नेक प्रकार के पेड़-पौधे तथा जीव-जंतुओं के साथ हमारे छत्तीसगढ़ में घने जंगल हैं। छत्तीसगढ़ का फॉरेस्ट कवर 44% है। छत्तीसगढ़ के कुछ जंगलों और उनके आसपास आदिवासी बसे है, जो कि पर्यावरण और अपने आप को यहां सुरक्षित महसूस करते हैं।
आदिवासी जंगलों पर खाने और कभी-कभी आमदनी कमाने के लिए भी निर्भर रहते है। जंगलों से पाए जाने वाले पौधों से आदिवासी बहुत अनोखे पकवान बनाते हैं। यहां बरसात के दिनों में बांस के पौधे से निकलने वाली कली से, जिसे हम आदिवासी करील बोलते हैं, एक बहुत स्वादिष्ट सब्ज़ी बनाते हैं।
सब्ज़ी बनाने की विधि
यह बांस का पौधा घर के आसपास भी लगाया जाता है लेकिन यह पहाड़ी इलाकों में ज़्यादा मिलता है। यह सिर्फ बरसात के दिनों में ही निकलता है, क्योंकि पानी गिरने से पेड़ के नीचे नमी आ जाती है फिर कली निकल आती है।
कली को निकाल दिया जाता है; यह लगभग 5-8 इंच लंबी होने के बाद निकाली जाती है। तभी उसे पकाने के बाद स्वाद बढ़िया आता है। उसके ऊपर के भाग को जिसे हम छिलका बोलते हैं, उसे निकाल लेते हैं और उसके अंदर के भाग को बारीकी से काट देते हैं।
इसे ऐसे ही 2 दिन रखा जाता है ताकि उसका पानी अच्छे से निकल जाए। इसके बाद होती है सब्ज़ी बनाने की प्रक्रिया शुरू। करील की सब्ज़ी बनाने के लिए हमें इन चीज़ों की ज़रूरत होती है-
- एक चम्मच हल्दी पाउडर
- एक चम्मच मिर्च पाउडर
- एक चम्मच जीरा
- एक लहसुन
- एक बड़ा चम्मच तेल
- स्वाद अनुसार नमक
- एक गर्म मसाला
- एक प्याज़
सब्ज़ी बनाने के लिए करील को उबालते हैं लेकिन कभी-कभी ऐसे भी बना लेते हैं। कढ़ाई को आग पर रखकर उसमें तेल डाला जाता है और साथ जीरा, लहसुन और प्याज़ डाल दी जाती है।
इसके बाद करील को भी कढ़ाई में डाला जाता है और अंत में हल्दी, मिर्च पाउडर और मसाले को भी डाला जाता है। इस तरह से सब्ज़ी तैयार।
इस करील की सब्ज़ी को ज़्यादातर चावल के साथ खाया जाता है लेकिन कभी-कभी सिर्फ आलू के साथ भी खाते हैं। यह छत्तीसगढ़ के आदिवासियों का मनपसंद खाना है।
आदिवासियों के जीवन में बांस के अनेक उपयोग होते हैं। यह सिर्फ सब्ज़ी बनाने के लिए ही नहीं, बल्कि कई अलग-अलग चीज़ों के लिए इस्तेमाल होता है। जैसे- चटाई, टूकनी, झवा, सुपा और तीर-कमान बनाने के लिए भी इसका उपयोग होता है।
अगर आपके आसपास बांस का पौधा है, तो आप भी करील की सब्ज़ी बनाकर देखें और आदिवासियों के इस व्यंजन को चखें।
लेखक के बारे में- खाम सिंह मांझी छत्तीसगढ़ के रहने वाले हैं। उन्होंने नर्सिंग की पढ़ाई की है और वो अभी अपने गाँव में काम करते हैं। वो आगे जाकर समाज सेवा करना चाहते हैं।