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“लॉकडाउन ने पापा को बेरोज़गार कर दिया मगर मैं IPS बनकर रहूंगी”

Problems with muslim community amid lockdown

Problems with muslim community amid lockdown

प्रिंस मुखर्जी से बातचीत पर आधारित

मैं फरज़ाना (बदला हुआ नाम), एक 19 साल की लड़की हूं। हैदराबाद के एक छोटे से इलाके में रहती हूं, जहां कोविड-19 के कारण हम और हमारी कम्यूनिटी तमाम तरह की परेशानियों का सामना कर रहे हैं।

हम जब शुरू-शुरू में हैदराबाद शहर में आएं तो एक जानकार ने पापा की नौकरी सिक्योरिटी गार्ड में लगवाई और हमने एक-एक पैसा जोड़कर किसी तरह से किराने की एक दुकान की शुरुआत की। हैदराबाद में हम जहां रहते हैं वहां पास में एक बस्ती है, जिसमें हमारी ही कम्यूनिटी के लगभग पचास हज़ार लोग रहते हैं।

हमारे ज़्यादातर ग्राहक हमारी खुद की कम्यूनिटी से ही हैं। उनके बच्चों को अपने ग्रुप के ज़रिये मैं शिक्षित करने का काम करती हूं मगर आज कोरोना महामारी की वजह से लागू किए गए लॉकडाउन ने वापस से हमारी ज़िन्दगी को सात साल पीछे कर दिया है। पिताजी किसी तरह से किराने की दुकान चलाकर परिवार चलाते थे मगर अब दुकान पूरी तरह से बंद है।

हमारी कम्यूनिटी के ग्राहकों में से ज़्यादातर ग्राहक दिहाड़ी मज़दूर हैं जिनका काम इन दिनों लॉकडाउन के कारण पूरी तरह से ठप है। जब उनके पास पैसे ही नहीं हैं तो वे हमारे यहां से सामान लेंगे कैसे?

पापा ने दुकान बंद कर दिया है और वह पूरी तरह से बेरोज़गार हो गए हैं। मेरा सपना है कि एक रोज़ मैं आईपीएस अफसर बनूं मगर कोरोना संक्रमण के कारण तमाम परेशानियों के बीच भी मुझे उम्मीद है कि एक रोज़ मैं अपने इस सपने को पूरा ज़रूर करूंगी।

जब ज़िन्दगी में एक साथ इतनी सारी परेशानियां चल रही हैं तो किसी तरह से एक एनजीओ की मदद से हम गुज़र-बसर कर रहे हैं। एनजीओ द्वारा हमें भोजन और राशन दिया जाता है।

बेहद ही कम पैसे में गुज़ारा करने वाले हम जैसे ना जाने कितने लोग इस मुल्क में हैं, जिनके लिए मौजूदा वक्त में लॉकडाउन के कारण दो वक्त की रोटी का जुगाड़ मुश्किल हो गया है।

ज़ाहिर तौर पर आने वाले समय में वक्त बदलेगा मगर अभी कोविड-19 के कारण जिस तरह से हमारी ज़िन्दगी ठहर सी गई है, उसकी पूर्ति करने में वर्षों लग सकते हैं।

इन सबके बीच हमारी कम्यूनिटी में व्याप्त गरीबी, बेरोज़गारी और अशिक्षा जैसी तमाम समस्याओं के खिलाफ ज़मीनी स्तर पर हमें काम करने की ज़रूरत है।

हम यह साबित करेंगे कि हमारी कम्यूनिटी को भी जीने का हक है। हम सरकार को समझाएंगे कि हमें भी तमाम अधिकार दिए जाएं जो देश के अन्य नागरिकों को प्राप्त हैं।


फरज़ाना जैसे बहुत से ऐसे बच्चे हैं जो सम्पन्न परिवार से नहीं आते हैं, जिनका जीवन कोविड-19 के कारण काफी ज़्यादा प्रभावित हुआ है। आइए Save the Children, Youth Ki Awaaz और संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त कार्यालय (यूएनएचसीआर) की साझेदारी में संचालित कैंपेन #EveryOneCounts का हिस्सा बनकर समाधान पर चर्चा करें कि वंचित समुदाय के अन्य बच्चों की बेहतरी के लिए क्या कदम उठाए जाएं। स्टोरी पब्लिश करने के लिए यहां क्लिक करें।

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