कोरोना वायरस वैश्विक महामारी ने सम्पूर्ण विश्व की विभिन्न व्यस्थाओं को किसी-न-किसी रूप में प्रभावित किया है। शिक्षा-व्यवस्था इससे परे नहीं है। भारत में गरीब तबके के साथ-साथ सभी वर्गों के बच्चे शैक्षिक रूप से प्रभावित ज़रूर हुए हैं लेकिन यहां मैं लड़कियों की शिक्षा के विषय पर बात करना चाहूंगा।
ग्रामीण इलाकों में लड़कियों की स्कूली पहुंच भी है मुश्किल
देश भर में स्कूलों के बंद होने के बाद से ही ऑनलाइन पढ़ाई तो चल रही है लेकिन इस बात को स्वीकार करना भी ज़रूरी है कि ऑनलाइन पढ़ाई कभी भी स्कूली शिक्षा का विकल्प नहीं हो सकती है।
भारत में ग्रामीण अंचलों में आज भी लड़कियों को लड़कों के समान आज़ादी नहीं मिल पाती है। ऐसे में वह लड़कियां जो कुछ महीनों पहले विद्यालयों में शिक्षा ग्रहण कर रही थीं, उनका विद्यालयों के खुलने पर फिर से उसकी तरफ मुड़ना एक बड़ी चुनौती होगी।
आज भी ग्रामीण भारत के गरीब तबकों में लड़कियों को घरेलू कार्य करने के लिए ही ज़्यादा प्रेरित किया जाता है। आप आसानी से माता-पिता, बुज़ुर्गों से लड़कियों को आगाह करते हुए इस बात को सुन पाएंगे कि “खाना बनाना, झाड़ू लगाना” सीख लो नहीं तो ससुराल जाओगी तो बहुत बेइज़्ज़ती झेलोगी।
ऐसी स्थिति में, वे लड़कियां जो महीनों से विद्यालयों से दूर हैं, उनके दोबारा विद्यालयों में लौटने में काफी अड़चनें आ सकती हैं।
अनिश्चितता के बीच लड़कियों की शादी के प्रबंध हो रहे हैं
खासकर पिछड़े तबकों की लड़कियां इतने दिनों से घरेलू माहौल में ढलकर इसकी अभ्यस्त हो चुकी हैं जो स्वयं प्रेरित होकर दोबारा विद्यालय शायद ही जाएं।
उनमें से अधिकांश अभिभावक जो पहले अपनी बच्चियों को विद्यालय भेजते थे, उनकी मानसिकता में भी बड़ा परिवर्तन हो सकता है। हो सकता है कि वह दोबारा लड़कियों को विद्यालय भेजने से कतराएं।
अधिकांश बीस-इक्कीस साल की लड़कियां जो बड़ी कक्षाओं में थीं और कोरोना से पूर्व नियमित कक्षाओं में जाती थीं। उनके अभिभावक विद्यालय कब खुलेंगे, इस अनिश्चितता के कारण उनकी बढ़ती उम्र को देखते हुए उनकी शादी के प्रबंध में लगे हैं।
उनका मानना है कि विद्यालय कब खुलेंगे इसको लेकर कुछ भी निश्चित नहीं है। ऐसे में, लड़कियों की शादी ही कर दी जाए तो अच्छा रहेगा।
यद्यपि विवाह होने से यह नहीं कहा जा सकता है कि इससे शिक्षा बाधित ही होगी लेकिन अधिकांशतः भारतीय ग्रामीण परिवेश में विवाह के बाद लड़कियों को घरेलू कार्यों तक सीमित कर दिया जाता है।
विद्यालय खुलने के बाद लड़कियों को उसकी तरफ कैसे मोड़ा जाए
लड़कियों की इन सब समस्याओं को देखते हुए यह बहुत ही ज़िम्मेदारी का विषय है कि उन्हें विद्यालय खुलने पर कैसे विद्यालय की तरफ मोड़ा जाए? इसके लिए बड़े स्तर पर जनजागरूकता की ज़रूरत होगी।
हमें डिजिटल, समाचार पत्रों आदि के माध्यम से लोगों को शिक्षा के महत्व को बताते हुए यह बताना होगा कि वह दोबारा अपनी लड़कियों को विद्यालयों में भेजें।
विद्यालय प्रशासन को भी दोबारा विद्यालयों के खुलने पर अपने विद्यालय की छात्राओं से सम्पर्क करना होगा। उन्हें अभिभावकों के साथ मीटिंग के माध्यम से जागरूक करना होगा।
हमें इस बात का ध्यान रखना होगा कि किसी भी स्थिति में बालिकाओं की शिक्षा बाधित होने से रुके। हमें विद्यालयों के खुलने के बाद उन्हें विद्यालयों की तरफ हर हाल में मोड़ना होगा।