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#My Period Story: माहवारी

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माहवारी

बचपन हर गम से बेगाना होता है| वह निर्विकार, निष्फिक्र आजाद उम्र जो शायद ही किसी को याद होगी,क्युकी यदि हमारा बचपन जब हमे याद रहने लगे तो समझ लीजिये वह बचपन रहा ही नहीं, सही मायनो में बचपन सिर्फ हमारे पालक को याद रहता है, क्युकी उन्ही ने हमारे बचपन को देखा व् महसूस किया है |

बचपन जो सभी प्रकार की चिन्ताओ से मुक्त न कोई सुख की चिन्ता तो न ही किसी गम का डर ,बस खेलना और भाई बहनों के साथ के वोह खटे मीठे पल | यह खेलते -खेलते में कब बड़ी हो गई पता ही नहीं चला | शरीर में कुछ परिवर्तन हुए तो माँ का बार बार टोकना कपडे सही से पहनो, किसी के सामने कपडे मत बदलो ,ऐसे बेठो ,इससे बात करो उससे नहीं, यहाँ जाओ वहा नहीं, जब माँ यह बोलने लगी तो मन में हमेशा एक बात जरुर आई पहले तो कभी नहीं बोला आज पता नहीं क्यों बोलती हे ?

उपरोक्त बातो को में माँ से कभी पूछ नहीं पाई न ही उन्होंने कभी बताया, अब में कक्षा 8 में पड़ रही थी | सर्दी के दिन थे और में हमेशा की तरह दादी के पास ही सो रही थी अगले दिन जब उठी तो मनो जैसे तूफान आ गया हो मेरे कपडे खून में सने थे, देख कर हेरानी हुई और रोना आ गया | दादी ने माँ को बुलाया तो माँ ने नहाने भेज दिया और कहा की माहवारी आई हे अब तुम बड़ी हो गई और कुछ पूछना चाहा तो कहा तुम चुप रहो और नहा लो और फिर ये कपडा लगा लेना | मन में बहुत से सवाल थे और उपर से वोह कपडा इस्तमाल करना और उसे धोकर किसी कोने में छिपा कर सुखाना और इस बात का ध्यान रखना की उसे कोई देखे ना सके | सबसे बड़ी परेशानी यह थी की उस कपडे को साफ़ करते समय अक्सर मुझ उलटी जैसा जी करता था | साथ ही उस समय हमे अलग से रेशमी बिस्तर अलग से सोने हेतु दिए जाते थे, अलग से बर्तन खाने के लिए होते थे जिसे मिटटी से धोना होता था | उस समय का सबसे कठिन कार्य था एक कोने में रहना व् भाई ,पापा व् दादा के सामने न जाना व् किसी भी सामान को ना छुना | सवाल कई थे परन्तु जवाब कही से न थे , अगर इसी के साथ स्कूल में कभी कपड़ो पे दाग लग जाते तो मेडम का दतना की तुम गाँधी रहती हो तुम्हे तुम्हारी माँ ने कुछ नहीं सिखाया क्या ? यह बात सुन कर और गुस्सा आता |

ऐसे ही में बी.ए फाइनल इयर में आ गयी तब मेरी एक दोस्त ने मुझे बताया की कपडे की जगह पेड़ का भी इस्तमाल कर सकते हे, जब घर आ कर माँ को बताया तो माँ ने मना कर दिया की वो बहार जाती नहीं हे तो किस से मंगवाएंगे और कहा कपडा ही इस्तमाल कर लो | मुझ यह बात सुन बोहत गुस्सा आया परन्तु मेने ठान ली की में पैसे ले कर रहूंगी मेने माँ से पैसे लिए और अपनी सहेली के साथ जाकर पेड़ ख़रीदा तब जाकर मुझ कपडे से निजत मिली |

समय के साथ साथ बोहत कुछ बदला और मन में बोट से सवाल आये की परंपरागत सोच के कारण माँ ने कभी कुछ पूरा बताया नहीं न जिससे मुझ कितनी कठिनयियो का सामना करना पड़ा आज मेने उन सभी को तोडा हे और में अपने घर में वह सब काम करती हु जो पहले नहीं होते थे |

धन्यवाद

मोना सोनी

एस.एम्

रूम टू रीड

 

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