कोरोना संकट ने विश्वभर में शिक्षा क्षेत्र को सबसे अधिक प्रभावित किया है। देश में शिक्षा व्यवस्था की स्थिति पहले से ही काफी सुधरी हुई नहीं थी और महामारी के बाद इसने डिजिटल डिवाइड की एक समस्या भी पैदा की है।
शिक्षा में नए सिरे से बदलाव का दावा करते हुए केंद्र सरकार ने नई शिक्षा नीति लाई है। नई शिक्षा नीति इस लिहाज से भी महत्वपूर्ण है कि आज़ादी के इतने लंबे इतिहास में यह तीसरी शिक्षा नीति है। इसके पहले दो शिक्षा नीति ही आईं हैं।
पहली शिक्षा नीति वर्ष 1968 में इंदिरा गांधी के कार्यकाल में आई थी। जबकि दूसरी शिक्षा नीति वर्ष 1986 में तब आई जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे। वर्ष 1992 में भी एक शिक्षा नीति आई थी लेकिन उसे ज़्यादा महत्व नहीं दिया जाता, क्योंकि उस शिक्षा नीति में विशेष नयापन नहीं था। वह 1986 की शिक्षा नीति का ही दूसरा रूप थी।
इस कारण इस शिक्षा नीति को 34 साल बाद शिक्षा व्यवस्था और नीति में सबसे बड़ा परिवर्तनकारी कदम माना जा रहा है। इसके अलावा केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम बदलकर शिक्षा मंत्रालय कर दिया गया है। तो चलिए जानते हैं कि क्या है ‘शिक्षा नीति-2020’ और उसकी पांच सबसे महत्वपूर्ण बातें।
विदेशी विश्वविद्यालयों की भारत में आसान हुई राह
इस नई शिक्षा नीति के तहत विदेशी विश्वविद्यालय भारत में आकर अपनी शाखाएं खोल सकते हैं। इस कदम को इस लिहाज से भी काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है कि ऐसा होने से देश में रहकर ही विदेशी विश्वविद्यालयों में पढ़ने का अवसर स्टूडेंट्स को मिल पाएगा।
उच्च शिक्षा के लिए स्टूडेंट्स के विदेश पलायन को रोकने में इससे मदद मिल सकती है, क्योंकि अक्सर ऐसा होता है कि देश में अच्छी शिक्षा व्यवस्था की कमी के कारण बहुत से होनहार छात्र उच्च शिक्षा के लिए विदेशों का रूख करते हैं।
वहां उनकी योग्यता का अपने देश की तुलना में उचित सम्मान होता है, जिस कारण वें वहीं के होकर रह जाते हैं और देश की प्रतिभा विदेशों की प्रगति में सहायक साबित होती है।
अब 10+2 की जगह होगी 5+3+3+4 की व्यवस्था
नई शिक्षा नीति में 10+2 के फार्मेट को पूरी तरह समाप्त कर दिया गया है। अभी तक हमारे देश में स्कूली पाठ्यक्रम 10+2 के हिसाब से चलता है लेकिन अब ये 5+ 3+ 3+ 4 के हिसाब से होगा।
इसका मतलब है कि प्राइमरी से दूसरी कक्षा तक एक हिस्सा, फिर तीसरी से पांचवीं तक दूसरा हिस्सा, छठी से आठवीं तक तीसरा हिस्सा और नौंवी से 12 तक आखिरी हिस्सा होगा।
आप 5+3+3+4 के फार्मेट का सिस्टम आप ऐसे समझ सकते हैं कि फाउंडेशन स्टेज में पहले तीन साल बच्चे आंगनबाड़ी में प्री-स्कूलिंग शिक्षा लेंगे। फिर अगले दो साल कक्षा एक और दो में बच्चे स्कूल में पढ़ेंगे।
इन पांच सालों की पढ़ाई के लिए एक नया पाठ्यक्रम तैयार होगा। मोटे तौर पर एक्टिविटी आधारित शिक्षण पर ध्यान रहेगा। इसमें तीन से आठ साल तक की आयु के बच्चे शामिल होंगे। इस प्रकार पढ़ाई के पहले पांच साल का चरण पूरा होगा। पहले की व्यवस्था के तहत सरकारी स्कूलों में प्री-स्कूलिंग नहीं थी। कक्षा एक से दस तक सामान्य पढ़ाई होती थी। कक्षा 11 स्टूंडेंट्स विषय का चुनाव कर सकते थे।
प्रीप्रेटरी स्टेज
इस चरण में कक्षा तीन से पांच तक की पढ़ाई होगी। इस दौरान प्रयोगों के ज़रिए बच्चों को विज्ञान, गणित, कला आदि की पढ़ाई कराई जाएगी। इसमें 8 से 11 साल तक की उम्र के बच्चों को शामिल किया जाएगा।
मिडिल स्टेज
इसमें कक्षा 6-8 तक की कक्षाओं की पढ़ाई होगी तथा 11-14 साल की उम्र के बच्चों को शामिल किया जाएगा। इन कक्षाओं में विषय आधारित पाठ्यक्रम पढ़ाया जाएगा। कक्षा छह से ही कौशल विकास के कोर्सेस भी शुरू हो जाएंगे।
सेकेंडरी स्टेज
कक्षा 9 से 12वीं तक की पढ़ाई दो चरणों में होगी जिसमें विषयों का गहन अध्ययन कराया जाएगा। छात्रों को अपने विषयों को चुनने की आज़ादी भी होगी।
बंद होगा एमफिल का पाठ्यक्रम
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के तहत अब एमफिल पाठ्यक्रम को बंद कर दिया जाएगा। इसकी जगह पर विद्यार्थी परास्नातक डिग्री या चार साल का स्नातक डिग्री प्रोग्राम करने के बाद एक साल का एम.ए. करके पीएचडी कर सकते हैं। उच्च शिक्षा सचिव अमित खरे के अनुसार,
“नई नीति में मल्टीपल एंट्री और एग्जिट (बहु स्तरीय प्रवेश एवं निकासी) व्यवस्था लागू की गई है। इसमें तीन और चार साल के स्नातक पाठ्यक्रम और बैचलर प्रोग्राम शामिल हैं। चार साल के कोर्स में चौथे साल में रिसर्च को शामिल किया गया है। इसके बाद स्टूडेंट्स एक साल का परास्नातक पाठ्यक्रम की पढ़ाई कर पीएचडी की पढ़ाई कर सकते हैं। इंस्टीट्यूट्स दो साल का परास्नातक डिग्री प्रोग्राम ऑफर कर सकते हैं, जिसमें दूसरा साल पूरी तरह से रिसर्च पर आधारित होगा।”
इसके अलावा इंस्टीट्यूट्स इंटीग्रेटिड पांच साल का बैचलर और मास्टर डिग्री प्रोग्राम ऑफर कर सकते हैं। चार साल का डिग्री प्रोग्राम फिर एमए और उसके बाद बिना एमफिल के सीधा पीएचडी कर सकते हैं। जो छात्र शोध के क्षेत्र में जाना चाहते हैं उनके लिए चार साल का डिग्री प्रोग्राम होगा, जबकि जो लोग नौकरी में जाना चाहते हैं वो तीन साल का ही डिग्री प्रोग्राम कर सकेंगे।
देश की जीडीपी का 6 फीसदी शिक्षा क्षेत्र के लिए
नई शिक्षा नीति के अनुसार, सरकार शिक्षा क्षेत्र पर खर्च भी बढ़ाएगी। केन्द्र सरकार ने जीडीपी का 6 फीसदी शिक्षा पर खर्च करने का फैसला किया है। अभी जीडीपी का औसतन 3 फीसदी शिक्षा के क्षेत्र पर खर्च होता है।
इसमें केंद्र और राज्य सरकार की तरफ से होने वाला खर्च शामिल है। खर्च बढ़ाने से आबादी के ज़्यादा हिस्से को गुणवत्ता वाली शिक्षा के दायरे में लाने में मदद मिलेगी।
खत्म होंगे यूजीसी, एनसीटीई और एआईसीटीई बनेगी एक रेगुलेटरी बॉडी
शिक्षा नीति 2020 के लागू होने से यूजीसी और एआईसीटीई का युग खत्म हो जाएगा। उच्च शिक्षा सचिव अमित खरे ने शिक्षा नीति के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि उच्च शिक्षा में यूजीसी, एआईसीटीई, एनसीटीई की जगह एक नियामक होगा। कॉलेजों को स्वायत्ता (ग्रेडेड ओटोनामी) देकर 15 साल में विश्वविद्यालयों से संबद्धता की प्रक्रिया को पूरी तरह से खत्म कर दिया जाएगा।
इसके साथ ही स्कूल, कॉलेजों की फीस पर नियंत्रण के लिए भी एक तंत्र का गठन किया जाएगा। खरे ने बताया कि उच्च शिक्षण संस्थानों को ऑनलाइन स्वत: घोषणा के आधार पर मंजूरी मिलेगी। मौजूदा इंस्पेक्टर राज खत्म होगा।
अभी केंद्रीय विश्वविद्यालय, राज्य विश्वविद्यालय, डीम्ड विश्वविद्यालय और प्राइवेट विश्वविद्यालय के लिए अलग-अलग नियम हैं। भविष्य में सभी नियम एक समान बनाए जाएंगे। फीस पर नियंत्रण का भी एक तंत्र तैयार किया जाएगा और विश्वविद्यालयों को फीस लेने के संबंध में और पारदर्शी होना होगा।