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महामारी के इस दौर में अपनी बेतुकी बातों से नेता-मंत्री देश को किस ओर ले जा रहे हैं?

कोरोना महामारी का असर बढ़ता ही जा रहा है। देश में हर रोज़ इसके मोटा-माटी 50,000 नए मामले दर्ज़ किए जा रहे हैं। देशभर के अलग-अलग हिस्सों में स्वास्थ्य व्यवस्था का हाल भी बुरा हो चुका है। यह बीमारी अब संभाले नहीं संभल रही है।

इस बीच जब से यह महामारी शुरू हुई है, तब से लेकर अब तक देश के नेताओं और मंत्रियों ने इसे कितनी गंभीरता से लिया है, इसका अंदाज़ा महामारी के इस दौर में उनके बेतुके, अतार्किक और असंवेदनशील बयानों से लगाया जा सकता है।

एक तरफ पूरा विश्व वैज्ञानिकता और तार्किकता की ओर कदम बढ़ा रहा है लेकिन भारत के अलग-अलग हिस्सों से नेता-मंत्री अपने बयानों और कृत्यों से इस महामारी की गंभीरता को सिरे से खारिज़ कर दे रहे हैं।

कोरोना महामारी के बीच बेतुके और अतार्किक बयान देने वाले नेता

एक ओर जहां उन्हें लोगों को इस महामारी से बचने, सोशल डिस्टेंसिंग और तमाम दिशा-निर्देशों का पालन करने के लिए प्रेरित करना चाहिए। वहां समय-समय पर उनकी ओर से कुछ-न-कुछ ऐसा कर दिया जा रहा है, जिससे आम लोगों के बीच महामारी को लेकर जो गंभीरता और बचाव की तैयारी होनी चाहिए, वह खत्म होती जा रही है।

WHO ने बार-बार अपने बयानों के ज़रिए कहा कि विश्न के तमाम नेताओं को इस महामारी से लड़ने का हल खोजने की ओर ध्यान देना चाहिए। इस महामारी को गंभीरता को समझना चाहिए लेकिन भारत में देश के प्रधानमंत्री से लेकर एक कार्यकर्ता स्तर तक के नेता ने महामारी को लेकर आम नागरिक में एक अतार्किकता और आस्था के नाम पर अवैज्ञानिकता को ठूसने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।

महमारी के शुरूआत से लेकर हाल में दिए गए ऐसे तमाम बयान हैं, जो यह साफ कर देते हैं कि भारत के नेताओं को इस महामारी के दौर में भी अपने जनता की कितनी फिक्र हैं।

प्रधानमंत्री के ताली-थाली बजवाने और दीया जलवाने से हुई शुरूआत

इसकी शुरूआत ‘जनता कर्फ्यू’ वाले दिन से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ताली-थाली बजाने के लिए दिए गए बयान से होती है। जनता कर्फ्यू के एक दिन पहले प्रधानमंत्री ने देश को संबोधित करते हुए कहा,

“22 मार्च (इसी दिन ‘जनता कर्फ्यू’ लगाया गया था) की शाम ठीक 5 बजे अपने घर के दरवाजे पर, खिड़की के पास या बालकनी में खड़े होकर 5 मिनट तक ताली बजाकर, थाली बजाकर ‘कोरोना वॉरियर्स’ के प्रति अपना धन्यवाद अर्पित करें।”

पीएम मोदी ने प्रशासन से भी शाम 5 बजे सायरन बजाकर लोगों को इसकी याद दिलाने के लिए कहा। हालांकि उसकी नहीं पड़ी लोग खुद ही इसके लिए पहले से तैयार थे।

जनता कर्फ्यू, तस्वीर साभार: सोशल मीडिया

इसके बाद जो हुआ उसे पूरे देश ने देखा जगह-जगह पर रैलियां निकल गई। ढोल-नगाड़े बजाए गए। लोगों ने सड़कों पर निकलकर नाच-गाना शुरू कर दिया। कई जगह तो स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं ने पूरी रैली निकाल दी। ऐसे में एक तरफ जहां सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना था और घरों रहना था, वहां सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ गई।

9 बजे, 9 मिनट का चैलेंज

प्रधानमंत्री यहीं नहीं रूके। एक बार फिर जब शाम पांच बजे पांच मिनट वाले आइडिया से भी मन नहीं भरा, तो उन्होंने 9 बजे, 9 मिनट वाले आइडिया की तरफ अपना रूख किया। उन्होंने कहा,

“5 अप्रैल की रात 9 बजे घर की सभी लाइटें बंद करके, घर के दरवाजे पर या बालकनी में खड़े रहकर 9 मिनट के लिए मोमबत्ती, दीया, टॉर्च या मोबाइल की फ्लैशलाइट जलाएं। चारों तरफ जब हर व्यक्ति एक-एक दीया जलाएगा, तब प्रकाश की उस महाशक्ति का एहसास होगा, जिसमें एक ही मकसद से हम सब लड़ रहे हैं।”

पटाखे फोड़ने से को लगी आग, तस्वीर साभार: सोशल मीडिया

फिर क्या? फिर वही हुआ। फिर से सोशल डिस्टेंशिंग की धज्जियां उड़ीं। इस बार लोगों ने पटाखें भी फोड़े। कई जगहों से आग लगने तक की खबरें और वीडियोज़ भी आईं।

कोरोना वॉरियर्स कहकर झूठे सम्मान से नहीं चलेगा काम

खैर, ‘कोरोना वॉरियर्स’ को लेकर इतने गंभीर नज़र आने वाले और उनके सम्मान में इतना कुछ कराने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछ तब नहीं किया। जब गुजरात पुलिस की कांस्टेबल सुनीता यादव जिन्हें हाल ही में दबाव में आकर इस्तीफा देना पड़ा है, क्योंकि उन्होंने गुजरात के स्वास्थ्य मंत्री के बेटे के दोस्तों को लॉकडाउन का उल्लंघन करने पर रोक लिया था।

प्रतीकात्मक तस्वीर ( बाएं-प्रधानमंत्री मोदी, दाएं- सुनीता यादव, ‘कोरोना वॉरियर’)

अब हर दूसरे दिन वो फेसबुक पर लाइव आकर खुद को बचाने की गुहार लगा रही हैं। उन्हें डर है कि उन्हें कुछ भी हो सकता है लेकिन इस पर प्रधानमंत्री चुप्पी साधे हुए हैं।

इसके अलावा फ्रंट लाइन कोरोना वर्कर्स को आज भी पूरी सुरक्षा किट नहीं मिल रही है लेकिन प्रधानमंत्री ने इस पर कोई ठोस टिप्पणी नहीं की है। इसके साथ ही ना जाने कितने डॉक्टर्स कितने ही दिनों तक बिना पीपीई किट के काम करते रहे। कई जगहों पर डॉक्टरों को कई दिनों तक सैलरी नहीं मिली लेकिन प्रधानमंत्री इस पर भी चुप हैं।

प्रवासी मज़दूरों के संबंध में आते रहे नेताओं के असंवेदनशील बयान

लॉकडाउन और कोविड-19 महामारी के बीच एक बड़ा संकंट प्रवासी मज़दूरों ने झेला। वे हज़ारों किलोमीटर पैदल यात्रा करते हुए अपने घरों को पहुंचे।

इस दौरान उनके साथ बहुत ही अमानवीय व्यवहार भी हुआ। बहुत से दैनिक मज़दूर बेरोज़गार हो गए। इस पलायन के दौरान कुल 198 मज़दूरों की मौत भी हो गई लेकिन सरकार और नेता-मंत्री यहां भी बेतुके बयान देने में पीछे नहीं रहे।

प्रवासी मज़दूरों के संबंध में देश के गृहमंत्री अमित शाह ने कहा,

“कुछ दुखद घटनाएं हुईं, जब लोगों (प्रवासी मज़दूरों) ने धैर्य खो दिया और पैदल यात्रा शुरू कर दी।”

प्रतीकात्मक तस्वीर

अब ऐसे में सवाल यह उठता है कि जब उन मज़दूरों के पास खाने को खाना नहीं था। जीवन जीने के लिए रोज़गार नहीं बचा था, तो वे धैर्य कैसे नहीं खोते?

इसी तरह प्रवासी मज़दूरों को लेकर एक और असंवेदनशील बयान बंगाल बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष की ओर से भी आया। उनका कहना था,

“श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में होने वाली मौतें छिटपुट घटनाएं हैं। क्या ट्रेनों में लोग नहीं मरते? इसके लिए रेलवे को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है।”

यहां भी सवाल यही है कि रेलवे के अव्यवस्था के कारण जब ऐसी मौतें हुई, तो उसका ज़िम्मेदार कौन होगा?

दिलीप घोष, पश्चिम बंगाल बीजेपी अध्यक्ष

‘हनुमान चालीसा’ का जाप करने से कोरोना हो जाएगा ठीक: साध्वी प्रज्ञा

भोपाल से बीजेपी सांसद साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ने लोगों से कोरोना को खत्म करने के लिए 5 अगस्त तक दिन में पांच बार हनुमान चालीसा का पाठ करने के लिए कहा है। उनका मानना है कि इससे कोरोना महामारी दुनिया से समाप्त हो जाएगी।

प्रज्ञा ठाकुर ने एक विडियो ट्वीट किया जिसमें उन्होंने कहा,

“जब लोग, देशभर में हिंदू एक स्वर में हनुमान चालीस का पाठ करेंगे तो यह निश्चित रूप से काम करेगा और हम कोरोना वायरस से मुक्त होंगे। यह भगवान राम से आपकी प्रार्थना होगी।”


ऐसा ही बयान कुछ दिनों पहले कांग्रेस नेता रमेश सक्सेना ने भी दिया था। उनके अनुसार,

“मैं यह दावे के साथ कह सकता हूं कि अगर किसी भी परिवार के सदस्य 11 बार हनुमान चालीसा का पाठ करने के लिए एक साथ बैठते हैं, जिसमें मुश्किल से आधे घंटे लगते हैं तो उन्हें कोरोना छू भी नहीं सकता है।”

रमेश सक्सेना, कांग्रेस नेता

मंदिर-मस्जिद खोलने को लेकर अतार्किक बयान

इस बीच मंदिर और मस्जिद दोनों ही जगह पूजा-पाठ करने और नमाज़ पढ़ने को लेकर भी कई नेताओं ने बयान सामने आए। इसमें ज़्यादातर बयानों में उनकी ओर से कहा गया कि ऐसा करने से कोरोना वायरस खत्म हो जाएगा।

रामेश्वर शर्मा, मध्य प्रदेश विधानसभा के प्रोटेम स्पीकर

अभी हाल ही में बीजेपी नेता और मध्य प्रदेश विधानसभा के प्रोटेम स्पीकर रामेश्वर शर्मा ने कहा कि कोरोना वायरस महामारी का अंत अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण कार्य की शुरुआत के साथ ही हो जाएगा। उनका कहना था,

“भगवान राम ने मानव जाति के कल्याण के लिए और उस समय राक्षसों को मारने के लिए पुनर्जन्म लिया था। राम मंदिर का निर्माण शुरू होते ही कोविड महामारी का विनाश भी शुरू हो जाएगा।”

इसके अलावा हाल ही में ईद की नमाज़ को लेकर सपा सांसद शफीकुर्रहमान बर्क ने भी मस्जिदों में नमाज़ पढ़ने की पैरवी की। उन्होंने कहा,

“जब तक देश के सभी मुसलमान मस्जिदों में जाकर नमाज पढ़कर दुआ नहीं मांगेंगे, तब तक कोरोना को नहीं भगाया जा सकता।”

शफीकुर्रहमान बर्क, सपा सांसद

एमपी सरकार ने उड़ाई सोशल डिस्टेंसिंग की धज्ज़ियां

उधर एमपी सरकार में मंत्रिमंडल के विस्तार के दौरान सोशल डिस्टेंसिंग की खूब धज़्जियां उड़ाई। सारे मंत्रियों और नेताओं में किसी ने भी सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं किया। इसके बाद यह तस्वीर सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुई थी।

इसी तरह कोरोना के शुरूआती दिनों में राज्यसभा सांसद रामदास अठावले ने ‘गो कोरोनो गो’ का नारा देकर अजीबों-गरीब काम किया था। यह वीडियो भी सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ था।

गौमूत्र है कोरोना वायरस का इलाज: हिंदू महासभा

कोरोना महामारी के शुरूआती दौर में हिंदू महासभा ने गौमूत्र पार्टी का आयोजन किया था। दिल्ली में हिंदूसभा ने कोरोना वायरस से बचने के लिए यह अनोखा ज़रिया ढूंढ़ा था। इस दौरान कई लोग पार्टी में शामिल हुए और गोमूत्र भी पिया।

गौमूत्र पार्टी की तस्वीर, तस्वीर साभार: सोशल मीडिया

अखिल भारत हिंदू महासभा की तरफ से यह दावा किया गया कि गौमूत्र पीकर कोरोना वायरस से बचा जा सकता है। इस पार्टी का आयोजन अखिल भारत हिंदू महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष स्वामी चक्रपाणि महाराज और राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राजीव कुमार आशीष की तरफ से किया गया था।

आस्था के नाम पर धार्मिक इवेंट्स की अपील और आयोजनों से बढ़ते खतरे की आशंका

झारखण्ड के गोड्डा से सांसद डॉ निशिकांत दुबे ने आम श्रद्धालुओं के लिए बाबा बैद्यनाथ मंदिर खोलने और श्रावणी मेला ना कराने लगाने के संदर्भ में झारखंड हाइकोर्ट के तीन जुलाई के फैसले को 7 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी। याचिका में कहा गया,

देवघर स्थित बाबा बैद्यनाथ मंदिर को अब तक झारखंड सरकार ने आम श्रद्धालुओं व भक्तों के लिए नहीं खोला है। पहले भी महामारी हुई थी लेकिन मंदिर को आम श्रद्धालुओं के लिए कभी बंद नहीं किया गया। श्रावणी मेले का आयोजन भी स्थगित नहीं किया गया था। उम्मीद है कि उन्हें और लाखों शिव भक्तों को इस मामले में न्याय मिलेगा।

एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने 18 जून 2020 को पुरी में इस साल रथ यात्रा पर प्रतिबंध लगा दिया था।

ऐसा कहते हुए कि इस यात्रा के रद्द होने से दुनिया भर में अनगिनत भक्तों की भावनाएं आहत हुईं। इस संंबंध में सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष पुनर्विचार याचिका दायर की गई।

इस याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने 22 जून 2020 को कड़ी शर्तों और हर संभव उपाय के साथ रथ यात्रा की अनुमति दे दी। इसके बाद 23 जून को प्रतिबंधों के बीच पुरी में यह रथ यात्रा भी आयोजित की गई।

चार धाम, तस्वीर साभार: सोशल मीडिया

हाल ही में उत्तराखण्ड सरकार ने अन्य राज्यों से आने वाले श्रद्धालुओं को भी चार धाम की यात्रा के लिए अनुमति दे दी है लेकिन इन सभी लोगों के पास उत्तराखण्ड आने के 72 घंटे पहले की आरटी-पीसीआर निगेटिव रिपोर्ट होनी चाहिए।

इससे पहले सिर्फ राज्य के लोगों को ही इसकी अनुमति थी।

आने वाले पांच अगस्त को अयोध्या के राम मंदिर का भूमि पूजन होना है। इस कार्यक्रम में प्रधानमंंत्री नरेंद्र मोदी खुद हिस्सा लेंगे।

इस संबंध में दायर एक पीआईएल में कहा गया कि राम मंदिर निर्माण के लिए होने वाला भूमि पूजन कोविड-19 के अनलॉक-2 की गाइडलाइन का उल्लंघन है। कहा गया था कि भूमि पूजन में लगभग 300 लोग एकत्र होंगे, जो  कोविड-19 के नियमों के विपरीत होगा।

हालांकि कोर्ट ने इसे कल्पनाओं पर आधारित बताते हुए खारिज़ कर दिया। कोर्ट ने आयोजकों और राज्य सरकार से अपेक्षा की है कि वे सोशल डिस्टेंसिंग के दिशा-निर्देशों के अनुसार ही यह कार्यक्रम करेंगे।

लेकिन सरकारों की ओर से बार-बार से सोशल डिस्टेंसिंग और महामारी का लेकर जिस तरह की असावधानी और असंवेदनशीलता देखने को मिली है ऐसे में यह सवाल और आशंका तो लाड़मी है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, तस्वीर साभार: गेटी इमेजेज

एक तरफ जहां प्रधानमंत्री लगातार बयान देते रहे हैं कि दो गज़ की दूरी बहुत ज़रूरी है। इस समय कोशिश कीजिए कि कम-से-कम घरों से बाहर निकलिए। वहीं, दूसरी तरफ बीजेपी के ही नेता, मंत्री और सांसद लगातार ऐसे चीज़ों और आयोजनों की पैरवी करते रहे हैं, जिससे भीड़ इकट्ठे होने की संभावना बढ़ जाती है।

इससे कोरोना संमक्रण के बढ़ने का खतरा भी बढ़ता जाता है। साथ ही जनप्रतिनिधियों की ओर से ऐसे कामों को बढ़ावा देना लोगों को भी ऐसे काम करने के लिए प्रेरित करता है, जो अभी खतरनाक स्थिति पैदा कर सकता है।

खड़े होते हैं कुछ गंभीर सवाल

अब ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि क्या सरकार सचमुच कोरोना महामारी को लेकर गंभीर है? जहां एक तरफ देश में हर रोज़ तकरीबन 50,000 के करीब नए मामले आ रहे हैं।

वहां ऐसे धार्मिक आयोजनों और यात्राओं की अनुमति देना और इसके लिए सांसदों का कोर्ट तक में अपील करना कितना ठीक है? क्या कुछ दिनों के लिए ये धार्मिक कार्यक्रम रोके नहीं जा सकते हैं? जब पूरा देश खतरे में है।

देश के प्रधानमंत्री ऐसे धार्मिक कार्यक्रमों में शामिल होकर लोगों को क्या संदेश देंगे? जिनसे वे बहुत ज़रूरी होने पर ही घरों से बाहर निकलने की अपील करते हैं।

क्या प्रवासी मज़दूरों की व्यथा, बेरोज़गार होते लोगों की दिक्कतों, असम और बिहार में आने वाले बाढ़ और देश के अलग-अलग हिस्सों खासकर बिहार में कोरोना के इलाज के लिए तरस रहे मरीज़ों को लेकर इतनी ही तेज़ी दिखाने की ज़रूरत नहीं है?

इसके अलावा एक बड़ा सवाल यह भी है कि महामारी के इस दौर हमारे जनप्रतिनिधि हमें किस ओर ले जा रहे हैं? जब सरकारें और नेता खुद जनता को सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने और बहुत ज़्यादा ज़रूरी होने पर ही घरों से बाहर निकलने की सलाह दे रहे हैं।

जहां महामारी हमें तार्किकता और वैज्ञानिकता की ओर रूख करने पर मजबूर कर रही है। ऐसे दौर में इन प्रतिनिधियों की ऐसी गैर-ज़िम्मेदाराना और बेतुकी बातें कहीं-न-कहीं इस महामारी की गंभीरता को कम कर रही हैं, जो हाल के समय में खतरनाक स्थिति पैदा कर सकती है।

ऐसे ज़्यादातर बेतुके, गैर-ज़िम्मेदाराना बयान और कृत्य सत्ताधारी दल के नेताओं के ही हैं। ऐसे में, यह सवाल खड़ा हेता है कि क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बात खुद उन्हीं के नेताओं, मंत्रियों और कार्यकर्ताओं तक नहीं पहुंच पा रही है?

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