बंगाली समाज में बहुत से बुद्धिजीवी वर्ग के लोगों को हमने पढ़ा है और उनसे बहुत प्रभावित भी हुए हैं। जब बात आती है बंगाली समाज की तो कवि रवीन्द्रनाथ टैगोर जी को कौन भूल सकता है? उनके लेख बहुत ही प्रभावशाली थे और आज भी उनसे प्रेरित होकर कई फिल्में बनाई गई हैं।
उनकी उपन्यास ‘कादम्बरी’ से कहीं ना कहीं प्रेरित होकर अनुष्का शर्मा अबकी बार लेकर आई हैं फिल्म बुलबुल। इसमें महिलाओं के साथ ज़ुल्म की हर वो तस्वीर है, जिसे हम अपनी भाषा में शोषण कहते हैं।
क्या है बुलबुल की कहानी?
बुलबुल फिल्म की पृष्ठभूमि 100 साल पहले की है, जब बंगाल में ईश्वर चन्द्र विद्यासागर जैसी हस्तियां महिलाओं के शोषण के विरुद्ध आवाज़ उठा रही थीं।
बुलबुल एक छोटी लड़की का पात्र है, जिसका विवाह एक ज़मीदार घराने में अपनी उम्र से कई साल बड़े लड़के से होती है, जिसका नाम इंद्रनील होता है। इंद्रनील का छोटा भाई सत्या, जो उम्र में बुलबुल के बराबर ही है, वह बुलबुल के साथ खेलता है, उसको कहानियां सुनाता है, जिससे बुलबुल उसको प्यार करने लगती है।
बचपन में चंचलता और स्नेह, जवानी में प्रेम में बदल जाता है। बुलबुल को बचपन से ही अपने हमउम्र सत्या के साथ एक सुकून मिलता है। वह उसके और करीब हो जाती है।
इस बात की भनक इंद्रनील को भी अपनी भाभी से लग जाती है। इंद्रनील का मंद बुद्धि भाई महेंद्र और उसकी पत्नी बिनोदिनी, दोनों बुलबुल से कोई खास बर्ताव नहीं करते। वहीं, सत्या से प्रेम वाली खबर भी इंद्रनील को बिनोदिनी ने ही दी थी।
इंद्रनील इस बात से बहुत नाराज़ होता है और बिना कोई सवाल किए वह उसको पढ़ने के लिए लंदन भेज देता है। इस विरह से बुलबुल पूरी तरह टूट जाती है। यह भी एक समस्या है अधेड़ व्यक्ति से शादी की मगर समाज इसको अनदेखा कर देता है।
सत्या के लंदन जाने के एक दिन बाद ही इंद्रनील रात को शराब पीकर घर आता है और बहस करते हुए बुलबुल को शारीरिक यातना देता है। उसको इतना मारता है कि बुलबुल अधमरी हो जाती है। उसके पैरों को बुरी तरह ज़ख्मी कर देता है और इसके बाद वह घर छोड़कर चला जाता है।
मंद बुद्धि महेंद्र, बुलबुल के साथ घायल अवस्था में ही यौन शोषण करता है। इसके बाद गाँव मे एक डॉक्टर सुदीप, बुलबुल का इलाज करता है। इंद्रनील के जाने के बाद बुलबुल बड़ी बहू होने के नाते घर संभालती है और किसी अज्ञात कारणों से महेंद्र भी मर जाता है। बिनोदिनी मानती है कि उसको किसी चुड़ैल ने मारा है।
इसके बाद सत्या लंदन से लौट आता है और इस बात से बुलबुल ज़्यादा खुश नहीं होती है। उसके चेहरे पर एक विषाद की साफ झलक देखने को मिलती है। इस बात के लिए सत्या उसको चरित्रहीन मानने लगता है और डॉक्टर सुदीप के साथ बुलबुल को घुलता-मिलता देख वह क्रोधित होकर बुलबुल को वापस उसके मायके भेजने की तैयारी करने लगता है। यहां भी समाज महिलाओं का शोषण करने से नहीं चूकता।
महिलाओं के साथ हिंसा समझने लायक है
कहानी में महिलाओं के साथ होती क्रूरता का दृश्य समझने लायक है। उस समय की पनपी हुई महिलाओं से सम्बंधित समस्या फिल्म के ज़रिेये समझाने की कोशिश की गई है। जैसे बाल विवाह, घरेलू हिंसा, यौन उत्पीड़न और चरित्रहीन का तमगा आदि।
कहानी की नायिका ने महिला समाज में फैले द्वंद और उसकी परतों को बहुत बखूबी निभाया है। महिलाओं की स्थिति में अब और तब में ज़्यादा अंतर नहीं है। महिलाएं आज भी उसी शोषण से जूझ रहीं हैं, जो एक सदी पहले था।
बुलबुल एक ऐसी कहानी है, जो महिलाओं की समस्याओं को परत-दर-परत को खोलने का दम रखती है। फिल्म को समझने के लिए देखेंगे तो कुछ-ना-कुछ सीख और समझ कर उठेंगे और अगर फिल्म की तरह मनोरंजन के तौर पर देखेंगे तो आपको निराशा हाथ लग सकती है।