हाल ही में “राजनीति” और “आरक्षण” जैसी फिल्मों में प्रकाश झा के सहायक रह चुके युवा निर्देशक अपूर्वधर बड़गैयां द्वारा निर्देशित एक फिल्म नेटफ्लिक्स पर रिलीज़ हुई। जिसका नाम है “चमन बहार।” यह फिल्म किशोर उम्र के एकतरफा प्रेम को दर्शाती है। जिसमें पड़कर हर साल ना जाने कितने ही युवा अपनी ज़िंदगी और करियर गंवा देते हैं।
किशोर-किशोरियों का एक-दूसरे के प्रति शारीरिक और भावनात्मक आकर्षण उनके व्यक्तित्व विकास की अत्यंत सामान्य प्रक्रिया है। अगर इस आकर्षण को सही दिशा-निर्देश ना मिले, तो किशोरों का संपूर्ण व्यक्तित्व बिखर सकता है।
स्टॉकिंग और इव टीज़िंग का मुद्दा लंबे समय के बाद उठा
फिल्म चमन बहार में लंबे समय बाद फिर से स्टॉकिंग और इव टीजिंग के मुद्दे की ओर दर्शकों का ध्यान आकर्षित किया गया। वन विभाग के एक चौकीदार का बेटा बिल्लू अपनी एक “खास पहचान” बनाने के उद्देश्य से गाँव के मुहाने पर एक पान की दुकान खोलता है।
शुरुआत में वहां एक परिंदा भी पर नहीं मारता लेकिन उसकी दुकान के ठीक सामने वाले घर में शहर से जब एक इंजीनियर का परिवार रहने आता है, तो बिल्लू की ज़िंदगी और दुकानदारी दोनों चमक जाती है।
दरअसल, इंजीनियर साहब की एक प्यारी-सी बेटी है। जिसकी खूबसूरती और शहरी रहन-सहन पर चंद रोज़ में ही गाँव के सारे लड़के फिदा हो जाते हैं। वह अपनी पढ़ाई-लिखाई छोड़कर लड़की को निहारने के बहाने हर रोज़ बिल्लू की दुकान पर जमावड़ा लगाते हैं।
बिल्लू के दुकान की इनकम अचानक बढ़ जाती है
टाइम पास करने के लिए सिगरेट व गुटखा का नशा करते हैं और कैरम का सट्टा लगाते। जिससे बिल्लू के दुकान की बिक्री बढ़ जाती है। बिल्लू भी उस लड़की पर फिदा है लेकिन वह उनकी तरह छिछोरी हरकतें नहीं करता है, बल्कि दिन-रात उस लड़की को लेकर अपने मन में तरह-तरह के ख्वाब बुनता रहता है बगैर यह जाने कि वह लड़की उसके बारे में क्या सोचती है?
इस चक्कर में बिल्लू ना सिर्फ पुलिसिया डंडे का शिकार होता है, बल्कि पुलिस द्वारा उसकी दुकान भी तोड़ दी जाती है। इधर लड़की का प्यार भी नहीं मिलता, आखिर मिलता भी कैसे?
लड़की उससे प्यार करती ही नहीं थी। बिल्लू और बाकी लड़के बिना उसकी मर्ज़ी जाने बस उसके रूपाकर्षण से वशीभूत होकर अपनी ज़िंदगी और करियर सब बर्बाद कर बैठते हैं।
फिल्म में दिखाया गए इन तमाम परिदृश्यों से हम आए दिन भी रूबरू होते रहते हैं। विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण किशोर उम्र की एक सामान्य घटना है।
आकर्षण के कारण
- शरीर में होने वाले हॉर्मोन परिवर्तन, जिनकी वजह से किशोर-किशोरी कई तरह के शारीरिक और भावनात्मक बदलावों से गुज़रते हैं। किशोर तथा किशोरियों में यह परिवर्तन अलग-अलग रूपों में देखने को मिलते हैं।
- हार्मोन की वजह से उनमें एक-दूसरे के बारे में अधिकाधिक जानने की स्वाभाविक जिज्ञासा रहती है। उनमें सेक्शुअल फीलिंग्स का विकास होता है, जिसकी वजह से कई बार वे अपराध बोध महसूस करते हैं।
- 10 से 19 वर्ष की आयु को किशोरावस्था कहते हैं। यह उम्र बचपन और वयस्कावस्था के बीच की होती है। उम्र के इस पड़ाव में कोई किशोर या किशोरी अगर बच्चों के साथ रहते हैं, तब लोग उसे यह कह कर शांत करवा देते हैं कि अब तुम बड़े हो गये हो, तुम्हें बच्चों जैसी हरकतें शोभा नहीं देतीं।
- दूसरी तरफ, अगर कभी वह बड़ों के गुट में शामिल होना चाहते हैं तब उसे हिदायत मिलती है कि अभी तुम छोटे हो, ज़्यादा बड़े बनने की कोशिश मत करो। ऐसे में बेचारा किशोर मन अपने व्यवहार और भूमिका को लेकर हमेशा कंफ्यूज रहता है।
- किशोर मन बड़ा ही भावुक होता है संभवत: हॉर्मोनल परिवर्तनों की वजह से, छोटी-छोटी बातों को भी वे दिल पर ले लेते हैं।
- किशोरों में मूड-स्विंग्स होना एक आम समस्या है। एक पल में खिलखिला कर हंस पड़ना, दूसरे पल में रोमांचित हो जाना, तीसरे पल गुस्सा करना, चीख-पुकार मचाना और अगले ही पल शांत व चुपचाप होकर एक कोने में बैठ जाना।
- एक साथ कई नए तरह के शारीरिक परिवर्तनों से रुबरू होने के कारण किशाेर-किशोरियों में आत्महीनता और आत्ममुग्धता के लक्षण एक साथ देखने को मिलते हैं।
- जिन किशोरों में प्यूबर्टी के लक्षण तुलनात्मक रूप से जल्दी परिलक्षित होते हैं वे अपने व्यवहारों को प्रदर्शित करने में झिझकते हैं।
किशोरावस्था में ज़रूरत होती है सही मार्गदर्शन की
10 से 19-20 वर्ष की आयु को किशोरावस्था कहते हैं। किशोरावस्था जीवन की सबसे संवेदनशील अवस्था होती है तथा इस अवस्था में बच्चों को सही मार्गदर्शन की ज़रूरत होती है, क्योंकि इस अवस्था में ही बच्चा बिगड़ता भी है तथा सुधरता भी है।
यह वह अवस्था है जिसके दौरान शरीर और हार्मोन्स में परिवर्तन होता है। इसके कारण किशोरावस्था में ही बच्चों में शारीरिक और मानसिक बदलाव आते हैं।
ऑपोज़िट सेक्स के प्रति रूझान बढ़ जाता है। उन्हें एक-दूसरे का साथ अच्छा लगता है। वह एक-दूसरे के बारे में अधिकाधिक जानना चाहते हैं। यह एक बेहद सामान्य स्थिति है लेकिन समस्या तब होती है जब इस प्राकृतिक आकर्षण को ही कई किशोर-किशोरी प्रेम समझ लेते हैं और इस प्रेम के चक्कर में पड़ कर अपनी पढ़ाई-लिखाई और करियर को चौपट कर बैठते हैं।
पढ़ाई के समय को वह अपने निजी सुख-दुख की बातों में गंवाने लगते हैं। मोबाइल फोन पर मैसेज और फोटोज़ आदि शेयर करने में घंटों समय बर्बाद करते हैं।
अभिभावकों, शिक्षकों को चाहिए कि किशोरावस्था के बच्चों को गहरी और स्वस्थ दोस्ती एवं प्रेम के बीच फर्क समझाएं। इस अवस्था में बच्चों को मनोवैज्ञानिक परामर्श की ज़रूरत होती है और यह परामर्श भी उन्हें गलत साबित किए बिना देनी चाहिए।
बगैर उन्हें बुरा-भला कहे गंभीरता से उनसे जुड़े मुद्दों पर बात करनी चाहिए। ऐसे बच्चे, जिनके माता-पिता के बीच अनबन रहती है या वह अलग रहते हैं, या फिर अपने बच्चों को समय नहीं दे पाते हैं, उन्हें स्कूल के कांउसिंलिंग विभाग द्वारा गंभीरता से समय देना चाहिए।
हर उम्र की होती है विशेष खासियत
किशोरावस्था की भी अपनी विशेष खासियत हैं। इसे ध्यान में रखते हुए भी अभिभावकों को अपने किशोर बच्चों के साथ व्यवहार करना चाहिए। किशोर जीवन में वय:संधि काल (Puberty Period) भावनात्मक रूप से बेहद उतार-चढ़ाव वाला समय होता है।
हालांकि यह एक सामान्य अवस्था है लेकिन इस दौरान तेज़ी से होने वाले शारीरिक बदलावों के लिए कई सारे किशोर-किशोरी पूरी तरह से तैयार नहीं होते हैं। इस वजह से वे इन बदलावों को सहजता से स्वीकार नहीं कर पाते और भावनात्मक द्वंद की स्थिति से गुज़रते हैं।
भावनात्मक द्वंद के उदाहरण
10-11 वर्ष की उम्र में लड़कियों को माहवारी आना उनके शारीरिक विकास की एक आम प्रक्रिया है लेकिन जिन लड़कियों को इसके बारे में पहले से ना बताया गया हो तो वह काफी भयभीत हो जाती हैं। उन्हें लगता है वह किसी गंभीर बीमारी से ग्रस्त हो गई हैं।
इसी तरह प्यूबर्टी पीरियड के दौरान लड़कों के शरीर से अधिक पसीना निकलना, उनके जननांगों का विकसित होना, उनके चेहरे और छाती पर बाल आना, उनकी आवाज़ भारी होना जैसे लक्षण दिखने शुरू हो जाते हैं।
आप इन तमाम बदलावों के बारे में उन्हें पहले से बताना शुरू कर दें, ताकि वे मानसिक रूप से इसके लिए तैयार रहें और उन्हें किसी भयपूर्ण या शर्मनाक स्थिति का सामना ना करना पड़े।
अपने किशोर होते बच्चों को स्वयं अपनी देखभाल करना सिखाएं
उन्हें बताएं कि इस उम्र में विपरीत लिंग के प्रति सेक्शुअली या फिज़िकली अट्रैक्ट होना बेहद सामान्य है। इसमें शर्म जैसी कोई बात नहीं है। इस आकर्षण के प्रभाव में अपनी पढ़ाई और अपने करियर को इग्नोर करना असामान्य या गलत ज़रूर है।
अगर आपको लगता है कि आपके किशोर बच्चे किसी गलत राह पर जा रहे हैं, तो उन्हें किसी रचनात्मक कार्य से जोड़ दें। ताकि उनकी भावनाओं का विकेंद्रीकरण (decentralisation) हो जाए।
मनोवैज्ञानिकों की राय है कि किशोर उम्र के बच्चों को अगर उनकी रुचि के अनुसार अलग-अलग तरह की एक्टिविटी से जोड़ दिया जाए, तो इससे वह ना केवल खुश रहते हैं, बल्कि उनका सेल्फ कॉन्फिडेंस भी बढ़ता है।
अगर आपका बेटा या बेटी आपसे कभी सेक्स या सेक्शुअल टॉपिक पर बात करना चाहे या फिर कभी अपनी सॉफ्ट फीलिंग्स आपके साथ डिस्कस करना चाहे, उन्हें भी बेझिझक होकर अपनी बातों को कहने का मौका दें। उनकी किसी बात या व्यवहार के लिए उन्हें जज ना करें।
किशोरावस्था में बच्चों का इमोशनल लेवल काफी हाई होता है
किशोरावस्था में बच्चे छोटी-छोटी बातों को भी दिल पर ले लेते हैं। ऐसे में अगर आपकी ओर से दिया जाने वाला अनकंडीशनल सपोर्ट ना सिर्फ उन्हें बेहतर फील करवा सकता है, बल्कि आप उनका विश्वास भी जीत सकते हैं।
बच्चे हों या बड़े, एक्सपीरियंस लर्निंग दोनों ही के लिए बेस्ट लर्निंग होती है। अत: अपने किशोर बच्चों को आप अपने प्यूबर्टी एक्सपीरियंस शेयर करें और उन्हें बताएं कि आपने कैसे उस सिचुएशन को हैंडल किया। ताकि उन्हें यह महसूस हो कि जो कुछ भी उनके साथ घटित हो रहा है वह कुछ अनूठा नहीं है। वह तो उनकी उम्र में हर किसी के साथ होता है।
सबसे ज़रूरी बात, अपने बच्चों से हर मुद्दे पर खुल कर बात करें। साथ ही उन्हें मुफ्त की सलाह देने से भी बचें, जब तक कि वे खुद आपसे इसके लिए ना कहें।
बच्चों को सिखाएं सही-गलत की पहचान करना
किशोरों में खुद को साबित करने की ललक होती है। इसी टशन के चक्कर में अक्सर वे भटक जाते हैं। घर का माहौल अगर फ्रेंडली ना हो, तो उनके भटकाव की संभावना बढ़ जाती है। इंटरनेट के ज़माने में बच्चे समय से पहले ही बड़े हो रहे हैं। इस कारण उनके सामने एक क्लिक पर सूचनाओं का अथाह भंडार मौजूद है। ऐसी स्थिति में उनसे कोई भी सूचना छिपाना नामुमकिन है।
दूसरी ओर उनकी लाइफस्टाइल भी अब काफी चेंज हो गयी है। पहले संयुक्त परिवार में बच्चों के पास अपनी बातों को शेयर करने के लिए कई सारे लोग होते थे। अब ऐसा नहीं है, एकल परिवारों के मौजूदा दौर में वह अक्सर खुद को अकेला पाते हैं। ऐसे में, आप उन पर जितनी पांबदी लगाएंगे, उनमें उस काम को करने की इच्छा उतनी ही तेज़ होगी।
अभिभावाकों को चाहिए कि बच्चों के साथ एक इमोशनल बॉन्ड डेवलप करें। उनसे हर ज़रूरी मुद्दे पर खुल कर बातचीत करें। ना सिर्फ उनके अनुभवों को सुनें, बल्कि अपने अनुभवों को भी मनोरंजक तरीके से उनके साथ शेयर करें।
इस दौरान बातचीत में संयम बरतें, बच्चों को किसी बात या व्यवहार के लिए निर्णय सुनाने के बजाय उन्हें सही-गलत का फर्क समझाते हुए खुद निर्णय लेने के लिए प्रोत्साहित करें। उन पर नज़र रखें लेकिन उन्हें यह ज़ाहिर ना होने दें। इससे उनके इगो को ठेस पहुंच सकती है। अनुशासन ज़रूरी है लेकिन रूखेपन और उपेक्षा से नहीं, बल्कि प्यार और भरोसे के साथ।