माहवारी हर महिला के साथ होने वाली एक महत्वपूर्ण जैविकीय प्रक्रिया है। इसमें पूर्ण रूप से स्वस्थ्य महिला के साथ-साथ दिव्यांग महिलाएं भी आती हैं। सामान्य महिलाओं की तुलना में दिव्यांग महिलाओं के पीरियड्स के दौरान साफ-सफाई का प्रबंधन करना अपेक्षाकृत कठिन होता है।
पैड्स का निस्तारण कैसे करें?
सामान्य और दिव्यांग दोनों प्रकार के लोगों के सामने एक प्रमुख समस्या यह आती है कि पीरियड्स के दौरान प्रयोग किये गए सामग्री का निपटान कैसे करें? खून से सनी इस सामग्री को अक्सर कागजों में लपेटकर बाहर फेंक दिया जाता है। खून से सनी होने के कारण उन पर बहुत सारी मक्खियां और कीटाणु पनपने लगते हैं जो वातावरण में अनेक प्रकार के रोगों के वाहक बनते हैं।
इन सामग्रियों को जल के स्रोतों कुंओ, तालाबों नदियों के पास फेंकने से यह जल स्रोतों को भी गंदा कर देते हैं। अक्सर लोगों के दिमाग में यह आता है कि इन्हें शौचालय में डाल देना बेहतर रहेगा लेकिन यह एक गलत सोच है। अक्सर ये पैड्स जल्दी सड़ते नहीं हैं और शौचालयों में डालने पर ये उसे भी बाधित कर सकते हैं। जलाना भी पर्यावरण प्रदूषण फैलाने में सहायक होता है।
ऐसे में, सबसे बेहतर यह होता है कि इन पैड्स को ज़मीन में एक गड्ढा खोदकर दबाया जाना चाहिए। यदि यह गड्ढा आधा मीटर लम्बा, आधा मीटर चौड़ा और एक मीटर गहरा (WSSCC के अध्ययन के आधार पर) खोदा जाता है, तो उसे दो साल तक आसानी से प्रयोग में लाया जा सकता है। ऐसे गड्ढे को जल स्रोत से दूर ही खोदना चाहिए।
सिर्फ 69.1% महिलाएं ही लेती हैं डॉक्टरों से सलाह
पीरियड्स से संबंधित समस्या महिलाओं के लिए सालों से बड़ी समस्या बनी हुई है। इसलिए ज़रूरी है कि पीरियड्स के दौरान स्वच्छता प्रबंधन की जानकारी सभी को वृहद स्तर पर दी जाए।
अभी हाल ही में पीरियड्स पर Youth Ki Awaaz और WSSCC द्वारा किए गए सर्वे में यह बात निकल कर आई कि 75 प्रतिशत महिलाओं में देरी से, अनियमित रूप से या दर्द और ज़्यादा रक्तस्राव के साथ पीरियड्स होना, इनमें से कोई-न-कोई समस्या ज़रूर होती है।
ताजुब्ब की बात यह है कि स्वास्थ्य जैसा मुद्दा होने के बावजूद शत-प्रतिशत के स्थान पर अनियमित माहवारी की समस्या से ग्रसित सिर्फ 69.1 प्रतिशत महिलाओं ने ही इस मसले पर डॉक्टर से परामर्श किया।
90.2% महिलाएं पीरियड्स से संबंधित कोई-न-कोई समस्या ज़रूर झेलती हैं
इस सर्वे से यह बात भी सामने आई कि सिर्फ 9.8 प्रतिशत महिलाएं ही ऐसी थी जिनको पीरियड्स से संबंधित कोई समस्या नहीं हुई। इसके अलावा 90.2 प्रतिशत महिलाएं पीरियड्स से संबंधित कोई-न-कोई समस्या ज़रूर झेलती हैं। सोचिए इतना गम्भीर मसला होने के बाद भी पीरियड्स पर हम उतने मुखर नहीं हो पा रहे हैं जितना हमें और समाज को होना चाहिए।
इसका एक बहुत बड़ा कारण पीरियड्स को लेकर लोगों में बन चुकी धारणाएं और जागरूकता की भारी कमी का होना है। साथ ही हमें इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि पीरियड्स से संबंधित जो समस्याएं हैं, उनमें से अधिकांश पिछड़े गाँवों और निम्न स्थितियों वाले परिवारों में हैं।
दिव्यांग महिलाओं को होती हैं खासी दिक्कतें
अभी हाल ही में एक महिला से बात करने के दौरान उन्होंने नाम ना लिखने की शर्त पर बताया कि वह पढ़ाई करने के लिए जब घर से बाहर गईं, तो उन्हें कमरा लेकर रहना पड़ा। उनके कमरे के आस-पास कई और लड़कियां भी कमरा लेकर रहती थीं। उनमें से दो लड़कियां दिव्यांग थीं। साथ में रहने के कारण उनकी एक-दूसरे से खूब बनती थी।
अक्सर सामान्य लड़कियों को जब पीरियड्स आता है, तो खाली समय में सामान्य बातचीत करते हुए कभी-कभी वे एक-दूसरे से पीरियड्स के दौरान अपने होने वाले ऐंठन, दर्द, आदि के बारे में बताती हैं। हम लोग कभी-कभी पैड्स ना होने पर दूसरी लड़कियों से पैड्स मांगकर प्रयोग करते थे लेकिन वे दिव्यांग लड़कियां शायद ही कभी अपने पीरियड्स के बारे में किसी से चर्चा करती थीं।
उन्होंने आगे बताया कि हम सबके लिए दो-तीन सार्वजनिक शौचालय थे जिनमें हम अक्सर पीरियड्स के दौरान अपने पैड्स बदला करते थे।उन दिव्यांग लड़कियों में से एक पैर से दिव्यांग थी। हालांकि वो चल सकती थी लेकिन उसमें भी उसे बहुत दिक्कत होती थी।
वह अक्सर एक ही पैड में पूरा दिन गुज़ार देती थी। हम लड़कियों को यह बात तब मालूम चली, जब एक बार उसने संक्रमण की वजह से हो रही दिक्कतों के कारण हम लोगों से दवा लाने को कहा। यह एक पैर से दिव्यांग लड़की की कहानी है।
इससे अन्य प्रकार के दिव्यांगों जैसे बधिरों और आंख से दिव्यांग लोगों के सामने पीरियड्स के दौरान आने वाली समस्याओं का अंदाज़ा लगाया जा सकता है।
दिव्यांग महिलाओं के लिए रेलिंग युक्त शौचालय होना है ज़रूरी
एक महिला जो नेत्रहीन है जब उसके जीवन में पहली बार पीरियड्स आएगा, तो वह शायद ही जान पाए कि उसे पीरियड्स आया है क्योंकि वह खून को नहीं देख ही सकती। हालांकि धीरे-धीरे वह कुछ महीनों बाद मासिक धर्म के समय होने वाले परिवर्तनों और अनुभव के आधार पर इसे समझने लगेगी।
इसी प्रकार एक बधिर महिला जो सुन नहीं सकती उसे माहवारी के दौरान कैसे स्वच्छता प्रबंधन करना है बताने के लिए दृश्यात्मक तरीके अपनाना चाहिए। शुरुआत में परिवार के महिला सदस्यों को ऐसे लोगों के प्रति पूर्ण सहानुभूति बरतते हुए उनके पैड्स खुद लगाना चाहिए एक दो-बार ऐसा करने से वे खुद पैड्स का प्रयोग करने का तरीके जान जाएंगे।
शारीरिक रूप से दिव्यांग महिलाओं के लिए उनके अनुकूल रेलिंग युक्त शौचालय होना भी बेहद ज़रूरी है, ताकि वे पीरियड्स के दौरान आसानी से साफ-सफाई के लिए शौचालय का इस्तेमाल कर सकें।
ज़मीनी स्तर पर करना होगा महिलाओं को जागरुक
पीरियड्स पर होने वाली बहसों, टेलीविजन पर आने वाले जागरूकता संबंधित प्रचारों का इन लोगों पर शायद ही असर होता है। इनके लिए उन बहसों का कोई मतलब नहीं होता है। ज़रूरत है कि इनके बीच जाकर प्रत्यक्ष रूप से संवाद के माध्यम से पीरियड्स के बारे में इन्हें बताया जाए।
इसके लिए गाँवो में काम करने वाली स्वास्थ्यकर्मियों जैसे आशा बहनों,आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों आदि को वृहद स्तर पर पीरियड्स के दौरान स्वच्छता प्रबंधन, प्रयुक्त सामग्री के निपटान आदि से संबंधित प्रशिक्षण देने की ज़रूरत है। प्रशिक्षण पाने के बाद यदि ये लोग गाँवो में छोटे-छोटे महिला जागरूकता समूह बनाकर उनको जागरूक करती हैं, तो निश्चित ही पीरियड्स से संबंधित बहुत सारी समस्याओं का हल आसानी से निकाला जा सकता है।
आशा बहनों, आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों और अन्य लोग के द्वारा प्रत्यक्ष रूप से बताई गई बातों का इन पर ज़्यादा असर होगा, इसलिए मुझे लगता है कि पीरियड्स से संबंधित समस्या के समाधान के लिए निचले स्तर से कार्य करने की सबसे ज़्यादा ज़रूरत है।