सुशांत सिंह राजपूत की आखिरी फिल्म ‘दिल बेचारा’ की कथा, कलाकारों की अदाकारी एवं ए आर रहमान के कमाल का सामंजस्य दिल को छू जाता है। फिल्म प्रसिद्ध लेखक जॉन ग्रीन के शाहकार ‘दा फाल्ट इन आवर स्टार्स’ पर आधारित है।
फिल्म को पूरी तरह से यहां की ज़रूरतों के हिसाब से रूपांतरित किया गया है। सुशांत एवं नवोदित संजना सांघी की इमोशनल केमेस्ट्री फिल्म की जान है। किजी बसु (संजना सांघी) अपनी मांँ (स्वास्तिका मुखर्जी) और पिता (साश्वता चटर्जी) के साथ जमशेदपुर में रहती हैं।
किजी कैंसर की मरीज़ है। उसे अपनी ज़िंदगी से बहुत सी शिकायतें हैं। तभी उसकी मुलाकात सुशांत सिंह राजपूत यानी मैनी से होती है। उसका आना किजी का नज़रिया बदल देता है। मैनी का जिंदगी को लेकर रवैया किजी को बेहद प्रभावित करता है।
मैनी भी खतरनाक कैंसर से जूझ रहा है लेकिन वो शिकायतें नहीं करता है, बल्कि खुद में ही मस्त रहता है। दरअसल, किजी मौत का इंतज़ार करती हुई एक अकेली लड़की है जिसकी ज़िंदगी में मैनी खुशियां बनकर आता है। मौत से लड़ते- लड़ते दोनों एक-दूसरे के करीब आ जाते हैं। मैनी किजी की हर छोटी मोटी ख्वाहिशों को पूरा करने की कोशिश करता है।
किजी का ख्वाब है कि वो मशहूर सिंगर अभिमन्यु वीर सिंह से मिले। वो इसी ज़िंदगी में अभिमन्यु से मिलना चाहती है। किजी की यह हसरत पूरा करने मैनी उसे पैरिस ले जाता है। किजी को लगता है कि वो मैनी पर बोझ बन रही है। दूसरी तरफ मैनी उसे अकेला नहीं छोड़ना चाहता है।
फिल्म का अंत आपको रुला देता है। किजी में जिंदगी की उम्मीद जगा कर मैनी खुद दुनिया छोड़ जाता है। कोमल मनोभावनाओं को स्पर्श करती मौत से जूझते जीवन का इमोशनल संघर्ष है दिल बेचारा।
फिल्म की कहानी दिल छू जाने वाली है। सुशांत की स्क्रीन प्रेसेंश एंटरटेन करते हुए भावुक कर जाती है। मैनी के किरदार को निभा रहे सुशांत को पर्दे पर देखना एक खास अनुभव निर्मित करता है। सुशांत को शायद हमने तब खो दिया जब वो अपने श्रेष्ठ पर थे।
उनकी एक्टिंग और कॉमिक टाइमिंग कमाल है। उन्होंने अपने किरदार के हर रंग को जिस तरह से निभाया है, वो लंबे समय तक याद रहेगा। सुशांत जैसे कलाकार को खोना यहां समझ आता है। वहीं, पहली ही फिल्म में संजना सांघी ने भी ज़बरदस्त अभिनय किया है। सैफ अली खान भी छोटे से रोल में खुद को नोटिस करा जाते हैं।
फिल्म का गीत संगीत बेहतरीन बन पड़ा है। एआर रहमान ने एक बार फिर से खूबसूरत काम किया है। फिल्म के गाने पहले ही हिट हो चुके हैं। डायलॉग्स इमोशनल करने वाले हैं। लोकेशंस का चयन खूबसूरत है। इससे गुज़रते हुए आपको कल हो ना हो, आनंद एवं अंखियों के झरोखे से जैसी फिल्मों की याद आएगी।
दिल बेचारा का इमोशनल थीम जिंदगी व मौत के बीच संवाद सा है। मुकेश छाबड़ा की ड्रीम प्रोजेक्ट दिल बेचारा एक बार फिर से हमें सुशांत के लिए रुला जाती है। ज़िंदगी से गुज़रती एक खूबसूरत याद छोड़ जाती है।