उत्तर प्रदेश में विद्यालय खुल चुके हैं। अध्यापक विद्यालय पहुंच रहा है। यातायात ना के बराबर हैं मगर महिला शिक्षकों को भी अपने गोद में बच्चे को लेकर विद्यालय जाना पड़ रहा है। यह सोचे बिना कि भविष्य का हाल क्या होगा?
विद्यालयों को क्वॉरेंटाइन सेंटर बनाए गए थे। प्रवासी मज़दूरों को उन्ही विद्यालयों में ठहराया गया था। अब जब स्कूल खुल चुके हैं, तो ना उनका सैनिटाइज़ेशन हुआ है और ना ही साफ-सफाई, जो कि ज़रूरी थी।
अभी दो दिन पहले ही मेरे तैनाती गाँव में कोरोना पॉज़िटिव मरीज़ मिला है। गाँव में हड़कंप मचा हुआ है। अपनी जान को लेकर सभी भयभीत हैं।
कुछ दिन पहले ही मिड डे मील के प्राधिकार पत्र का वितरण हमने विद्यालय में किया था। तमाम कोशिशों के बाद भी भीड़ ऊपर ही चढ़ी आ रही थी। ऐसे में डर बना है कि कहीं कोरोना की चपेट में वे शिक्षक ना आ जाएं जो अब तक स्वस्थ थे मगर सुनने वाला कौन है? कोई नहीं।
विद्यालय के सैनिटाइज़ेशन के आदेश शासन स्तर से हुए थे मगर शायद ही पूरे उत्तर प्रदेश में एक भी विद्यालय का सैनिटाइज़ेशन हुआ हो। शिक्षकों को बिना किसी चिकित्सा सुविधा के गाँव में उतार दिया गया है। ना मास्क की उपलब्धता है और ना ही PPE किट की उपलब्धता है।
बिना सुरक्षा उपकरणों के भीड़ में उतार देना ठीक ऐसा है जैसे लाशों की ढेर पर पटक देना। सरकार की अदूरदर्शिता का परिणाम है कि तमाम शिक्षक साथी अब तक कोरोना की चपेट में आ चुके हैं।
ब्लॉक संसाधन केंद्रों पर उमड़ती भीड़ का दोषी कौन?
ब्लॉक संसाधन केंद्रों पर मानव संपदा संशोधन का कार्य चल रहा है। कार्यलयों की वास्तविक स्थिति को देखा जाए तो सोशल डिस्टेंसिंग ना के बराबर है। सरकार की ओर से रोज़ आदेश जारी किए जा रहे हैं कि 15 दिन के अंदर समस्त संशोधन पूर्ण ना हुए तो वेतन रोक दिया जाएगा।
लोगों में वेतन को लेकर खौफ है कि यदि इस महामारी में भी वेतन रुक गया तो खाएंगे क्या? एक ओर सरकार से आदेश जारी होते हैं कि किसी का वेतन ना रोका जाए, तो वहीं दूसरी ओर ऐसे आदेश सरकार पर सवालिया निशान खड़े करते हैं। क्या यह समझ लिया जाए कि अधिकारियों ने इस आपदा को अवसर समझ लिया है?
एक ओर प्रधानमंत्री कहते हैं कि आवश्यक होने पर ही घरों से निकलें और कार्यालयों में भीड़ ना लगाएं, रोस्टर व्यवस्था का पालन करें। वहीं, बेसिक शिक्षा के अधिकारी लाखों शिक्षकों की जान के साथ खेल रहें हैं।
अधिकारियों की हठधर्मिता लाखों शिक्षकों की ज़िंदगी के साथ खेल रही है
अधिकारियों की हठधर्मिता न जाने कितने शिक्षकों को कोरोना की चपेट में ले लेगी। एसी कमरे, सामने मेज पर रखी 1 लीटर की सेनेटाइजर की बोतल और चक्के वाली कुर्सी पर बैठे अधिकारियों को भला क्या मालूम वास्तविक हकीकत।
उनको तो सब हरा हरा दिखाई देता है। तमाम शिक्षक संगठनों द्वारा दी गई चिट्ठी को कूड़े के डिब्बे में फेंक दिया गया है शायद। ना उन पर कोई विचार किया जाता है और ना ही कोई वार्ता।
शिक्षा मंत्री का एक ऑडियो वायरल हुआ था कुछ दिन पूर्व, जिसमें वो एक महिला से कह रहे थे, “घर बैठे वेतन नहीं देंगे। यदि स्कूल एक साल तक नहीं खुले तो वेतन एक साल तक घर बैठकर ही लोगे? घर से निकलना पड़ेगा। अन्य विभाग के लोग हमसे प्रश्न करते हैं कि शिक्षक क्यों घरों में हैं? यदि आपको घर से नहीं निकलना है तो लिखकर दे दीजिए कि हम एक साल तक वेतन नहीं लेंगे।”
यह प्रदेश के शिक्षा मंत्री के शब्द हैं। उनके भाव से झलकता है कि शिक्षकों को स्कूल भेजने का उन पर भारी दबाव है। भले ही स्कूल में उनका कोई कार्य उस स्तर का हो अथवा ना हो परन्तु वे स्कूल भेजेंगे, क्योंकि अन्य विभाग के लोग भेजे जा रहे हैं।
मेरी समझ से परे है कि अन्य विभाग के लोग कार्यालय इसलिए भेजे जा रहे हैं, क्योंकि उनके कार्य घर से संपादित नहीं हो सकते हैं मगर शिक्षक तो घर से ही ऑनलाइन शिक्षा दे रहा है।
सुप्रीम कोर्ट बंद है, हाई कोर्ट बंद है। सुनवाई वर्चुअल कोर्ट के रूप में हो रही है। संसद और विधानसभाएं भी बंद हैं। सरकार का उद्देश्य होना चाहिए कि वह अपने कर्मचारियों को सुरक्षित रखते हुए उनसे कार्य ले, ना कि उनकी जान जोखिम में डालकर उनसे आग पर चलने को कह दे।
पता नहीं नीति निर्माताओं की सोच क्या है मगर मेरा समस्त शिक्षक परिवार के साथियों से कहना है कि अपनी सुरक्षा स्वयं करें। सरकार के भरोसे ना रहें, हो सकता है सरकार हमारे भरोसे बैठी हो। वर्तमान समय में स्वयं को कोरोना से बचाकर रखना भी सही मायनों में देहभक्ति है।
स्वस्थ रहें, सजग रहें। मास्क का प्रयोग करें, भीड़भाड़ वाले स्थानों में जाने से बचें या दो गज़ की दूरी बनाकर रखें।