छत्तीसगढ़ के घने जंगलों में कई प्रकार की जड़ी-बूटियां मिलती हैं, जिनका इस्तेमाल आदिवासी अपने खाने में और दवाइयों के लिए करते हैं। ऐसी ही एक जड़ी है भूलन जड़ी। भूलन जड़ी का नाम अगर आपको अजीब लग रहा हो, तो आप बिल्कुल सही हैं, क्योंकि इस नाम के पीछे का कारण भी उतना हाई अजीब है।
लोगों का मानना है कि अगर चलते समय यह जड़ी पैर के नीचे आकर पैर को छूती है, तो लोग सब भूल जाते हैं। इस जड़ी के पेड़ के बारे में भी लोग मानते हैं कि अगर इस पेड़ से दूर चलने की कोशिश करोगे, तो सीधा जाकर वापस पेड़ के पास आओगे।
इससे लोग यह निष्कर्ष निकालते हैं कि भूलन जड़ी वहीं अपने स्थान पर गोल-गोल घूम रही है, इसलिए इंसान को भी गोल- गोल घुमाती है। गरियाबंद के चलती राम बताते हैं, “भूलन जड़ी जंगलों में उगती है और इस जड़ी को बहुत कम लोगों ने देखा है, क्योंकि यह जड़ी कुछ क्षणों के लिए ही दिखती है। उसके बाद यह लुप्त हो जाती है।”
ऐसा लोगों का मानना है कि इसे एक बार देख लिया सो देख लिया, यह फिर से नहीं दिखती है। बुज़ुर्गों का कहना है कि भूलन जड़ी आसानी से नहीं दिखती है। यह दिन, समय, तिथि अनुसार अचानक आपको दिखती है। चलती राम को उसके दादा-परदादा ने यह कहानी बतायी हैं और यही कहानी गाँव में पूर्वकाल से चलती आ रही है।
मैंने इस भूलन जड़ी के बारे में कई गाँव में जाकर पूछा तो मुझे अंदाज़ा हुआ कि लोगों की कहानियां मिलती-जुलती हैं। लोगों ने मुझे यह भी बताया कि जंगल में भूलन जड़ी के अलावा और भी कई जड़ी-बूटियां हैं, जो लुप्त हो जाती हैं फिर ढूंढने पर भी नहीं मिलती।
गाँव के कई लोग जो जंगल जाते रहते हैं, वे इनसे पूरी तरह से वाकिफ रहते हैं। फिर भी लोगों का मानना है कि जब वे भूलन जड़ी के संपर्क में आते हैं, तो सब भूल जाते हैं। भूल जाने पर दिशा समझ नहीं आती और पेड़-पौधे, नदी-तालाब, पहाड़ सब बडे़-बडे दिखने लगते हैं।
इस स्थिति में कुछ भी समझ नहीं आता और लोग वहीं के वहीं गोल-गोल घूमते रहते हैं। कई दफा वे जंगलों में इधर-उधर भटक भी जाते हैं।
इस विस्मृति की स्थिति से छुटकारा पाने के लिए एक ही रास्ता है, वो यह कि जो कपड़े पहनकर गए थे, उन्हें उलटकर मतलब उल्टा पहनना होगा। इसके बाद ही कोई व्यक्ति उस जंगल से निकल सकता है। अन्यथा निकलना बहुत मुश्किल हो जाता है।
भूलन जड़ी को तोड़कर लाना इतना आसान नहीं है। इसकी पहचान जंगल में रहने वाले आदिवासियों और वैधों को ज़्यादा होती है, क्योंकि बचपन से लेकर अब तक वे सैकड़ों बार जंगल गए हैं। कई लोगों ने इसे तोड़कर लाने की कोशिश की है लेकिन असफल रहे हैं। यह भूलन जड़ी अपने आप में ही एक रहस्य है।
लेखक के बारे में- खगेश्वर मरकाम छत्तीसगढ़ के मूल निवासी हैं। वो समाज सेवा के साथ खेती-किसानी भी करते हैं। खगेश का लक्ष्य है शासन-प्रशासन का लाभ आदिवासियों तक पहुंते। वो शिक्षा के क्षेत्र को आगे बढ़ाना चाहते हैं।