क्या आप अपना खाना खुद उगाते हैं? भारत के कई लोगों के लिए अपना खाना खुद उगाना बहुत साधारण सी चीज़ है। ग्रामिण क्षेत्र के आदिवासी अपना खाना जैसे आलू, कन्दमुल, इत्यादि का उत्पादन खुद करते हैं।
इसका सबसे बड़ा कारण है कि इन आदिवासियों के पास खाना खरीदने के लिए रुपये आपर्याप्त होते हैं। दूसरा और सबसे बड़ा कारण है कि आदिवासी अपना काम स्वयं करते हैं और दूसरों पर निर्भर नहीं रहते हैं।
कैसे होती है आलू की खेती?
आलू की खेती छत्तीसगढ़ के कई गाँव में होती है। आलू का बीज खरीदने के बाद उन्हें एक सप्ताह तक ढककर रखते हैं, जिससे सफेद रंग का तना बाहर निकल जाता है। इन बीजों को नदी के किनारे या घर में भी लगा सकते हैं लेकिन नदी की मिट्टी, बाड़ी की मिट्टी से ज़्यादा उपजाऊ होती है।
नदी की जो मिट्टी होती है, उसमें कई अपशिष्ट पदार्थ मिले-घुले होते हैं, जिससे वह मिट्टी फसल लगाने युक्त हो जाती है। इससे फसल भी अधिक प्राप्त होती है। कई लोग ज़्यादातर नदी मे ही कछार बनाते हैं और वहीं आलू की खेती कर लेते हैं।
सबसे पहले कछार बनाने के लिए नदी किनारे को अच्छे तरीके से साफ कर लेते हैं। मिट्टी की जो उपरी परत होती है, उसे फावड़े की सहायता से बाहर निकाल देते हैं। फिर नीचे की मिट्टी को बराबर कर लेते हैं।
यह जो नीचे की मिट्टी होती है, वह बहुत ही फुर्तीली और गीली होती है, इसलिए उस मिट्टी को सूखने के लिए एक सप्ताह तक छोड़ देते हैं।
मिट्टी सूख जाने के बाद उसे बराबर करते हैं और मिट्टी की पट्टी बना लेते हैं, जिसे आदिवासी ‘मान्दा भरना’ कहते हैं। इसी मान्दे के बीच मे एक जगह खाली रख देते हैं। फावड़े की सहायता से मान्दा को बराबर करते हैं और आलू के बीज को मान्दा के बीच में डालते हुए मिट्टी से ढ़कते जाते हैं। सभी पट्टियों के बीच मेंआलू को एक-एक कर के लगाते जाते हैं।
फिर उस आलू के बीज मे पानी डालते हैं। अगर मिट्टी गिली रहती है, तो उसमे पानी नहीं डालते, क्योंकि मिट्टी गीली रहने से आलू के बीज सड़ जाते हैं। मिट्टी के सूखने के बाद ही आलू के बीज मे पानी डाला जाता है।
एक सप्ताह बाद आलू के छोटे-छोटे पौधे ज़मीन पर आ जाते हैं। चार-पांच दिन के बाद आलू के पौधे थोड़े बड़े हो जाते हैं। आदिवासी हर दिन उस फसल की देख-रेख करते हैं और लगभग दो महीने बाद आलू के पौधे बड़े होकर सूखने लगते हैं।
पौधे पूरी तरह सूखने के बाद आलू को बाहर निकाला जाता है, जिसमें एक आलू के पौधे मे कम-से-कम छः या सात बीज होते हैं।
सभी आलू को बाहर निकालने के बाद आधे आलू अपने पास रखते हैं और कुछ बेच देते हैं जिससे आदिवासियों की कमाई भी हो जाती है। ऐसे होती है मेरे गाँव में आलू की खेती। क्या आपके गाँव में भी इसी तरीके से खेती होती है?
लेखिका के बारे में- वर्षा पुलस्त छत्तीसगढ़ में रहती हैं। पेड़-पौधों की जानकारी रखने के साथ-साथ वो उनके बारे में सीखना भी पसंद करती हैं। उन्हें पढ़ाई करने में मज़ा आता है।