पिछले ग्यारह महीने सभी शैक्षणिक संस्थान बंद है। कॉलेज और हायर सेकेंड्री के बच्चे तो इतने सक्षम हैं कि वे ऑनलाइन क्लासेज़ के ज़रिए साथ पढ़ाई कर लेते हैं लेकिन जूनियर क्लासेज़ के बच्चों के ज़हन पर इसका अलग असर पड़ रहा है।
ऑनलाइन क्लासेस से बच्चों मनोस्थिति पर पड़ रहा है प्रभाव
लॉकडाउन के दौरान बच्चों की पढ़ाई बाधित ना हो, इसके लिए स्कूलों ने ऑनलाइन क्लासेस लेने का निर्णय लिया गया। स्कूल के माहौल में अब तक पढ़ने वाले बच्चों के लिए ऑनलाइन क्लास करना बिल्कुल नया अनुभव है और वे अभी भी इसके साथ एडजस्ट करने की कोशिश कर रहे हैं।
ऐसे में, घरों में बंद बच्चों की मनोस्थिति पर भी काफी गहरा प्रभाव पढ़ रहा है। वे हर दिन अपने अभिभावकों से स्कूल जाने को लेकर सवाल करते हैं। साथ ही ऑनलाइन क्लासेस में से अगर एक भी क्लास मिस हो जाए, तो वे बेहद निराश और परेशान हो जाते हैं। ऐसे में उनकी मनोस्थिति को समझने की ज़रूरत है।
कंकड़बाग के रहने वाले सुरेश (काल्पनिक नाम) ने मनोचिकित्सक को कॉल कर अपनी बेटी के लिए मदद मांगी। उन्होंने बताया कि उनकी बेटी कक्षा सातवीं में पढ़ती है। शुरुआत में ऑनलाइन क्लासेस बड़े मन लगाकर अटेंड करती थी लेकिन पिछले एक महीने में उसके बर्ताव में बदलाव आया है।
वे आगे बताते हैं कि ऑनलाइन क्लास के दौरान उसका ध्यान क्लास में नहीं रहता है। चीजें भुलने लगी है और काफी चिड़चिड़ापन भी रहता है। अभी बच्ची की मन को शांत रखने और एकाग्रता बढ़ाने के लिए काउंसिलंग की जा रही है।
राजेंद्र नगर का रहने वाला सोनू (काल्पनिक नाम) जिस दिन ऑनलाइन क्लास मिस कर जाता है, उस दिन दिनभर चिंतित हो कर खाना-पीना छोड़ देता है।
उसकी माँ ने मनोचिकित्सक को बताया कि स्कूल में होने वाले ऑनलाइन क्लासेस में एक समय के बाद एंट्री बंद हो जाती है और अगर नेटवर्क में दिकक्त हो तो कई बार क्लास छोड़ना पड़ता है। बच्चों के पास दोबारा जुड़ने का ऑप्शन नहीं होने की वजह से बच्चा काफी परेशान रहता है और क्लास मिस करने की वजह से कई बार खान-पीना छोड़ देता है।
वंचित तबके के बच्चे ऑनलाइन क्लास के खेल से हैं बाहर
बचपन बचाओ आंदोलन के राज्य संयोजक मोख्तरूल हक बताते हैं कि लॉकडाउन के दौरान बच्चों की पढ़ाई में कोई परेशानी ना हो इसके लिए ऑनलाइन पढ़ाने का उपाय निकाला गया। बिहार में बड़ी संख्या में सरकारी स्कूलों और प्राइवेट स्कूलों में बच्चे शिक्षा प्राप्त करते हैं।
ऐसे में, प्राइवेट स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों की पढ़ाई में उनके माता-पिता मदद करते हैं लेकिन सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों की पारिवारिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं है कि वे स्मार्टफोन और इंटरनेट कंनेक्शन रख सकें।
जुलाई तक के आंकड़ों की बात करें तो बीस लाख से ज़्यादा प्रवासी मज़दूर अपने परिवारों के साथ वापस आए हैं। वहीं, दूसरी तरफ सरकार की ओर से 1,28,668 बच्चों को चिह्नित किया गया है जिसमें वे बच्चे जो गाँवों में रहकर स्कूल नहीं जाते और प्रवासी मज़दूरों के बच्चे शामिल हैं।
ऐसे में, सरकार इनके नामांकन की बात कर रही है जबकि इन्हें शिक्षित करने की कोई व्यवस्था अब तक नहीं हुई है। ऑनलाइन पढ़ने और घर में बंद रहने की वजह से बच्चों में नकारात्मकता, चिड़चिड़ापन, दिनचर्या में बदलाव, पढ़ाई को लेकर प्रेशर भी बढ़ा है।
अगर 0-18 साल के बच्चों की बात करें, तो बिहार में इनकी संख्या 46 प्रतिशत है। वहीं, एक लाख पांच हज़ार के लगभग आंगनबाड़ी केंद्र हैं जहां 0-6 साल के बच्चों को मुफ्त की शिक्षा मिलती है।
इसके अलावा राइट टू एजुकेशन एक्ट के अंतर्गत 6-14 साल के बच्चों की शिक्षा की बात होती है। टोले और गरीब घरों के बच्चे अभी भी शिक्षा से वंचित हैं और ऑनलाइन शिक्षा के इस दौर में वे इससे और दूर होते जा रहे हैं। ऐसे में, यह बच्चे बाल मज़दूरी, बाल विवाह और अन्य हिंसा के शिकार होते हैं।
बच्चे हो रहे हैं अकेलेपन का शिकार
मनोचिकित्सक डॉ बिंदा सिंह का कहना है कि बच्चों की उम्र ऐसी होती है जहां खेलना, खाना और पढ़ना अहम होता है। अभी के इस माहौल में बच्चों की जिंदगी मोनोटोनस हो गयी है। वे धीरे-धारे अकेलेपन का शिकार भी हो रहे हैं। पढ़ाई से लेकर अन्य एक्टिवटी के लिए ऑनलाइन क्लासेस का सहारा लेना पड़ रहा है।
बच्चों के रुटीन लाइफ में भी बदलाव आया है। वहीं, पैरेंट्स पर भी बच्चों की पढ़ाई को लेकर प्रेशर बढ़ा है। ऑनलाइन क्लासेस में बच्चे कितना लाभान्वित हो रहे हैं, इसके लिए भी अभिभावकों को बच्चों की मनोस्थिति को टटोलने की ज़रूरत है। यह समय का एक ऐसा पड़ाव है जहां धैर्य के साथ बच्चों के साथ समय बिताना बेहद अहम है।
वहीं मोवैज्ञानिक डॉ मनोज कुमार कहते हैं कि अभी बच्चे आर्टिफिशियल इमोशन के ज़रिए लर्निंग कर रहे हैं। लर्निंग के लिए मोटिवेशन का होना बेहद ज़रूरी है। जब बच्चे फिजिकल क्लास करते हैं, तो टीचर्स द्वारा बच्चों को प्रोत्साहित किया जाता है जो ऑनलाइन क्लासेस में बच्चों को नहीं मिल पा रहा है।
उनका कहना है कि ऑनलाइन क्लासेस में लिमिटेड समय में टॉपिक समाप्त करना होता है। ऐसे में, टीचर्स क्लासेस लेते हैं और होम वर्क देते हैं। जबकि पहले बच्चा 6-7 घंटे स्कूल में रहता था, उस दौरान उन्हें मोटिवेशन मिलने के साथ उनके व्यक्तित्व का भी विकास होता था जो अभी ऑनलाइन क्लासेस ज़रिए नहीं हो रहा है।
बच्चों में इमोशन की कमी हो गयी है। ऑनलाइन क्लास का समय स्कूल के समय अनुसार रखना चाहिए, इससे बच्चे अनुशासित होंगे। लगातार ऑनलाइन क्लासेस करने की वजह से कई बार बच्चों का ध्यान क्लास में नहीं लगता है, चिड़चिड़ापन, खाना नहीं खाना, तरह-तरह के बहाने बनाना जिसे साइको सोमेटिक डिस ऑर्डर भी कहते हैं, इसकी समस्या बढ़ रही हैं।
आए-दिन ऐसे मामले आ रहे हैं। ऐसे में, माता-पिता और टीचर्स को बच्चों को एक बेहतर माहौल देने की ज़रूरत है।