हास्य कलाकार जगदीप का बुधवार रात मुंबई में निधन हो गया। वह 81 वर्ष के थे। जगदीप का असली नाम सैय्यद इश्तियाक अहमद जाफरी था।
यह वो दौर था जब हिन्दी सिनेमा में महमूद, जानी वाकर जैसे शानदार हास्य कलाकारों की तूती बोलती थी। उस समय सामान्य कद-काठी के एक बच्चे ने एक बाल कलाकार के रूप में बी.आर. चोपड़ा की फिल्म ‘अफसाना’ से बालीवुड में कदम रखा। किसे पता था यह बच्चा आगे चलकर हास्य कलाकारों की दुनिया में एक नया कीर्तिमान कायम करेगा।
बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट की थी करियर की शुरुआत
जगदीप ने अपने फिल्मी करियर की शुरुआत बी आर चोपड़ा की फिल्म ‘अफसाना’ से चाइल्ड आर्टिस्ट ‘मास्टर मुन्ना’ के रूप में की थी। इस फिल्म के लिए उन्हें तीन रूपये मेहनताना मिला था।
इसके बाद चाइल्ड आर्टिस्ट के रूप में ही उन्होंने ऋषि कपूर की फिल्म ‘लैला मजनूं’ में भी काम किया। जगदीप ने कॉमिक रोल की शुरुआत बिमल रॉय की फिल्म ‘दो बीघा जमीन’ से की थी। करीब 400 से ज्यादा फिल्मों में काम करने वाले जगदीप आखिरी बार 2012 में फिल्म ‘गली-गली चोर’ में पुलिस कांस्टेबल की भूमिका में नज़र आए थे।
शोले के सुरमा भोपाली ने दिलाई प्रसिद्धी
1975 में अमिताभ बच्चन और धर्मेंद्र की सुपर हिट फिल्म शोले में निभाए गए सूरमा भोपाली के किरदार ने उन्हें बॉलीवुड में मशहूर किया था। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नही देखा।
इस किरदार के नाम पर 1988 में एक फिल्म भी बनी, उस फिल्म में मुख्य भूमिका जगदीप ने ही निभाई थी। इसके साथ ही ‘ब्रह्मचारी’, ‘नागिन’ और ‘अंदाज अपना-अपना’ जैसी फिल्मों में उनकी बेहतरीन कॉमेडी लोगों ने बहुत पसंद किया।
इन किरदारों ने जगदीप को दिलाई हास्य जगत में पहचान
दो बीघा जमीन के ‘लल्लू उत्साद’: अपने करियर की शुरुआत बतौर बाल कलाकर ही की थी लेकिन बतौर कॉमेडियन पहली फ़िल्म बनी दो बीघा जमीन। इसमें जगदीप ने लालू उत्साद का किरदार निभाया है। हालांकि, इसमें भी वह एक बच्चे के किरदार में थे।
भाभी का ‘बलदेव बिल्लू’: साल 1957 में बलराज साहनी और नंदा जैसे दिग्गजों से सजी फिल्म भाभी आई। इस फिल्म में जगदीप ने बलदेव उर्फ बल्लू का किरदार निभाया। ओमप्रकाश जैसे बेहतरीन कलाकारों वाली इस फिल्म में जगदीप ने अपनी अलग पहचान बनाई।
फिल्म रोटी का ‘कड़क सिंह’: साल 1974 की फिल्म आई रोटी। मनमोहन देसाई द्वारा निर्देशित इस फिल्म में ‘काका’ यानी राजेश खन्ना और मुमताज़ मुख्य भूमिका में थे लेकिन जगदीप के कड़क सिंह के किरदार ने सबका दिल जीत लिया।
फिल्म एजेंट विनोद का ‘जेम्स बॉन्ड’: सूरमा भोपली के बाद एजेंट विनोद फिल्म में जगदीप ने काफी बड़ा किरदार निभाया था। इस बार वह जेम्स बॉन्ड 007 बनकर आए। इस फिल्म में की गई कॉमेडी के कारण आज भी लोग उन्हें याद करते हैं।
बचपन में सड़क पर बेचते थे सामान
29 मार्च 1939 को उस समय के सेंट्रल प्रोविन्स (मध्य प्रदेश) के दतिया में जन्मे जगदीप का असली नाम सैय्यद इश्तियाक अहमद जाफरी था। उनके पिता पेशे से वकील थे।
सन् 1947 में देश का बंटवारा हुआ और उसी साल उनके सर से पिता का साया उठ गया । उनका परिवार दर-दर की ठोकरें खाने लगा। माँ जगदीप और बाकी बच्चों को लेकर मुम्बई चली आईं और घर चलाने के लिए एक अनाथ आश्रम में खाना बनाने लगी।
माँ की मदद करने के लिए नन्हें जगदीप सड़क पर साबुन और कंघी बेचते थे। एक इंटरव्यू में जगदीप ने अपने बचपन के संघर्ष को याद करते हुए कहा था, “मुझे जिंदा रहने के लिए कुछ करना था लेकिन मैं कोई गलत काम करके पैसा नहीं कमाना चाहता था, इसलिए सड़क पर सामान बेचने लगा।”
माँ के सुनाए शेर को बना लिया ज़िंदगी का मूलमंत्र
जगदीप के जीवन में उनके माँ की ममता की बहुत बड़ी भूमिका थी। एक इंटरव्यू में अपनी माँ से जुड़ा एक किस्सा साझा करते हुए जगदीप ने कहा था, ”मैंने जिंदगी से बहुत कुछ सीखा है। मेरी माँ ने मुझे समझाया था। एक बार बॉम्बे में बहुत तेज़ तूफान आया था। सब खंभे गिर गए थे। हमें अंधेरी से जाना था। उस तूफान में हम चले जा रहे थे। एक टीन का पतरा आकर गिरा और मेरी मां के पैर में चोट लगी।”
वो आगे बताते हैं, “बहुत खून निकल रहा था। यह देखकर मैं रोने लगा, तो मेरी माँ ने तुरंत अपनी साड़ी फाड़ी और उसे बांध दिया। तूफान चल रहा था। तो मैंने कहा कि यहीं रुक जाते हैं, ऐसे में कहां जाएंगे, तो उन्होंने एक शेर पढ़ा था। उन्होंने कहा कि ‘वो मंज़िल क्या जो आसानी से तय हो वो राही क्या जो थककर बैठ जाए।'”
उनका कहना था कि पूरी ज़िंदगी ही इस शेर की तरह समझ आती रही कि वो राह ही क्या जो थककर बैठ जाए, तो अपने एक-एक कदम को एक मंज़िल समझ लेना चाहिए। छलांग नहीं लगानी चाहिए वरना गिर सकते हैं।
जगदीप अब हमारे बीच नहीं हैं। उनकी कमी बॉवीलुड को हमेशा खलती रहेगी।