“मैं सांस नहीं ले पा रहा हूं ऑफिसर”
46 वर्षीय जॉर्ज फ्लॉयड तड़पते रहे लेकिन पुलिसवाला मानो नस्लभेद के नशे में इस तरह चूर था कि उसके कानों पर जू तक नहीं रेंग रही थी। जॉर्ज तड़प तड़पकर अपनी जान बचाने की गुहार लगाते रहे और देखते ही देखते उनकी सांसें बंद हो गईं।
जिस अमेरिका में एक अश्वेत राष्ट्रपति रह चुके हों, वहां ना केवल सरेआम एक अश्वेत आदमी को बड़ी ही बेरहमी से मार दिया जाता है, बल्कि उसे फिल्माया भी जाता है। पूरी दुनिया अमेरिका में हुई इस क्रूर घटना को अपनी आखों के सामने देख रही होती है और खुद से पूछ रही होती है कि क्या हम एक समाज और एक इंसान के रूप में असफल नहीं हो गए?
नस्लभेदी मानसिकता की शुरुआत कैसे हुई?
आखिर कौन थे जॉर्ज फ्लॉयड जिनकी हत्या ने ना सिर्फ अमेरिका बल्कि जर्मनी, ब्रिटेन, कनाडा और दुनिया के अनेक देशों में लोगों को लॉकडाउन की परवाह किए बिना सड़कों पर प्रदर्शन करने के लिए बाहर आने को मजबूर कर दिया?
जॉर्ज फ्लॉयड अश्वेत अफ्रीकन अमेरिकन समुदाय से थे, वही अश्वेत अमेरिकन समुदाय जिनके पूर्वजों को अफ्रीका के कई देशों से स्लेव (गुलाम) के रूप में खरीदकर अमेरिका लाया गया और स्लेवरी कानून के खत्म होने के कई साल बाद तक भी इस समुदाय को नस्लभेद के कारण कई तरह की सामाजिक प्रतारणाओं से गुज़रना पड़ा और यह सिलसिला कहीं ना कहीं आज भी जारी है।
अमेरिका ने इसे कानूनी रूप से तो प्रतिबंधित कर दिया लेकिन अपने ही समाज के अधिकतर श्वेत लोगों की नस्लभेदी मानसिकता को खत्म करने में वह काफी हद तक असफल रहा।
जिस ब्लैक अफ्रीकन अमेरिकन समुदाय ने अपनी मेहनत से अमेरिका को एक विकसित देश के रूप में बसाया, उसी समुदाय को बदले में वही देश न्याय ना दे सका।
कैसे हुई जॉर्ज की हत्या?
जॉर्ज, मिन्नेपोलिस शहर के एक रेस्टोरेंट में सुरक्षा गार्ड की नौकरी करते थे और परिवार की पूरी ज़िम्मेदारी उनके कन्धों पर थी। रेस्टोरेंट मालिक के अनुसार, जॉर्ज बहुत मेहनती और ईमानदार व्यक्ति थे।
जॉर्ज ने कभी नहीं सोचा होगा कि 25 मई का दिन उनके जीवन का शायद आखरी दिन होगा। जॉर्ज को अंदाज़ा भी नहीं था कि अज्ञात आदमी पुलिस को फोन कर यह बताएगा कि उसे एक व्यक्ति पर शक है जो जाली नोट से भोजन खरीद रहा है।
यूं तो वहां अन्य लोग भी भोजन कर रहे होते हैं लेकिन पुलिस ऑफिसर डेरेक चौविन की नज़र जॉर्ज पर पड़ते ही सिर्फ शक के आधार पर उन्हें हाथ ऊपर करने को कहा जाता है और देखते ही देखते तीन पुलिस अफसर जॉर्ज को ज़मीन पर पटक देते हैं।
डेरेक चौविन अपना बायां पैर जॉर्ज की गर्दन पर रखकर तकरीबन 8 मिनट तक बड़ी ही बेहरहमी से दबाते रहते हैं और जॉर्ज मौके पर ही दम तोड़ देते हैं। हम वीडियो में साफ तौर पर यह देख सकते हैं कि किस तरह से वहां से गुज़रते हुए लोग पुलिस से सवाल कर रहे हैं और उन्हीं लोगों के सामने जॉर्ज को सारेआम मार दिया जाता है।
कभी मज़हब तो कभी जाति के नाम पर भारत में भी ऐसी हत्याएं सामान्य हैं!
आज अमेरिका का ब्लैक समुदाय और पुलिस के इस अमानवीय व्हवहार से नाराज़ हर वह व्यक्ति सड़कों पर प्रदर्शन कर रहा है। इस घटना ने यह साबित कर दिया है कि नस्लवाद काफी घातक बीमारी है। मशहूर ब्लैक अमेरिकी लेखक जेम्स बाल्डविन की भाषा में आज पूरा ब्लैक समुदाय यह पूछ रहा है कि आपके समाज को बदलने के लिए अभी कितना समय और चाहिए?
जॉर्ज फ्लॉयड की घटना ‘विश्व गुरु’ भारत के लिए भी एक सबक है जहां हर साल पिछड़े और कमज़ोर वर्ग के लोगों को कभी जाति के नाम पर तो कभी धर्म के नाम पर मार दिया जाता है। जिस तरह से अमेरिकी जेलों में वहां के ब्लैक समुदाय के सबसे ज़्यादा लोग कैद हैं, उसी प्रकार हमारे यहां अल्पसंख्यक और पिछड़े समुदाय के लोगों को जेलों में डाल दिया जाता है।
लेकिन सोशल मीडिया पर ब्लैक लाइव्स मैटर (ब्लैक ज़िंदगी मायने रखती है) टैग करने वाला संपन्न भारतीय समाज अपने लोगों के साथ खड़ा नहीं पाया जाता! यह पाखंड नहीं तो और क्या है कि जिस देश में एक जाति विशेष के लोगों को मूंछ रखने पर, घोड़ी पर चढ़ने पर, बुलेट खरीदने पर, ऊंची मकान बनाने पर, उच्च शिक्षा हासिल करने पर, अच्छे कपड़े पहनने पर और गौ रक्षा के नाम पर मार दिया जाता है।
बहुसंख्यक लोगों द्वारा शोषित दुनिया का हर व्यक्ति जॉर्ज फ्लॉयड है
ऐसी घटनाओं में हमारा यही समाज मूकदर्शक बना मात्र तमाशा देखता रहता है। कई सेलिब्रिटी जो आज अपने ट्विटर पर ‘ब्लैक लाइव्स मैटर’ हैशटैग करते नज़र आते हैं, वे अपने ही देश में हो रहे अन्याय पर चुप्पी साध लेते हैं।
दुनिया का हर वह व्यक्ति जॉर्ज फ्लॉयड है, जो किसी भी प्रकार से उस समाज के बहुसंख्यक लोगों द्वारा कभी धर्म के नाम पर, कभी नस्ल, रंग या लिंगभेद के नाम पर प्रताड़ित किया जाता है।
दुनिया का कोई भी लोकतंत्र तभी एक महान लोकतंत्र बनता है जब वह बहुसंख्यक समाज के साथ-साथ अपने समाज के सबसे कमज़ोर व्यक्ति के अधिकारों की रक्षा करने में पूरी तरह से सफल हो पाता है। वही अधिकार, जिनकी प्रस्तावना भारतीय संविधान में बड़े ही गर्व से की गई है लेकिन क्या हम एक समाज के रूप में अपने ही लोगों को इस महान संविधान के महत्त्व को समझाने में सफल हो पाए हैॆं?