रविवार 23 मई को UNICEF India, YuWaah और Youth Ki Awaaz की साझेदारी में युवा संसद के पहले संस्करण के तहत फेसबुक लाइव का आयोजन किया गया, जहां अलग-अलग राज्यों से युवा चेंजमेकर्स ने संबंधित सांसदों से कोविड-19 के संदर्भ में अपनी कम्यूनिटी की समस्याओं पर प्रश्न किए।
गौरतलब है कि गोरखपुर से बीजेपी सांसद रवि किशन, जलगाँव से बीजेपी सांसद उन्मेष पाटिल, नागाओं से इंडियन नैशनल काँग्रेस से सांसद प्रद्युत बोरदोलोई और तमिलनाडु से एआईएडीएमके के नवनीतकृष्णन युवा संसद के तहत आयोजित चर्चा में शामिल थे। वहीं, UNICEF इंडिया रिप्रज़ेंटेटिव डॉ. यास्मिन हक भी चर्चा में शामिल थीं।
इसके अलावा यूपी से खान अतिया रफी, तमिलनाडु से अकीला, छत्तीसगढ़ से योगेन्ध्र चंद्राकर, असम से बिनीता बोनिआ और महाराष्ट्र से कुलसुम ज़हरा भी चर्चा के दौरान अपने सवालों के साथ उपस्थित थीं।
युवा संसद के पहले संस्करण को होस्ट कर रहे थे Youth Ki Awaaz हिन्दी के संपादक प्रशांत झा। चर्चा की शुरुआत UNICEF इंडिया रिप्रज़ेंटेटिव डॉ. यास्मिन से हुई, जिन्होंने कहा, “महामारी के वक्त यंग इंडिया जिन परेशानियों का सामना कर रहा है, उन्हें एड्रेस करना बेहद ज़रूरी है। इस समय युवाओं में डिप्रेशन के मामले भी बढ़ रहे हैं जिसके लिए बेहद ज़रूरी है कि हम उनसे बात करें। नीति निर्माण के वक्त युवाओं से बात करना बेहद ज़रूरी है।”
अल्पसंख्यक छात्राओं के लिए क्या है सरकार का एक्शन प्लान?
इसके बाद शुरू हुआ संबंधित सांसदों से चेंजमेकर्स द्वारा सवाल पूछने का सत्र जहां सबसे पहले यूपी के बिजनौर की खान अतिया रफी ने गोरखपुर से बीजेपी सांसद रवि किशन के समक्ष अपनी समस्याएं रखीं। अतिया ने रवि किशन कहा, “मैं एक माइनॉरिटी कम्यूनिटी से आती हूं और लड़की होने के नाते मुझे भी लगता है कि कुछ करना है चारदीवारी में नहीं रहना है। मुझ जैसी बहुत लड़कियां सोचती हैं कि उन्हें लाइफ में कुछ करना है मगर नहीं कर पाती हैं। मुझे भी अब वित्तीय परेशानियां हो रही हैं। वित्तीय परेशानियों में हम जैसे अल्पसंख्यकों को छात्रवृति कैसे मिले?”
रवि किशन ने अतिया के सवालों का जवाब देते हुए कहा, “अल्पसंख्यक समुदाय के लिए सरकार के पास शानदार प्लान है। आप चिंता ना करें, यदि आप अच्छी स्टूडेंट हैं तो आपका भविष्य उज्जवल है। आप जैसी होनहार छात्रा को कभी दिक्कत नहीं होगी। एचआरडी मिनिस्ट्री में मदरसे की पढ़ाई से लेकर कई योजनाए हैं।”
तमिलनाडु में वंचित समुदाय के बच्चों के समक्ष क्या परेशानिया हैं?
तमिलनाडु से अकीला ने एआईएडीएमके के सांसद नवनीतकृष्णन के समक्ष अपने सवाल रखते हुए कहा, “परीक्षाएं रद्द हो गई हैं। तमिलनाडु में ऑनलाइन क्लास चल रहा है मगर सारे बच्चे नहीं एक्सेस कर पा रहे हैं। वंचित समुदाय के बच्चे आर्थिक तंगी के कारण ऑनलाइन क्लास नहीं ले पा रहे हैं, क्योंकि उनके पास स्मार्टफोन नहीं हैं। हमने तीन समस्याओं के मद्देनज़र सीएम को पिटीशन डाला है। पहला- स्कूलों को सैनिटाइज़ कराना, दूसरा बच्चों की काउंसलिंग और तीसरा ट्रांसपोर्टेशन सुविधा। ऐसे में वंचित समुदायों के बच्चों की समस्याएं कैसे हल हों?”
अकीला के सवालों का जवाब देते हुए नवनीतकृष्णन कहते हैं, “जो गरीब बच्चे आर्थिक तंगी के कारण नहीं पढ़ पा रहे हैं, जिनके पास स्मार्टफोन नहीं हैं, उन्हें बिल्कुल चिंता करने की ज़रूरत नहीं है। हम इस दिशा में काम कर रहे हैं। सरकार ने स्कूली बच्चों को मुफ्त में साइकिल दिया है, जो काफी हद तक उनके ट्रांसपोर्टेशन की परेशानी कम कर सकता है डिजिटल इंडिया जैसे कार्यक्रमों का लाभ भी ग्रामीण भारत के स्टूडेंट्स को मिलेगा।”
कुलसुम ज़ेहरा के सवालों पर क्या कहा बीजेपी सांसद उन्मेष पाटिल ने?
इसके बाद ठाणे से कुलसुम ज़ेहरा जो कि कोरोना संक्रमण के दौरान अनाथ एवं असहाय युवाओं तक ज़रूरी सामान पहुंचाकर उनकी मदद कर रही हैं, वो जलगाँव से बीजेपी सांसद उन्मेष पाटिल से पूछती हैं, “हम जो काम कर रहे हैं उसे सरकार और सांसद के साथ मिलकर आगे कैसे बढ़ाया जाए?”
कुलसुम ज़ेहरा के सवालों का जवाब देते हुए उन्मेष पाटिल कहते हैं, ” कुमसुम जिस तरह से एनजीओ के ज़रिये काम कर रही हैं वो काफी अच्छा है। पहली बार ऐसा हुआ कि महामारी में किसी एनजीओ ने भी काम किया है सरकार के साथ मिलकर। यह वाकई में काबिल-ए-तारीफ है। जो बच्चे एचआईवी पॉज़िटिव हैं, उन्हें कैसे शिक्षा से जोड़ा जाए, यह वाकई में अच्छी पहल है।”
उन्मेष आगे कहते हैं, “हर किसी के मन में डर है लेकिन मुझे लगता है कि डर के आगे जीत है। ऑनलाइन एजुकेशन के संदर्भ में स्वयंप्रभा, दीक्षा और ई-पाठशाला की पहल सरहानीय है। आने वाले समय में मुझे लगता है इंटरनेट का कोई चार्ज नहीं होगा। आने वाले वक्त में हर किसी को शिक्षा मिलेगी। कठिनाइयां होती हैं तभी उम्मीदें होती हैं, महामारी में भी संभावनाएं हैं।”
गौरतलब है कि कुलसुम ज़ेहरा 9 साल तक चाइल्ड केयर इंस्टीट्यूशन में थीं। 18 साल के बाद वो वहां से बाहर आईं और अब दो बहनों को भी सपोर्ट कर रही हैं, जो केयर होम से बाहर आ चुकी हैं। कुलसुम की संस्था, यूथ केयर लेबर एसोसिएशन, अनाथ बच्चों, एचआईवी पॉज़िटिव बच्चों और LGBTQ+ कम्यूनिटी के बच्चों की मदद करती है।
असम के चाय बागानों में काम करने वाले परिवारों के बच्चों तक कैसे पहुंचे ऑनलाइन एजुकेशन?
इसके बाद असम के चाय बागान के इलाके में रहने वाली बिनीता बोनिआ, नागाओं से इंडियन नैशनल काँग्रेस से सांसद प्रद्युत बोरदोलोई के समक्ष अपनी समस्याएं रखते हुए कहती हैं,
मैं प्राइवेट स्कूल में पढ़ती हूं और लॉकडाउन में ऑनलाइन क्लासेज़ हो रहे हैं लेकिन हमारे टी-गार्डेन के स्कूल में बच्चों को ऑनलाइन क्लास नहीं मिल रहा है। बागान के लोगों की आर्थिक हालत ठीक नहीं है और उनके पास स्मार्ट फोन भी नहीं हैं। महामारी के वक्त उनको कैसे आगे लाया जा सके?
इसी कड़ी में बिनीता अपना दूसरा सवाल पूछती हैं, “लॉकडाउन के बाद जब स्कूल स्टार्ट होगा तब हमें कैसी सुविधाएं मिलेंगी?”
प्रद्युत बोरदोलोई कहते हैं, “असम में प्लांटेशन वर्कर्स बहुत हैं और वर्कर्स की फैमिली के बच्चों के साथ बहुत समस्याएं हो रही हैं। बच्चों के पास स्मार्ट फोन नहीं हैं और सुदूर जगहों में रहने के कारण इंटरनेट की सुविधा भी नहीं है। कुछ फैसले लेने हैं हमें बच्चों के लिए ताकि उनकी शिक्षा बेहतर हो सके।”
बोरदोलोई ने आगे कहा, “मैं अपने इलाके में लोकन एनजीओ के ज़रिये वंचित समुदायों के फैमिली मेंबर्स की काउंसलिंग कर रहा हूं ताकि परेशानियां निकलकर सामने आ सकें।”
शिक्षा में असमानता पर सांसदों ने क्या कहा?
इस दौरान गोरखपुर से बीजेपी के सांसद रवि किशन ने शिक्षा के क्षेत्र में असमानता पर बात करते हुए कहा, “बिहार और यूपी के इलाके को हमने शूटिंग के ज़रिये बहुत करीब से देखा है। सिनेमा के द्वारा हमने बिहार और यूपी के मेरे फैन बेस को ट्रेन भी किया है। ‘बिहार और यूपी में बाहुबली लोग रहते हैं’ जैसी छवि को हमने सिनेमा के ज़रिये खत्म कर दिया है। मैंने देखा है खासकर गोरखपुर और यूपी के विभिन्न इलाकों में शिक्षा के क्षेत्र में सराहनीय काम हुआ है।”
इसी बारे में बात करते हुए तमिलनाडु से एआईएडीएमके के सांसद नवनीतकृष्णन कहते हैं, “तमिलनाडु में शिक्षा को लेकर किसी भी प्रकार की कोई असमानता नहीं है। सरकार इस दिशा में लगातार काम कर रही है।”
प्रवासी मज़दूरों की हालत कैसे ठीक हो?
छत्तीसगढ़ से यूथ माइग्रेट योगेन्द्र चंद्राकर, बीजेपी सांसद उन्मेष पाटिल से प्रवासी मज़दूरों और उनके बच्चों की समस्याओं पर सवाल पूछते हैं, “हज़ारों प्रवासी मज़दूरों का पलायन जारी है जिनमें उनके बच्चे भी शामिल हैं, जिन्हें पता नहीं है कि उनके साथ हो क्या रहा है। बच्चों पर कोविड-19 का जो असर पड़ रहा है और मज़दूर जो बेरोज़गार हो रहे हैं, उसके लिए सरकार के पास क्या प्लान है?”
योगेन्द्र के सवालों का जवाब देते हुए उन्मेष पाटिल कहते हैं, “योजनाओं के ज़रिये कोरोना संकमण के कारण प्रभावित लोगों और प्रवासी मज़दूरों को भोजन दिया जा रहा है। ‘वन नेशन वन राशन कार्ड’ के तहत उन्हें भोजन और चना दाल उपलब्ध कराया जा रहा है।”
इसी बीच UNICEF इंडिया रिप्रज़ेंटेटिव डॉ. यास्मिन हक कहती हैं, “कोविड-19 के कारण वंचित समुदायों को काफी परेशानिया हो रही हैं। हमलोग काफी सालों से समस्याओं का सामना कर रहे हैं। महामारी के समय हमें देखना होगा कि वंचित परिवारों या बच्चों तक योजनाएं पहुंच रही हैं या नहीं।”
दर्शकों ने पूछे सांसदों से सवाल
फेसबुक लाइव के ज़रिये चर्चा को देखने वाले दर्शकों में से मनोज उडियान ने सवाल पूछते हुए कहा, “स्किल डेवलपमेंट के ज़रिये लोगों को कैसे जॉब मिले?”
उन्मेष पाटिल ने मनोज उडियान के सवाल का जवाब देते हुए कहा, “जब भी समस्याएं होती हैं तो मौके भी होते हैं। हमें अभी महामारी का सामना करना होगा फिर हमारे पास काफी योजनाए हैं।”
वहीं, YKA यूज़र शालिनी झा पूछती हैं, “जो लोअर इनकम ग्रुप के लोग हैं, उनकी फैमिली के बच्चों के लिए संभव नहीं है कि वे ऑनलाइन क्लास अंटेड करें। उसके लिए सरकार क्या कर रही है?”
नागाओं से इंडियन नैशनल काँग्रेस से सांसद प्रद्युत बोरदोलोई, शालिनी झा के सवाल का जवाब देते हुए कहते हैं, “सरकार के पास योजनाएं काफी हैं मगर वे फाइलों में दबकर रह जाते हैं। इसलिए ज़रूरी है कि राज्य सरकारें संवेदनशील हों। अभी हमें उनकी बेसिक ज़रूरतों की पूर्ति करनी होगी। यह मुश्किल समय है मगर हालात ठीक हो जाएंगे।”
इसी कड़ी में शालिनी के सवालों पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए गोरखपुर से बीजेपी सांसद रवि किशन कहते हैं, “पूरे विश्व के बच्चों पर जो असर पड़ा है, वो बहुत बुरा है। बच्चों को इन सब चीज़ों से बाहर निकालना होगा और उनके जीवन में खुशियां लानी होगी।”
उन्होंने कहा, “25 लाख लोग यूपी में वापस आए हैं। हमारी सरकार योजना बना रही है कि किस तरह से उन्हें राज्य में काम दिया जाए। जो मज़दूर हज़ारों किलोमीटर पैदल चलकर गाँव वापस आए हैं अब वे फिर से शहर नहीं जाना चाहेंगे, ऐसे में योगी जी ने प्लान किया है कि उन्हें राज्य में ही काम दिया जाए। अभी मनरेगा के तहत कुछ मज़दूरों को काम मिलने शुरू भी हो गए हैं।”