कोरोना से पूरे विश्व की व्यवस्था चरमरा गई है, जिसका सबसे ज़्यादा असर शिक्षा व्यवस्था पर पड़ा है। बच्चों को फैलती बीमारी से बचाने के लिए विद्यालयों को बंद कर दिया गया। वैकल्पिक व्यवस्था के लिए ऑनलाइन क्लासेसज़ शुरू की गई। भारत भी इस महामारी से नहीं बचा और यहां भी विद्यालय पूर्ण रूप से बंद हैं।
ऑनलाइन क्लास एकमात्र विकल्प
तमाम चैनलों के सर्वे यही बता रहे हैं कि लोग बच्चों को अभी विद्यालय भेजना नहीं चाह रहे हैं। लोगों की अपनी समस्याएं हैं। सरकार की भी अपनी समस्या है लेकिन इन सबसे बढ़कर जो समस्या सामने है, वह है बच्चों की शिक्षा! आखिर बच्चे ही तो देश के भविष्य हैं।
ऐसे में कई निजी विद्यालय ऑनलाइन क्लासेज़ दे रहे हैं। जबकि सरकारी विद्यालय पूर्ण रूप से बंद हैं। बिहार की स्थिति और भी भयावह है। यहां बड़े शहरों के बड़े-बड़े निजी विद्यालयों को छोड़कर सभी सिर्फ खानापूर्ति कर रहे हैं, ताकि अभिभावकों से पैसा ऐंठा जा सके।
खैर, यहां निजी विद्यालयों या संस्थानों की आलोचना करना हमारा मकसद नहीं है। हमें बात करनी है सरकारी विद्यालयों की स्थिति की। जहां सरकार दावे कर रही है कि वह ऑनलाइन क्लासेज़ प्रदान कर रही है, वहीं बिहार की अधिकांश आबादी सरकारी विद्यालयों पर निर्भर है।
पौने दो करोड़ बच्चे प्रारंभिक विद्यालयों में नामांकित हैं। जबकि अभी भी नामांकन पखवाड़ा चल रहा था। प्रवासी मज़दूरों के लौटने से यह संख्या और बढ़ेगी। ऐसा में तमाम बच्चे शिक्षा से दूर हैं।
बिहार सरकार के दावों की सच्चाई क्या है?
बिहार में ऑनलाइन क्लासेज़ की सच्चाई या ऑनलाइन क्लास की सफलता को समझने के लिए सबसे पहले यहां की पृष्ठभूमि और सामाजिक संरचना को समझना होगा।
यह तो सर्वविदित है कि बिहार में सरकारी विद्यालयों में गरीब तबके के बच्चे ही पढ़ते हैं। पिछड़े और दलितों के बच्चों से ही स्कूल में संख्या बढ़ी हुई है। यह जगज़ाहिर है कि इस लॉकडाउन में इन परिवारों की स्थिति कैसी हो चुकी है।
ऑनलाइन क्लास के लिए तीन चीज़ें बेहद ज़रूरी
- एक स्क्रीन (स्मार्टफोन लैपटॉप इत्यादि)
- निर्बाध रूप से बिजली आपूर्ति
- हाई स्पीड सस्ती इंटरनेट सेवा
बिहारी पृष्ठभूमि को देखते हुए इन तीनों का विश्लेषण करते हैं।
ग्रामीण परिवेश और गरीब तबके में आज भी सभी के घर स्मार्टफोन नहीं हैं। अगर हैं भी तो उसकी क्वालिटी उस स्तर की नहीं है, जो 2 से 3 घंटे रोज़ाना ऑनलाइन हाई स्पीड पर चल सकें। ऐसे में तुरंत ही इन मोबाइलों के हैंग होने की संभावना बनी रहती है।
इसके विकल्प के रूप में बिहार सरकार ने दूरदर्शन को चुना। दूरदर्शन पर प्रसारण करना शुरू किया लेकिन दूरदर्शन के साथ समस्या यह है कि यह एकतरफा संवाद कायम करती है। इसमें बच्चों की जिज्ञासा को शांत करना मुश्किल है।
अब दूसरे बिंदू की बात करते हैं। यानी निर्बाध रूप से बिजली, द वायर में छपी रिपोर्ट (2019) के अनुसार, 52.41% घरों में आज भी बिजली नहीं है। सुशासन का दावा चाहे जिस स्तर का हो मगर हकीकत यही है कि आज भी 52.41% घरों में बिजली नहीं है। ये 52.41% घर किनके हैं?
सबको पता है और इन्हीं घरों के बच्चे सरकारी विद्यालयों में पढ़ते हैं। तो दूरदर्शन के साथ भी यह समस्या जुड़ी हुई है कि जिस वक्त बिजली हो उस वक्त शायद क्लास ना हो और जिस वक्त क्लास हो उस वक्त बिजली न हो।
अब हम बात करते हैं हाई स्पीड इंटरनेट की। अभी 4G के क्षेत्र में जियो और एयरटेल ही अधिकांश जगह मौजूद हैं। फिर भी इनकी स्पीड क्षेत्रों के आधार पर निर्भर करती है। कहीं अच्छी स्पीड है और कहीं ना के बराबर है। इन दोनों कंपनियों के रिचार्ज प्लान को देखा जाए तो लगभग 250 रुपये प्रति माह का हिसाब बैठता है।
लॉकडाउन के इस दौर में क्या परिवारों की स्थिति ऐसी है कि इनके द्वारा 250 रुपये प्रतिमाह खर्च किया जा सके? इतने खर्च पर भी स्पीड हो या ना हो, इसमें शंका बनी रहती है। अगर ऑप्टिकल या वाईफाई में गए लगभग 1500 रुपये प्रति महीना का हिसाब बैठता है, जो कि इन परिवारों के लिए संभव नहीं है।
बिहार में बच्चों को छोड़िए अधिकत्तर शिक्षकों को टेक्निकल ज्ञान नहीं है
चलिए मान लेते हैं कि सरकार इन समस्याओं का निवारण कर लेगी। हालांकि वर्तमान स्थिति को देखते हुए यह कार्य बिहार सरकार के लिए असंभव लग रहा है लेकिन ऑनलाइन क्लास के लिए इन सुविधाओं के बाद भी एक समस्या फिर आती है। इस समस्या को समझने से पहले चंडीगढ़ का ज़िक्र करना बेहद ज़रूरी है। चंडीगढ़ कैपिटल में ऑनलाइन क्लास के दौरान पॉर्न वीडियो शुरू हो गया था।
शिक्षक के अनुसार, बच्चे की गलती थी और बच्चे मानने को तैयार नहीं हैं। यानी टेक्निकल ज्ञान में कमी का मामला। सच यह है कि बिहार में बच्चों को छोड़ दीजिए, अधिकत्तर शिक्षकों को टेक्निकल ज्ञान नहीं है। मैं खुद शिक्षक होने के नाते यह ज़मीनी हकीकत बता रहा हूं। व्हाट्सएप, फेसबुक और टि्वटर चलाने मात्र को ही टेक्निकल ज्ञान नहीं समझना चाहिए।
तो सारांश यह है कि बिहार में इंफ्रास्ट्रक्चर के साथ-साथ मानव संसाधन की भी कमी है। जो कि एक दिन में तैयार नहीं हो सकती है। अभी बच्चों के लिए विद्यालय बंद हैं लेकिन शिक्षक काम पर जा रहे हैं। हालांकि समाज को लगता है कि बैठे- बैठे बिना मेहनत के पैसा उठा रहे हैं।
उनका सोचना भी कुछ हद तक सही है। जब तक विद्यालय बच्चों के लिए बंद हैं, उस समय का सदुपयोग करते हुए सरकार एक मुकम्मल तैयारी करे साथ ही साथ शिक्षकों को प्रशिक्षण दे। यानी सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कराते हुए शिक्षकों को प्रशिक्षित किया जाए और अंत में पढ़ेगा बिहार, तभी तो बढ़ेगा बिहार।