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल ने सभी स्कूलों में जारी नोटिस द्वारा अपनी आवाज़ पहुंचाई कि सभी विद्यालयों में ऑनलाइन पढ़ाई का परफॉर्मा तैयार किया जाए। अब सभी राज्य सरकारों से जवाब मांगे गए हैं।
यूनेस्को के अनुसार, जब से COVID-19 का प्रकोप शुरू हुआ है, दुनियाभर के 138 देशों में लगभग 1.37 बिलियन स्टूडेंट्स, स्कूलों और विश्वविद्यालयों के बंद होने से प्रभावित हुए हैं। लगभग 60.2 मिलियन स्कूल शिक्षक और विश्वविद्यालय के व्याख्याता अब कक्षा में नहीं हैं।
लॉकडाउन या फिर अनलॉक के दौर में ई-शिक्षा सबसे अच्छा प्लेटफॉर्म है। विश्वविद्यालय के सभी संकाय के स्टूडेंट्स ऑनलाइन वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग प्लेटफॉर्म जैसे कि ज़ूम, स्काइप और गूगल क्लासरूम सहित अन्य सॉफ्टवेयर पर अपना अकाउंट बना रहे हैं ताकि क्लास हो सके।
प्रशासन और स्टूडेंट्स दोनों के लिए शिक्षा का वर्चुअलाइज़ेशन चुनौतीपूर्ण
न्यू मीडिया कभी भी, कहीं भी, किसी भी डिजिटल उपकरणों पर सामग्री के लिए ऑन-डिमांड एक्सेस की संभावना रखता है। ऐसे में यह देखा जा रहा है कि शिक्षा का यह सहज वर्चुअलाइज़ेशन प्रशासन और स्टूडेंट्स, दोनों के लिए चुनौतीपूर्ण साबित हुआ।
डिजिटल शिक्षा आज मौजूदा सांस्कृतिक सम्मेलनों, जैसे मौजूदा पठन सामग्री और पाठ्यक्रम की पुस्तकों और सॉफ्टवेयर की परंपराओं के बीच एक मिश्रण है। इन सबके बावजूद, जो बच्चे स्कूल जाते हैं उनकी मानसिकता पर नकारात्मक प्रभाव देखने को मिल रहा है।
14 साल से 18 वर्ष की आयु वर्ग वाले बच्चों के काल को मनोविज्ञान में “तूफान का काल” बताया गया है। जिससे यह साबित होता है कि इस आयु वर्ग के बच्चों में जो भी बदलाव होंगे या जो आदतें पनपेंगी, वे बहुत अधिक प्रभावशाली रहेंगी।
बच्चों के टाईमटेबल को इस तरह से बनाया गया है कि उनका पूरा समय मोबाइल या फिर कंप्यूटर और लैपटॉप पर ही गुज़रता है। बीच-बीच में 20 मिनट का अंतराल दिया जाता है। सुबह 8 बजे से दोपहर 2 बजे तक बच्चा मोबाइल या कंप्यूटर पर ही रहता है।
बेशक बच्चों के माँ-बाप घर में हैं मगर पूरे 6-7 घंटे तक आप अपने बच्चों के साथ नहीं बैठ सकते। उनकी निगरानी नहीं कर सकते और इसी बीच बच्चे पॉर्नोग्राफी या गेम खेलने लग जाते हैं। आज कल ऐसी साइट्स की भरमार हैं, जहां ये सारी सामग्रियां उपलब्ध रहती हैं।
वर्तमान महामारी के समय बाल पोर्नोग्राफी के बढ़ने का मुद्दा
अप्रैल 2020 में, इंडिया चाइल्ड प्रोटेक्शन फंड यानी ICPF द्वारा भारत में चाइल्ड पोर्नोग्राफी सामग्री की खपत पर एक रिपोर्ट आई। ICPF ने इसमें 95% की भारी वृद्धि की सूचना दी है।
ICPF की रिपोर्ट दुनिया की सबसे बड़ी पोर्नोग्राफी वेबसाइट “पॉर्न हब” के डेटा का हवाला देती है। प्री-लॉकडाउन के समय की तुलना में लॉकडाउन अवधि के दौरान वेबसाइट का भारत में महत्वपूर्ण हस्तक्षेप रहा है।
बाल पोर्नोग्राफी सामग्री की मांग के लिए ट्रैफिक में अधिकांश युवाओं, वयस्कों और बच्चों को ज़िम्मेदार ठहराया गया है।
इस तरह के संकट के समय भारत में बच्चों को जिस खतरे का सामना करना पड़ रहा है, उसकी हकीकत हैरान करती है। कहीं ना कहीं बच्चे खुद को उस स्थान पर रखकर देखते हैं और उनकी मनोदशा वैसी ही प्रतिक्रिया देने लगती है। बच्चों को पोर्न दृश्य को खुद पर लागू करने के कई केस देखे गए हैं, जो वाकई में खतरनाक साबित होने वाले हैं।
आगे का रास्ता बेहतरी के लिए बदलाव
इस घड़ी में यह सवाल उठता है कि मौजूदा कानून इस दिशा में कितने कारगर हैं? क्या वे बाल पोर्नोग्राफी और बाल यौन शोषण से निपट पाएंगे? इस संदर्भ में, “इंटरनैशनल सेंटर फॉर मिसिंग एंड एक्सप्लॉइड” नामक संस्था ने शोध के तहत कुछ सवाल रखे हैं, जो इस प्रकार हैं।
- क्या मौजूदा कानून बाल पोर्नोग्राफी का अपराधीकरण कर रहे हैं?
- क्या मौजूदा कानून में बाल पोर्नोग्राफी की कानूनी परिभाषा शामिल है?
- क्या चाइल्ड पोर्नोग्राफी पर कब्ज़ा अपराध है?
- क्या कंप्यूटर और इंटरनेट के माध्यम से चाइल्ड पोर्नोग्राफी का वितरण अपराध है?
समाज को शिक्षित करने के लिए जागरूकता और निदान की आवश्यकता
लचीले तरीकों में से एक है जागरूकता पैदा करना और लोगों को इसके बारे में बात करने के लिए प्रोत्साहित करना। यह माता-पिता, बच्चों और सामान्य लोगों के लिए “डिजिटल मीडिया साक्षरता” द्वारा किया जा सकता है। चाइल्ड पोर्नोग्राफी के उपभोग के दुष्प्रभावों के साथ-साथ विभिन्न कानूनों के तहत दंडात्मक परिणामों के बारे में संवेदनशील बनाने की आवश्यकता है।
टेलीविज़न, इंटरनेट, रेडियो, प्रिंट मीडिया, सोशल मीडिया जैसे विभिन्न माध्यमों द्वारा व्यवस्थित शैक्षणिक कार्यक्रमों का प्रसार किया जाना आवश्यक है। इसके अलावा, समुदायों और समाजों को निगरानी समूहों का गठन करना चाहिए। भविष्य के लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय और अन्य शैक्षणिक निकायों, जैसे यूजीसी, सीबीएसई, आईसीएसई या राज्य के बोर्ड्स को संबंधित स्कूलों, कॉलेजों या अन्य संस्थानों के लिए अनिवार्य होना चाहिए ताकि वे बाल पोर्नोग्राफी पर जागरूकता फैलाने के लिए कार्यक्रम चलाएं।
माता-पिता के नियंत्रण और निगरानी की अधिक से अधिक आवश्यकता
इस समय माता-पिता के लिए यह महत्वपूर्ण हो जाता है कि वे बच्चों को उन जोखिमों के बारे में शिक्षित करें, जिनका सामना उन्हें ऑनलाइन आने के दौरान करना पड़ता है। इनमें यौन सामग्री, यौन संबंध और जबरन वसूली, सेक्सटिंग, धमकाने या हानिकारक सामग्री तक पहुंचना शामिल है।
ऑनलाइन सुरक्षा के बारे में बच्चों से बात करने, वेब ब्राउज़िंग की निगरानी करने और एक रूपरेखा या अनुप्रयोगों का उपयोग करके बच्चों की ऑनलाइन ब्राउज़िंग गतिविधियों पर नज़र रखने के लिए कुछ तरीकों का इस्तेमाल किया जा सकता है।
माता-पिता के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वे बच्चों को उन सामग्रियों या एप्लिकेशन के बारे में बताएं, जो वे ब्राउज़ कर रहे हैं। माता-पिता के लिए यह भी महत्वपूर्ण है कि वे अपने बच्चों को परेशान करने वाले किसी भी तनावपूर्ण मुद्दों पर चर्चा करने के लिए एक आरामदायक वातावरण प्रदान करें।
अभिभावकों को जहां भी आवश्यक हो अधिकारियों की मदद लेनी चाहिए और ऑनलाइन बाल यौन शोषण के किसी भी संभावित उदाहरण की रिपोर्ट करनी चाहिए।
हमारी सोच को एक बदलाव के निर्माण के लिए उपचार की आवश्यकता है, क्योंकि सकारात्मक कदम निश्चित रूप से बच्चों के कोमल उम्र और नाजुक मन पर दीर्घकालिक मनोवैज्ञानिक प्रभाव का एहसास कराने के लिए एक दृष्टिकोण की ओर अलग-अलग दिमागों को घोषित करने में मदद करेगा।
हम सभी एक क्रांतिकारी युग में हैं। इसलिए हमारे ग्रह की भावी पीढ़ी के लिए स्थिति को समग्र रूप से बदलने की उम्मीद है।
संदर्भ- icpf.org