हर बार की तरह फिर मानसून ने अपनी दस्तक दे दी है। अब हर शहर और गाँव से टूटी हुई सड़कों में गड्ढे के साथ कीचड़ वाली तस्वीरें सोशल मीडिया पर लहराने लगेंगी। किसी तस्वीर में टूटी हुई सड़कों पर गड्ढें दिखेंगे, तो किसी तस्वीर में कच्ची सड़क पर जमे कीचड़ में फिसलते लोग दिखेंगे। वहीं, कहीं किसी तस्वीर में पानी से पूरी तरह बंद हो चुकी सड़क से गुजरते स्कूली बच्चे दिखेंगे।
इस सब के बीच एक बात साफ है कि टूटी हुई सड़कों पर जमा कीचड़ या खराब सड़कों से बेहाल हुए जन-जीवन वाली यह ज़्यादातर तस्वीरें गाँवों और शहरों के लोकल सड़कों की होंगी। मुख्य सड़कों, नेशनल और स्टेट हाईवे की सड़कों पर यह समस्या थोड़ी कम दिखाई देती है।
छोटे शहरों की लोकल सड़कों और गाँव की सड़कों की खराब स्थिति के मुख्य कारण भ्रष्टाचार और घोटालेबाज़ी हैं। इससे तो आप पूरी तरह परिचित होंगे ही लेकिन क्या आप छोटे शहरों की लोकल सड़कों और गाँव की सड़कों की खराब स्थिति के पीछे छिपे एक और महत्वपूर्ण कारण ‘राजनीतिक निरक्षरता’ से परिचित हैं?
आखिर कैसे ज़िम्मेदार है यह ‘राजनीतिक निरक्षरता’?
जब आप किसी गाँव और शहर की लोकल सड़कों को टूटे-फूटे हालत में देखें, तो आप यह अंदाजा बिल्कुल ना लगाएं कि इन सड़कों के पीछे भी सरकारी लापरवाही होगी। आप यह अंदाज़ा भी ना लगाएं कि वहां सड़क बनी ही नहीं होगी, क्योंकि ऐसा भी हो सकता है कि आप किसी गाँव की सड़कों को खोदना शुरू करें और हर तीन फीट की खुदाई पर आप एक नई सड़क पाएं।
गाँवों में भी सड़क के निर्माण के लिए गवर्मेंट बजट देती है लेकिन होता यह है कि जब किसी नेशनल और स्टेट हाईवे या किसी शहर की मुख्य सड़क का निर्माण होता है, तो उसकी मुख्य ज़िम्मेदारी किसी राजनीतिक लीडरशिप के हाथों में ना होकर सरकार के किसी विभाग के हाथों में होती है।
इस विभाग को आप मुख्य तरीके से लोक निर्माण विभाग और नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया के नाम से भी जानते हैं। जब यह विभाग सड़क बनाता है, तो वह अपने पास पर्याप्त संसाधनों और अपने विभाग के रोड एक्सपर्ट्स का पूरा इस्तेमाल करता है। इस दौरान हर सड़क के वॉटर लेवल, उस बनने वाली सड़क की जगह वाली मिट्टी की प्रकृति और अन्य हर मापदंडों को पूरी तरह ध्यान में रखा जाता है।
लेकिन इसके विपरीत जब किसी गाँव और किसी छोटे शहर की लोकल सड़कों का निर्माण होता है, तो इसका पूर्ण कार्यभार सिर्फ उस जगह की लोकल पॉलिटिकल लीडरशिप के हाथों में ही होता है।
लोकल पॉलिटिकल लीडरशिप को आप नगरपालिका अध्यक्ष, वार्ड मेंबर और कई राज्यों में सरपंच या प्रधान के रूप में जानते हैं। यह लोकल पॉलिटिकल लीडरशिप ही किसी गाँव की सड़कों और शहर की लोकल सड़कों को बनवाने का काम करती है।
लोकल पॉलिटिकल लीडर्स का निरक्षर होना करता है काम को प्रभावित
देश के पॉलिटिकल मैनेजमेंट के अनुसार, पॉलिटिकल लीडरशिप के तौर पर इलेक्टेड होने के लिए आपको किसी भी प्रकार से साक्षर होना कतई अनिवार्य नहीं होता है। जिसके कारण यह लोकल पॉलिटिकल लीडरशिप सामान्यतः निरक्षर ही पाई जाती है।
जब इस निरक्षर लोकल पॉलिटिकल लीडरशिप को किसी सड़क निर्माण की ज़िम्मेदारी मिलती है, तो इस लीडरशिप को संसाधनीय अपर्याप्तता और अनुभवहीनता के बाबजूद भी सड़क निर्माण करना ही होता है।
ऐसे में, इस लीडरशिप के द्वारा किसी सड़क को बनाने में एक्सपर्ट डिपार्टमेंट से मदद लेने का कोई भी लीगल प्रॉसेस फॉलो नहीं किया जाता है। जिसके कारण तब यह लोकल लीडरशिप सड़क बनाने में अनुभवहीन और सस्ते वर्कर्स को हायर करते हैं और सड़क का निर्माण कर दिया जाता है।
सड़क ब्लॉक होने पर किया जाता है फास्ट सॉल्यूशन का जुगाड़
अब क्योंकि उस सड़क का निर्माण किसी भी ज़रूरी मापदंड जैसे कि वाटर-लेवल, सीवेज व ड्रेनेज सिस्टम को ध्यान में रखकर नहीं हुआ होता है जिसके कारण वह सड़क घरों से निकलने वाले वेस्टेज वॉटर और अन्य जगहों से आने वाले पानी से ब्लॉक हो जाती है। इसके कारण जन-जीवन बेहाल होने लगता है।
अब इस दुविधा से निपटने की ज़िम्मेदारी भी उसी लोकल लीडरशिप की होती है। ऐसे में वह लोकल लीडरशिप जल्दबाजी में एक प्राइमरी और फास्ट सॉल्यूशन निकालकर कुछ काम कर लेती है।
यह प्राइमरी और फास्ट सॉल्यूशन को आप एक जगह ठीक से देख सकते हैं। गाँव में जब किसानों के पालतू पशुओं जैसे- गाय और भैंस को रखने के स्थान पर कीचड़ होता है, तो कहीं से एक या दो ट्रेलर मिट्टी उन पशुओं के स्थान पर डाल दी जाती है। बस यही सेम पैटर्न बारिश के कारण ब्लॉक हो चुकी सड़कों पर भी लागू कर दिया जाता है।
इससे सड़कें मानसून-दर-मानसून मिट्टी के गहरे बोझ में समाधि लेती जाती हैं। इसी कारण से मैंने कहा कि जब आप किसी गाँव की कच्ची सड़क को खोदेंगे तो आप हर तीन फीट पर किसी सड़क के होने के निशान पाएंगे।