रजनी देवी (बदला हुआ नाम) कहती हैं, “रोज़ की तरह मैं सुबह ही अपने ईंट-भट्ठे के कार्यस्थल पर पहुंचकर काम मे जुट गई थी लेकिन कुछ देर बाद काम करते समय मुझे अपने प्राइवेट पार्ट के पास गीलापन महसूस होने लगा। मुझे तुरंत इस बात का आभास हो गया कि मेरा महीना (पीरियड्स) शुरू हो गया है।”
वो आगे बताती हैं, “मेरे पास उस समय कोई कपड़ा भी नहीं था। वहां और पुरुष सदस्यों के काम करने के कारण किसी महिला श्रमिक से कपड़ा मांगने में भी डर और शर्मिंदगी महसूस हो रही थी। ऐसे में मैने कोई और उपाय ना सूझने पर भट्ठे की राख को लेकर बगल में एक गन्ने के खेत की आड़ में जाकर अपने प्राइवेट पार्ट में लगा लिया ताकि जितना भी सम्भव हो सके वह पीरियड्स के खून को सुखा ले।”
रजनी जैसी महिलाओं के लिए सैनिटरी पैड्स खरीद पाना बेहद मुश्किल
रजनी, यूपी के सैदापुर गाँव के एक ईंट के भट्टे में कई सालों से काम कर रही हैं। मेरे द्वारा आगे सैनिटरी नैपकिन के प्रयोग के बारे में पूछने पर वो कुछ भी नहीं बता सकीं। उनका कहना था कि साहब ये सब हम गरीब लोग नहीं जानते हैं। हम सब हमेशा कपड़े का ही प्रयोग करते हैं। हमारे लिए पैड्स जैसी महंगी चीजे़ं खरीदना काफी मुश्किल है।
यह कहानी यद्यपि रजनी की है लेकिन इसमें लगभग हर दिहाड़ी मज़दूरी करने वाली महिला की कहानी झलकती है।उसके लिए दिनभर की कमाई के बाद उसको पैड्स पर खर्च करना नाजायज़ खर्च लगता है। वास्तव में इनकी गरीबी को देखते हुए रजनी की बात सही भी लगती है।
योजना स्तर पर हम पूरी तरह से फेल हैं
ऐसे में सरकार को पीरियड्स के दौरान पैड्स की उपलब्धता सस्ते दामों पर हो सके, इसके लिए एक बेहतर नीति बनाने की ज़रूरत है। अगर सरकार यह नीति बना दे कि हर कार्यस्थल पर पैड्स अनिवार्य रूप से रखना ज़रूरी है, तो निश्चित ही पैड्स की समस्या का बहुत हद तक हल हो जाए।
इसके साथ ही जिस तरह से सस्ते दामों पर गरीबों को राशन आदि का वितरण किया जाता है, उसी तरह अगर सैनिटरी नैपकिन का वितरण भी कम दामों पर राशन के साथ किया जाए तो भी काफी हद तक पैड्स की उपलब्धता की समस्या हल हो जाएगी।
सरकार को कानूनों को बनाते समय महिलाओं की पीरियड्स की समस्या के प्रति उपेक्षा का भाव त्यागना होगा। नीतियां बनाते समय पीरियड्स के दौरान महिलाओं को छुट्टी की उपलब्धता की भी व्यवस्था की जा सकती है।
क्या कहती है सर्वे रिपोर्ट?
Youth Ki Awaaz और WSSCC द्वारा माहवारी स्वच्छता प्रबंधन के मसले पर किए गए सर्वे के मताबिक, 41 प्रतिशत लोगों ने माना है कि पीरियड्स के छुट्टी की व्यवस्था होनी चाहिए। उनका मानना है कीं पीरियड्स के दौरान होने वाली ऐंठन असहनीय होती है और इससे उत्पादकता भी प्रभावित होती है।
यद्यपि छुट्टी की व्यवस्था होना सही है लेकिन यह नीति इस तरह बननी चाहिए ताकि मेंस्ट्रुअल लीव के दौरान प्राइवेट और सरकारी दोनों संस्थाओं में कार्यरत महिलाओं की सैलरी ना काटी जाए। अगर वेतन कटौती का डर रहेगा तो महिलाएं इन सुविधाओं का लाभ लेने से हिचकेंगी।
लेकिन इससे एक समस्या यह आ सकती है कि लोग महिलाओं को कार्य पर रखने से पररेज़ करेंगे। शायद इसलिए Youth Ki Awaaj और WSSCC के इस सर्वे में 24.4 प्रतिशत लोगों को लगा कि कंपनियों पर मेंस्ट्रुअल लीव के दौरान महिलाओं की छुट्टी सुनिश्चित करने के दबाव के नकारात्मक प्रभाव हो सकते हैं।
वहीं, 21.1 प्रतिशत ने माना कि इन सबके बजाय अगर कार्यस्थलों पर एमएचएम सुविधाओं में सुधार किया जाए तो वह अच्छा रहेगा। इस सर्वे से निकलकर आई इन आशंकाओं को दूर करने के लिए ज़रूरत है कि सरकार को पीरियड्स पर ऐसी नीति बनानी चाहिए जिससे संस्थाओं और महिलाओं दोनों को कोई दिक्कत ना हो।
मसलन, पैड्स के वितरण, पीरियड्स के समय बिना वेतन कटौती के छुट्टी के साथ-साथ अगर कोई महिला छुट्टी लेती है तो उसके बदले विकल्प के तौर पर शिफ्ट के अनुसार अन्य किसी महिला को कार्य पर रखने की सुविधा उपलब्घ की जानी चाहिए।
नोट: विवेक YKA के तहत संचालिच इंटर्नशिप प्रोग्राम #PeriodParGyaan के मई-जुलाई सत्र के इंटर्न हैं।