पीरियड्स महिलाओं के स्वास्थ्य और जीवन शक्ति का महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह महिला के प्रजनन चक्र की एक जैविक प्रक्रिया है। इसके बावजूद विश्व के अधिकांश देशों में इससे सम्बंधित अनेक मिथक हैं जिनमें महिलाओं के पीरियड्स को ईश्वर के श्राप से लेकर विभिन्न प्रकार की पाबंदियां शामिल हैं।
मेरे द्वारा पीरियड्स पर विभिन्न लोगों से वर्जनाओं से सम्बंधित पूछे गए सवालों के उत्तर समझने से यह बात उभरकर सामने आई कि हमारे भारत देश के अलग-अलग हिस्सों में भी विभिन्न प्रकार के मिथक प्रचलित हैं।
मसलन, पीरियड्स के दौरान धागे कटवाना, पूजा-पाठ पर रोक, रसोई में ना घुसने देना आदि इन वर्जनाओं में सम्मिलित हैं। इन सब चीजों को कुछ महिलाएं जागरूकता के अभाव में तो मानती हैं।
लेकिन कुछ ऐसी भी महिलाएं होती हैं जिन्हें इन चीज़ों पर विश्वास नहीं होता है। वे इस पर खुलकर बात करना चाहती हैं मगर ऐसा नहीं कर पाती हैं।
सैनिटरी पैड्स थमा देना पीरियड्स की समस्याओं का हल नहीं है
यहां तक कि अगर उन्हें पीरियड्स के दौरान कोई समस्या, जैसे- फफोले पड़ जाना और खजुलाहट होना आदि हो जाती है, तो वे इसे भी सहती रहती हैं। कुछ महिलाएं कभी-कभी अपने ऊपर बंदिश ना लग जाए, इस डर से अपने घर के सदस्यों को यह बताती ही नहीं कि उनका पीरियड्स चल रहा है।
वास्तव में पीरियड्स पर खुलकर बात ना करने से कभी-कभी छोटी समस्याएं बड़ी समस्या में बदल जाती हैं। जो लोग पीरियड्स की समस्याओं को कम करने को लेकर प्रयास कर रहे हैं, उनमें से अधिकांश पीरियड्स के दौरान महिलाओं को सिर्फ सैनिटरी नैपकिन थमा देना ही पूरी समस्या का हल मान लेते हैं। जबकि अधिकांश महिलाएं उसका प्रयोग करना भी नहीं जानती हैं।
सैनिटरी पैड्स के प्रयोग के बारे में पूर्ण जानकारी नहीं देते विज्ञापन
टीवी चैनलों में पैड्स के जो प्रचार आते हैं, वे भी व्यवसायिक लाभ के उद्देश्य से ज़्यादा किए जाते हैं। सैनेटरी पैड्स के बहुत कम प्रचार या यूं कहें शायद कोई भी प्रचार ऐसा नहीं होता है जिसमें उसके प्रयोग के विषय में बताया जाता हो।
इन सब चीज़ों का यह परिणाम हुआ कि ग्रामीण क्षेत्रों की बहुत सारी महिलाएं एक ही पैड को कई बार धुलकर प्रयोग करती हैं।
दूसरी तरफ, जो महिलाएं सैनिटरी पैड्स की जगह सूती कपड़े का प्रयोग करती हैं, वे भी उसे धुलकर बार-बार प्रयोग करती हैं। वे यह कपड़ा सूखने के लिए धूप में ना रखकर छाए में कपड़े के नीचे ढककर सुखाती हैं ताकि कोई उसे देख ना ले। इस कारण इन कपड़ों के दोबारा प्रयोग से संक्रमण का खतरा बना रहता है।
पीरियड के दौरान उत्पन्न संक्रमण जानलेवा भी हो सकता है
ये संक्रमण कभी-कभार योनि से प्रारम्भ होकर गर्भाशय नाल तक पहुंच जाते हैं। यहां तक कि इन असुरक्षित तरीकों से कम रोग प्रतिरोधक क्षमता वाली महिलाओं को टॉक्सिक शॉक सिंड्रोम भी हो सकता है।
यानी कि ऐसा रोग जिसमें हल्के फ्लू के साथ लाल चकत्ते पड़ना और मांसपेशियों में दर्द जैसी अनेक परेशानियां होती हैं।यह रोग मुख्यत: कम रक्तस्राव के समय बहुत अधिक अवशोषण वाले टैंपून के प्रयोग करने के कारण होता है।
पीरियड्स पर बनाई गई चुप्पी तोड़ने का समय आ गया है
कभी-कभी महिलाओं को पीरियड्स के दौरान पेट मे बहुत तेज़ ऐंठन होती है लेकिन अधिकांश मामलों में वे इसे घर के पुरुष सदस्यों को नहीं बताती हैं।
इस दर्द के कारण पैदा हुए खतरे और घर के सदस्यों के बताने की मनाही से इसके विषय में घर के सदस्यों को बताएं कि ना बताएं को लेकर वे कश्मकश में झूलती रहती हैं, जिसके कारण उनमें कई बार मानसिक अवसाद की स्थिति भी उत्पन्न हो जाती है। इसलिए मुझे यह लगता है कि पीरियड्स पर बनी हुई चुप्पी को बड़े स्तर पर तोड़ने की बहुत ज़रूरत है।
हमें पीरियड्स पर बड़े-बड़े बैनर लगाकर, संगोष्ठी करके, प्रचार के डिजिटल माध्यमों से और अधिक जागरूक करने की बेहद ज़रूरत है। पाठ्यक्रमों में इस विषय पर सचित्र और बृहद सामग्री को सम्मिलित करने की भी बहुत आवश्यकता है।
अभी तक अधिकांश मामलों में पीरियड्स को सिर्फ जीव विज्ञान का ही पाठ माना जाता है। मुझे लगता है कि पीरियड्स को जीव विज्ञान के अतिरिक्त साफ-सफाई और स्वच्छता प्रबंधन के रूप में नैतिक शिक्षा में भी सम्मिलित किया जाना चाहिए।
पीरियड्स पर चर्चा पुरुषों की उपस्थिति में करनी चाहिए ताकि वे सहज हो सकें
पीरियड्स पर जानकारी देते समय महिलाओं और पुरुषों को साथ बैठाया जाना चाहिए ताकि इस विषय पर वे एक-दूसरे से सहज हो सकें। स्कूलों में हम सप्ताह के एक दिन स्टूडेंट्स के नाखूनों, बालों आदि को देखते हैं और उन्हें इसकी साफ सफाई पर ध्यान देने की सलाह देते हैं लेकिन हम कभी भी पीरियड्स जैसे विषय पर शायद ही बोलते हैं।
लोग तो पीरियड्स को भी पीरियड्स नहीं कहते हैं। अधिकांश महिलाएं पीरियड्स के आने पर सांकेतिक रूप से कहती है कि पेट दर्द हो रहा है या ये कहती हैं कि लाल समय चल रहा है आदि।
हमें अपनी इस चुप्पी को तोड़ने की ज़रूरत है। इस बात का भी ख्याल रखना होगा कि जब भी साफ-सफाई की बात करें, तो बेहद ज़रूरी है कि पीरियड्स की साफ-सफाई के बारे में भी बातें हों।
लेकिन यह तभी सम्भव है जब लोग पीरियड्स पर पूर्ण रूप से खुल जाएंगे और वे इसे एक सामान्य जैविक प्रक्रिया मानने लगेंगे। पीरियड्स से सम्बंधित परेशानियों और संक्रमणों को हर महिला समझती हैं लेकिन वे बोल नहीं पाती हैं। वे छोटी सी समस्या को अपनी चुप्पी के कारण बड़ी समस्या बना लेती हैं।
इसलिए हमें बृहद स्तर पर ऐसा परिवेश बनाना होगा ताकि सभी लोग पीरियड्स को पीरियड्स बोल सकें। पैड बेचने वाला दुकानदार इतना सहज हो जाए कि वह बिना काली पन्नी या फिर कागज़ में लपेटे पैड को बेच सके और लाने वाला बिना शर्मिंदगी के पैड ला सके।
नोट: विवेक YKA के तहत संचालिच इंटर्नशिप प्रोग्राम #PeriodParGyaan के मई-जुलाई सत्र के इंटर्न हैं।