मासिक धर्म एक प्राकृतिक चक्र है जो हर महिला के लिए एक आम बात मानी जाती है। मगर जब बात आती है लड़कों और पुरुषों की तो इनके साथ इस विषय को साझा करना थोड़ा संकुचित हो जाता है।
पुरुषों को भी करना होना पीरियड्स के विषय में जागरूक
पीरियड्स के विषय पर पुरुषों का बातें करना समाज में अनैतिकता माना जाता है। इसके लिए कोई भी खुलकर बोलने को राज़ी नहीं होता, क्योंकि लोगों को लगता है यह एक ऐसा विषय है जिस पर सार्वजिक तौर पर बात नहीं कर सकते हैं। कई जगह हम इससे संबंधित भेदभाव भी देख सकते हैं।
इस भेदभाव को खत्म करने के लिए हम सबको कदम-से-कदम मिला कर चलना होगा। समानता की सीढ़ियों पर चढ़कर ही हम इस समस्या का समाधान ढूंढने में हम सफल हो सकते हैं। समानता का अर्थ है कि इस विषय के संबंध में खुलकर बात करने में सबकी भागीदारी होनी ज़रूरी है। चाहे वह किसी भी लिंग का हो।
सबसे पहले परिवार, उसके बाद समुदाय और फिर समाज इन तीनों ही स्तर पर लोगों को सही तरह से परियड्स के बारे में जागरूक किया जाना बहुत ज़रूरी है। पुरुष समुदाय की सबसे प्राथमिक इकाई यानी, लड़के जो विद्यालय जाते हों उनके लिए अभियान चलाएं जाएं और पीरियड्य के संबंध में उनकी सोच को एक नई दिशा प्रदान की जानी चाहिए।
विद्यालय के पाठ्यक्रम में बदलाव और पढ़ाने के तरीके में होना चाहिए बदलाव
अक्सर देखा जाता है कि हमारे समाज में लोग यौन शिक्षा को गलत मानते हैं और शिक्षा के क्षेत्र में भी इसको नैतिकता से परे की बात मानकर नज़रअंदाज़ ही किया जाता है। कुछ ऐसे तथ्य है जिनपर विचार किया जाना चाहिए:
- लड़के और लड़कियों को एक साथ ऐसे पाठों को ना पढ़ाना जिसमें यौनिकता शामिल हो, यह तथ्य दोनों के मन और मष्तिष्क में एक अलगाव की स्तिथि पैदा कर सकता है। जिससे उनके के मन में इस बात को लेकर रहस्य बरकरार रह सकता है। उन्हें इस बात का अंदाजा ही नहीं होता है कि कुछ ऐसे आयाम हैं जो प्राकृतिक तौर पर बिल्कुल साधारण हैं, जैसे महावारी और शारिरिक बदलाव।
- लड़कों और लड़कियों को संवेदनशील विषयों के बारे में एक-दूसरे के साथ संवाद करने का अवसर दिया जाना ज़रूरी है, क्योंकि उन्हें भविष्य में अंतरंग संबंधों को विकसित करने की आवश्यकता पड़ेगी और उस समय वह एक दूसरे से असहज महसूस कर सकते हैं।
- अगर उनको एक साथ विषयों पर चर्चा नहीं करने दी जाएगी, तो लड़के और लड़कियां एक-दूसरे के दृष्टिकोण को समझ नहीं पाएंगे और भविष्य में पीरियड्स जैसे सामन्य प्रक्रिया को लेकर समाज में एक भेदभाव जैसी समस्या पैदा हो सकती है।
लड़के-लड़कियों को करना होगा सहज
अभिभावकों के लिए स्कूल और सामुदायिक स्तर के शिक्षा कार्यक्रमों में लड़कों और लड़कियों के लिए व्यापक युवा शिक्षा कार्यक्रम शुरू करने की आवश्यकता है। समुदाय में महिलाओं के साथ ही पुरुषों पर भी इस विषय को लेकर उतना ही ध्यान दिया जाना चाहिए, ताकि वे सकारात्मक रूप से महिलाओं का समर्थन करना शुरू कर सकें।
ऐसे व्यापक शिक्षा कार्यक्रमों में परिवार के सभी सदस्यों को शामिल करने से पालन-पोषण के कौशल में सुधार होगा और साथ ही परिवार के सदस्यों के बीच यौन और प्रजनन स्वास्थ्य के विषय के संचार में वृद्धि होगी।
मासिक धर्म और महिला यौन स्वास्थ्य से संबंधित अन्य तथ्यों के बारे में लड़कों को भी पढ़ाना आवश्यक है। यह समानता को बढ़ावा देता है और पुरानी रूढ़िवादी सोच को नियंत्रित करता है, साथ ही अधिक सहानुभूति पैदा करता है।
कम उम्र में लड़कों और लड़कियों के बीच यह बातचीत नहीं होने से, यह भविष्य में दोनों के सम्पूर्ण विकास को प्रभावित कर सकता है। देश में आज भी ना जाने कितनी ही औरतें ऐसी हैं जो पीरियड्स पर खुलकर अपने पति तक से बात नहीं करती हैं। पैड्स के अभाव में गंदा कपड़ा इस्तेमाल करने की वजह से गम्भीर बीमारी का शिकार हो जाती हैं।
पिता, पति और भाई के तौर पर पुरुषों को पीरियड्स के प्रति जागरूक होने की ज़रूरत है। कुछ पुरुष समुदाय के लोग इस विषय में बात करना चाहते भी हैं तो वह बात करने से झिझकते हैं, क्योंकि समाज ने इस बात पर कुछ भी बोलने की इजाज़त नहीं दी जाती है।
पुरुषवादी समाज को रूढ़िवादी सोच से आना होगा बाहर
पुरुषवादी समाज परिवार में मासिक धर्म के मुद्दों पर चर्चा को वर्जित करार देता आया है और यही कारण है कि जैसा कि अध्ययन बताते हैं कि पुरुष मासिक धर्म के बारे में कुछ भी नहीं जानते हैं।
इस प्रकार मासिक धर्म के नाम पर जो भेदभाव महिलाओं को कलंकित करता हो और उसको प्रताड़ित करता हो, ऐसे चलन को दूर करने के लिए इस महत्वपूर्ण विषय पर पुरुषों को भी जागरूक होने की आवश्यकता है।
मासिक धर्म के मुद्दों पर पुरुषों को शामिल करने का एक और केंद्र बिंदु है कि मासिक धर्म के सामाजिक मानदंडों और नकारात्मक विचारों को बदलना बेहद ज़रूरी है।
आने वाले समय में पीरियड्स के मुद्दे को बनाना होगा सहज
आने वाली पीढ़ी को ऐसे कुएं में धकेलने के बजाय उनको यह समझाया जाए कि महावारी एक नियमित और प्राकृतिक का नियम है। इसमें शर्माने वाली कोई बात नहीं है। यह भी उसी प्रकिया की तरह है जैसे किसी मूत्राशय द्वारा निष्काषित तरल है।
इसमें घबराने और डरने के बजाए आप अपनी माँ, बहन, बेटी और पत्नी यानी समाज की महिलाओं के साथ बैठकर इस बात पर चर्चा करें। उनको समझाएं। अगर बेटी छोटी है और इस बात को बताने से घबरा रही है, तो बचपन से ही उसको समानता के माहौल में ढालें। जिससे वह आपके साथ किसी भी तरह की बातों को करने में सहज हो।
ऐसी स्तिथि में उसके पास बैठें और प्यार से समझाएं कि यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है। आप यह अपने घर से शुरू कर सकते हैं, एक ऐसे वातावरण का निर्माण करें जो आपकी घर की महिलाओं के लिए, सहज, सरल, और सुलभ हो। ऐसा करने से आपका परिवार और आपके अपनों का परिवार भविष्य में सफल और सुखद जीवन व्यतीत कर पाएगा।