सुशांत सिंह राजपूत के जाने के बाद ऐसा लग रहा है जैसे अपने बीच का कोई चला गया हो। जैसे कि वह हम में से ही कोई एक था, हमारे जैसा ही था। ‘छोटे शहर’ वालों की तरह ही सपने देखा करता था।
बंद आंखों वाले सपने नहीं, बल्कि वो वाले सपने जिसके बारे में पूर्व राष्ट्रपति कलाम की उक्ति है, “सपने वो नहीं जो आप सोने के बाद देखते हैं, सपने वो होते हैं जो आपको सोने नहीं देते।”
छोटे शहर के लोग खुली आंखों से सपने देखते हैं
ये ‘छोटे शहर’ वाले खुली आंखों से ही सपने देखते हैं लेकिन सपने पूरा होने के बाद भी इनकी जद्दोजहद खत्म नहीं होती, जैसे सुशांत की भी नहीं हुई।
परिवारवाद, कुनबापरस्ती, लॉबी सिर्फ बॉलीवुड में ही नहीं, बल्कि हमारे आसपास भी मौजूद हैं, जिसे हम में से कई अपने ऑफिस, कॉलेज या परिवार में झेल रहे हैं। जैसे- आइसोलेशन, इग्नोरेंस और बुलीइंग कर मानसिक प्रताड़ना।
आइसोलेट और इग्नोरेंस
जब डॉमिनेंट लोग मिलकर किसी लॉबी के बाहर के लोगों को अलग-थलग कर देते हैं।
जैसे:
- ऑफिस में ग्रुप से बाहर रखना, किसी पार्टी सेलिब्रेशन में इन्वाइट ना करना और अगर इन्वाइट किया तो पार्टी में इग्नोर करना।
- ऑफिशियल मीटिंग के दौरान सबकी तारीफ करना और लॉबी के बाहर के व्यक्ति को मीठे शब्दों में नसीहत देना।
असाइनमेंट्स के दौरान आइसोलेट करना
- ऑफिस में किसी असाइनमेंट्स पर लॉबी वालों का एक साथ असाइनमेंट पूरा करना और लॉबी से बाहर वाले/वाली के साथ कोई काम करने को तैयार नहीं और अगर कोई साथ काम करने को अपने साथ ले भी ले तो अपनी बॉडी लैंग्वेज से यह साबित करना कि ‘तुम’ इनकॉम्पिटेन्ट हो।
- लॉबी के बाहर वालों के साथ नियमों का कड़ाई से पालन करना।
बुलीइंग करना
इसे हिन्दी में दादागिरी करना कहते हैं लेकिन असल ज़िन्दगी में शाहरुख खान, सलमान खान, करण जौहर जैसा दादागिरी करने वाले लोग हिन्दी सिनेमा के विलेन की तरह हफ्ता मांगकर दादागिरी नहीं करते हैं, बल्कि बहुत होशियारी से इस काम को अंजाम देते हैं। जैसे-
- मज़ाक के ज़रिये नीचा दिखाना जैसे- शाहरुख खान और शाहिद कपूर ने अवॉर्ड शो में सुशांत के साथ किया।
- मीडिया के ज़रिये प्लांड स्टोरी छपवाना। यह भी सत्य है कि बड़े-बड़े लॉबिस्ट का मीडिया से सांठगांठ होता है।
- ऑफिस वालों के लिए बुलीइंग करने के लिए व्हाट्सएप स्टेटस सबसे बड़ा साधन बन गया है। बिना नाम लिखे, सीधे तौर बिना किसी इंसीडेंट का ज़िक्र किए स्टेटस के जरिये मानसिक तनाव देना, फेसबुक पर बिना नाम लिखे, बुलीइंग करना और सेम लॉबी के लोगों द्वारा उसे लाइक, शेयर करना ताकि अगले को मानसिक रूप से तोड़ा जा सके और लगे हाथ सबूत भी ना हो। ऐसा इसलिए क्योंकि ना नाम लिखा और ना ही किसी घटना का ज़िक्र किया।
मेंटल या ‘एक्सट्रा सेंसिटिव’ या ‘एक्सट्रा इमोशनल’ साबित करने की पूरी कोशिश करना
डॉमिनेंट लोग ‘उसके/उसकी’ व्यक्तित्व में कमी निकालते हैं जैसे-
- बड़े ऑफिस में या चकाचौंध वाले आवोहवा को एडजस्ट करने की क्षमता नहीं।
- या फिर अपने समकालीन के बीच ‘उसे’ अक्षम बताना (समकालीन वे जो लॉबी के हों)।
- ‘उसे’ मेंटल या साइको बताना।
- यह साबित करना कि ‘तुम’ अपने समकालीन में अक्षम हो।
- यहां ‘तुम’ सब चीज़ों को लेकर बहुत नकारात्मक हो। यह एहसास दिलवाना कि कमी तुम में है।
- काम के प्रति गंभीरता का माखौल बनाना।
भाषा को लेकर मज़ाक
- ऑफिस में अगर इंग्लिश नहीं आती या उच्चारण अच्छा नहीं है या कहीं लिखते समय इंग्लिश की स्पेलिंग में गलती हो गई हो, तो मीठे शब्दों में उसका मज़ाक बनाना और नसीहत देना।
- लॉबी के लोगों की गलती इग्नोर कर देना।
अनावश्यक तारीफ
- लॉबी के लोगों द्वारा किए गए कामों की अनावश्यक तारीफ करना, उनके काम को बढ़ाना-चढ़ाना। अगर लॉबी और लॉबी के बाहर के लोग एक साथ कहीं इकठ्ठे हैं, तो लॉबी वालों की काम की तारीफ करना और लॉबी के बाहर वालों को लो (Low) फील करवाना। इनमें लॉबी वालों को अवॉर्ड दिलवाना आदि भी शामिल है।
- ऑफ़िस में भी कई बार चहेतों को अवार्ड दिया जाता है।
और आखिरकार वी एंड अदर्रस की बायनरी तैयार कर दी जाती है: (The binary of We & Others)
लॉबी के लोग ‘वी’ हो जाते हैं और लॉबी के बाहर वाले ‘अदर्रस’ या सो कॉल्ड आउटसाइडर। कोई भी सो कॉल्ड आउटसाइडर अगर इनकी फूडड़ता, बुलीइंग को हंसकर स्वीकार नहीं करे, तो उसे यूं ही ‘इमोशनली लिंच’ किया जाता है। अगर वह तथाकथित आउटसाइडर इनकी बुलीइंग को अपना ‘सौभाग्य’ मान लें तो सर्वाइव कर सकता है।
ये सब हर दिन होता है। पुलिस के लिए चाकू और बंदूक से हुई हत्या का पता लगाना आसान है, क्योकिं प्रत्यक्ष को प्रमाण की क्या आवश्यकता है, जो भी है सामने है लेकिन जब किसी की हत्या संस्थागत हत्या (Institutional Murder) हो, किसी स्ट्रक्चर या व्यवस्था से तंग आकर हुई हो, तो बड़ा कठिन है कातिल को सज़ा दिलवाना।
कलीम आजिज़ लिखते हैं;
‘दामन पे कोई छींट ना खंजर पे कोई दाग़
तुम क़त्ल करे हो या करामात करे हो’
शर्म भी तब शर्मिंदा हो जाती है जब ‘सुशांत’ जैसों के जाने के बाद ये लॉबिस्ट दुःख भी जताते हैं जैसे बॉलीबुड लॉबी ने जताया।