मनुष्य समाजिक प्राणी है। समाज में रहना उसके लिए आवश्यक है। समाज में रहने पर सभी लोग नीतियों का एक साथ पालन करते हैं, जैसे शादी, समारोह, जन्म और मृत्यु आदि। ऐसे में अगर सारे समारोह, सबसे मिलना-जुलना सारे कार्यक्रमों को रद्द करना पड़े तो इंसान कैसा महसूस करेगा? ना अस्पताल जा सकता है और ना तो मनोरंजन करने के लिए पार्क या मॉल।
यह तो हम सभी जानते हैं कि 22 मार्च 2020 के बाद से अब तक सभी के जीवन में कई बदलाव आए हैं। सभी लोग एक जगह दबकर बैठने को मजबूर हो गए हैं। इस बीच लोग समाजिक उपेक्षा के शिकार भी हुए हैं।
कहीं किसी के पास फोन करके अगर हाल-चाल पूछते हैं, तो लोग डरते हैं कि कहीं कोई मिलने घर पर ना आ जाए। कैसा महसूस करते हैं आप सभी लोग? सभी खुद से यह सवाल पूछें और जवाब आपके सामने होगा।
अगर यही लॉकडाउन सैकड़ों वर्षों तक चले तो?
ऐसा लॉकडाउन आप की ज़िंदगी में हेमाशा रहे तो सोच कर देखिए कि आपको कैसा लगेगा? बिल्कुल ऐसा ही LGBTQAI+ समुदाय से संबंधित लोगों को महसूस होता है। वह लोग ना जाने कब से समाज का बहिष्कार झेलते हुए आ रहे हैं।
आपमें से कितनों को तो मानसिक तनाव झेलना पड़ा, ऊपर से घर-परिवार को चलाने के लिए पैसे भी तो चाहिए। उसकी भी टेंशन। बस चार महीने में आप एक मानसिक रोगी तक बनने की कगार पर हैं?
LGBTQAI+ से सम्बंधित समुदाय के एक-एक इंसान ने वह सब झेला है जो आप अब झेल रहे हैं। वैसे आपका झेलना उतना भयावह नहीं जितना इस समुदाय के लोगों का होता है।
जिनपर सबसे अधिक इस महामारी का नकारात्मक प्रभाव पड़ा है, वह ट्रांसजेंडर हैं। इस समुदाय की रोज़ी-रोटी तो खुशियों में गाने बजाने में ही समाज ने नियुक्त की। उनके पास ना तो नौकरी होती है और ना कहीं भी काम करने की आज़ादी। इस COVID-19 के दौरान उनकी और भी ज़्यादा दुर्दशा हुई है। वह उनके साथ ही हो रही है।
समाज इनको किस नज़र से देखता है?
कुछ लोग इनसे घृणा करते हैं। यह एक गंदी सोच है। वास्तव में यह पाप है। अगर हम इनकी कमाई के स्त्रोत पर नज़र डालेंगे, तो पाएंगे कि अभी भी इनके कमाने के विकल्प ज़्यादा नहीं हैं। यह विकल्प हैं- भीख मांगना, शादी और जन्म के समय नाच-गाना या खुद को सेक्स के लिए बेचना। केवल यही तीन पेशे हैं जो इनको जीवन जीने के लिए समाज ने दिए हैं।
नौकरी आज भी इनके लिए एक दूर की कौड़ी है। इनके आजीविका का साधन अभी भी किसी रेड लाइट पर गाड़ियों के रुकने के समय पैसे मांगने की व्यथा से भरा हुआ है। कुछ लोग गलियों में जा-जाकर भीख मांगने पर भी विवश हैं।
बाहर बसों में ट्रेन में हमने कई बार देखा होगा यह लोग वहां जाकर भी भीख मांगने का काम करते आए हैं। जहां से इनको आजीविका प्राप्त होती तो है, मगर बहुत ही न्यूनतम स्तर पर जिससे जीवन चला पाना भी मुश्किल होता है। कई लोगों की गालियां और डांट सुनकर यह लोग अपनी मुस्कान को खोते नहीं और आगे बढ़ जाते हैं।
प्रताड़ना का यह सिलसिला कब थमेगा?
जब कहीं कोई समारोह होता था जैसे किसी की शादी और किसी बच्चे के जन्म के समय भी हमने देखा होगा कि यह लोग बड़ी उत्सुकता से दुआएं देते हुए आते हैं। कई लोग तो इन्हें गंदी-गंदी गालियां सुनाकर पुलिस की धमकी तक दे देते हैं।
जो भी हो, क्या आपने कभी उनके जीवन को जिया है? नहीं जिया और ना ही जी सकते हैं। जिसके पास कमाने का कोई ज़रिया ना हो, तो वह अपना पेट पालने के लिए क्या करेगा? इस सवाल पर समाज कभी गौर ही नहीं करता है।
कई बार हम रात के समय घर से सैर को निकलते हैं। कभी आइसक्रीम खाने, मौज-मस्ती करने और घूमने के लिए निकल जाते हैं। कोई फिक्र नहीं, ना ही कोई चिंता, मगर हम वह दृश्य नहीं देख पाते कि कुछ समुदाय के लोगों का एक हिस्सा अपना पेट भरने के लिए इधर-उधर भटक रहा है।
इस काली रात में उनके मन के भाव भी ऐसी ही कालिख लिए होते होंगे। उस समुदाय के कुछ लोगों को रात में देह व्यपार करने के लिए विवश होकर बाहर निकलना पड़ता है। यह कैसी विडंबना है। वह लोग सड़क और रास्तों के ही शुक्रगुज़ार होते होंगे क्योंकि उनको यह रास्ते ही कमाने और जीवन चलाने का मौका देते हैं।