हाल ही में मुरादाबाद, सिविललाइंस के अशोनगर इलाके में एक शख्स द्वारा जाति के बाहर विवाह करना उसके लिए पीड़ा का कारण बन गया। उसके शादी की खबर सुनते ही समाज के ठेकेदारों नें बिरादरी पंचायत का आयोजन कर उसका हुक्का-पानी बन्द करने का आदेश देते हुए सामाजिक बहिष्कार की सजा सुनाई।
पंचायत ने पचास हज़ार रुपये के जुर्माने के साथ दुल्हन के नौकरी पर भी पाबंदी लगाई है। युगल ने थाने में पहुचकर सामाजिक बहिष्कार की बात बताई और अब पुलिस भी पड़ताल में जुटी है लेकिन कितने ही आश्चर्य की बात है कि हम भारतीय राधा-कृष्ण की प्रेम कहानियां सुनते हुए बड़े हुए हैं फिर भी हम प्रेम-विवाहों को खासकर अन्तर्जातीय विवाहों को अब भी स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं।
समाज प्रेम को स्वीकर करने से हिचकता क्यों है?
यह बहुत ही दुखद और सोचनीय है कि हमारा समाज उस प्रेम को, जो सृष्टि का आधार और शाश्वत है, उसे स्वीकार नहीं करता है। आए दिन हम समाचार-पत्रों में ऐसे प्रेमियों की हत्याओं की खबरे पढ़ते रहते हैं जिसे ‘आनर-किलिंग’ की संज्ञा दी जाती है।
आखिर हमारा समाज यह क्यों नहीं सोचता कि जो लोग प्रेम में हैं उनको प्रताड़ित करके वे अपने ही समाज के अंग या यूं कहें अपने वात्सल्य प्रेम को खत्म करते रहता है?
आखिर समाज यह क्यों नहीं समझता कि जो प्रेम में होता है, वह निश्चित ही पहले से ज़िम्मेदार, हिम्मती आदि गुणों का स्वामी बनता जाता है जो समाज के लिए हितकारी ही है।
जाति व्यवस्था है प्रेम को स्वीकार ना करने की जड़
इस सामजिक अस्वीकृति का एक बड़ा कारण हमारी जाति व्यवस्था है। ऐसे लोग जो अलग जाति के लोगों के साथ प्रेम करते हैं, उनके अभिभावक या यूं कहें समाज ही उन्हें अनेक प्रकार के ताने सुनाता है। उनके बच्चे भले ही एक-दूसरे के प्रेम में तड़पते रहें लेकिन वे सामाजिक प्रतिष्ठा नीची गिरने के डर से अपने वात्सल्य प्रेम की बलि चढ़ाने से नहीं कतराते।
संवैधानिक दृष्टि से भले ही अलग-अलग जातियों में विवाह की कोई रोक ना हो लेकिन हमारे समाज का एक बड़ा हिस्सा आज भी इसे स्वीकार नहीं करता है। इसके साथ ही ऐसे प्रेम विवाहों की अस्वीकृति का एक दूसरा बड़ा कारण दहेज प्रथा है। यह भी सामाजिक प्रतिष्ठा से जुड़ा विषय है। हालांकि कानूनी रूप से आज दहेज अवैध है लेकिन फिर भी उपहार के नाम पर चोरी छुपे लोग दहेज का लेन-देन करते रहते हैं।
दहेज प्रथा भी है एक बड़ा कारण
भारतीय ग्रामीण सहित उच्च समाज में आज भी अधिक दहेज की प्राप्ति प्रतिष्ठा के आधार के रूप में देखा जाता है। अभिभावकों को प्रेम को स्वीकार करके प्रेमियों को शादी के जोड़े में बांधने की स्वीकृति देनें में इस बात का भी डर रहता है कि कहीं उन्हें दहेज कम ना मिले, क्योंकि प्रेम विवाह में प्रेमी युगल की ही प्रधानता रहती है।
ये प्रेमी अनेक झंझावतों को सहते हुए शादी की दहलीज तक पहुंचते हैं, तो उनमें हिम्मत बढ़ी होती है। वे अपने प्रेम के खातिर इस बात को कहने से नहीं झिझकते की वे दहेज नहीं लेंगे।
सोचिए कितने आश्चर्य का विषय है कि यह समस्याएं मसलन जाति प्रथा, दहेज प्रथा आदि हमारे समाज के लिए कलंक हैं इनको रोकने के लिए सख्त कानून भी बने हैं। इन्हें समाप्त करने के लिए आंदोलन भी हुए हैं लेकिन चोरी छुपे अब भी यह अवैध प्रथाएं कहीं-न-कहीं चलती दिख जाती हैं।
प्रेम विवाह जाति और दहेज प्रथा का कर सकता है अंत
फिर भी एक छोटा सा कार्य अर्थात् अगर इस एक प्रेम विवाह को स्वीकृति मिल जाए तो निश्चित ही यह समस्याएं काफी हद तक खत्म हो जाएंगी। आखिर कौन-सा प्रेमी युगल जाति के नाम पर अपने प्रेमी को खोना चाहेगा? आखिर कौन-सा प्रेमी अपने प्रेमी को दहेज के नाम पर परेशान करेगा?
हमें निश्चित ही इस चीज़ को बड़े सेलिब्रेटियों से सीखना होगा। उनकी शादियां अक्सर प्रेम विवाह की होती हैं। उनकी सफलता का कारण उनकी बड़ी प्रतिष्ठा का होना ही है, क्योंकि उन्हें इस बात का डर नहीं रहता कि उनकी प्रतिष्ठा का ह्रास होगा। उनकी प्रतिष्ठा पहले से ही उच्च स्तर की होती है जिसके शायद ही खत्म होने के आसार रहते हों।
हालांकि बहुसंख्यक भारतीय समाज की प्रतिष्ठा उन सेलिब्रेटियों के स्तर की नहीं है, फिर भी हमें उनसे थोड़ा अलग हटकर यह सीखना चाहिए कि प्रेम विवाहों को सामाजिक प्रतिष्ठा का विषय ही नहीं बनाना चाहिए। हमें प्रेम को सकारात्मक दृष्टि से लेना होगा। आखिर हम माता-पिता, पिता-पुत्र, भाई-बहन आदि के प्रेम को जब अच्छा समझते हैं तो क्यों ना भविष्य के पति-पत्नी बनने वाले इस प्रेम को हम अच्छी नज़र से देखें?
युवाओं को आना होगा आगे
आज के युवा जो प्रेम में हैं या कभी रहे हों उन्हें निश्चित ही इस स्थिति को बदलने के प्रयास करना होगा। इन युवाओं को जो भविष्य में किसी युवा के अभिभावक बनेंगे और मिलकर एक समाज बनाएंगे उन्हें अपने बच्चों को यह छूट देनी होगी।
उन्हें ज़रूर इस चीज का ध्यान रखना चाहिए कि युवावस्था में प्रेम के लिए जो समस्याएं उन्होंने झेली है, वो समस्याएं उनके बच्चों को ना झेलनी पड़े। धीरे-धीरे ही सही लेकिन समाज इससे ज़रूर बदलेगा और प्रेम को स्वीकृति मिलनी भी शुरू होगी।
ऐसी हज़ारों फिल्में देखते, हजारों कहानियां सुनते हम पले बढ़े हैं। उन फिल्मों और कहानियों में हम प्रेमी-प्रेमिका के पात्र के रूप में कल्पना करके खुद को रखते भी हैं और चाहते भी हैं कि प्रेमी-प्रेमिका एक दूसरे से मिल जाएं। जब हम कल्पना कर सकते हैं तो वास्तविक जीवन में थोड़ी कठिनाई से ही सही लेकिन लागू भी कर सकते हैं।
जब एक बार प्रेम को स्वीकृति मिलनी शुरू हो जाएगी तो धीरे-धीरे यह समाज का एक अंग बन जाएगा। याद रखिए हर काम शुरू होने से पहले कठिन लगता है। सोचिए वह कितना खूबसूरत समाज होगा जहां प्रेम विवाहों और अंतर्जातीय प्रेम विवाहों को समाज स्वीकार करेगा।