भारत और चीन के बीच चल रहा सीमा विवाद इन दिनों सबसे ज़्यादा सुर्खियां बटोर रहा है। पहली बार, यह मामला मई के शुरुआती दिनों में तब सामने आया जब चीनी और भारतीय सैनिकों के बीच झड़प हो गई। यह झड़प पैंगौंग लेक के क्षेत्र में हुई थी जो पूर्वी-लद्दाख का इलाका है। यह पहले जम्मू और कश्मीर राज्य का हिस्सा था लेकिन अब सीधे केंद्र के नियंत्रण में है।
बॉर्डर की लड़ाई सोशल मीडिया पर आ गई
पैंगौंग लेक में हुई झड़प के अलावा, सिक्किम में भी चीनी सैनिकों की घुसपैठ के बाद भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच हाथा-पाई हुई। हालांकि एक समझौते के चलते एक-दूसरे पर बंदूक नहीं चलाई जा सकती थी। हफ्ते भर से भी ज़्यादा दिनों से चल रहा यह मामला अब सोशल मीडिया पर आ गया है। आए दिन हो रहे इस विवाद का जवाब अब चीनी माल और उनकी टेक्नोलॉजी का बहिष्कार करके देने की कोशिश की जा रही है।
सोशल मीडिया पर भी #Boycottchineseproducts ट्रेंड होने लगा है। वहीं फिल्म ‘3 इडियट्स’ के ‘रैंचो’ के किरदार का प्रेरणास्रोत रहे सोनम वांगचुक ने भी चीनी माल के विरोध के प्रति अपना दम भरा है। उन्होंने कहा कि चीन से निपटना है तो उसकी अर्थव्यवस्था पर हमला बोलना पड़ेगा, सेना बुलेट से जवाब देगी और हम वॉलेट से। उनका कहना है कि भारतवासियों को स्वदेशी अपनाना चाहिए।
पहले भी हो चुका है #Boycottchineseproducts ट्रेंड
चीनी माल के विरुद्ध यह जंग कोई नई नहीं है। पहले डोकलाम विवाद के वक्त भी इसका इस्तेमाल किया गया था, फिर बाबा रामदेव ने सभी लोगों से स्वदेशी अपनाने का आहवान किया था। मसूद अज़हर को आतंकी घोषित करने के वक्त जब चीन अड़ंगा डाल रहा था तब भी इस हैशटैग ने ज़ोर पकड़ा था। नतीजे हम सबके सामने हैं, चीन से आयात में कोई कमी नहीं आई।
उपभोक्ताओं ने सस्ते दाम पर चीज़े खरीदना मुनासिब समझा और फिर यह हैशटैग भी ठंडा पड़ गया। कुल मिलाकर यह बहिष्कार करने वाला आइडिया तब भी असफल हो गया था।
चीन के सामान का बहिष्कार करने वाले दावे में कितना है दम
अब एक बार फिर यह हैशटैग सुर्खियों में है। यह भी महत्वपूर्ण है कि बहिष्कार करने की यह कार्रवाई हम व्यापार युद्ध के चलते नहीं कर रहे। अगर चीन मसूद अज़हर को आतंकी घोषित करने में हमारा समर्थन नहीं कर रहा था तो जवाबी कार्यवाही में चीन के सामान का विरोध करना कितना सही है? चीन के साथ चल रहा हमारा विवाद गैर-व्यापारिक मुद्दा है लेकिन हमारा जवाब व्यापारिक तरीकों से क्यों? और कैसे?
विवाद की जड़ें कुछ हैं लेकिन विवाद का जवाब कुछ और? केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने विवाद को सुलझाने के लिए बातचीत पर ज़ोर देना ज़्यादा सही समझा। भारत का सीमा-विवाद और भी देशों के साथ चल रहा है। कई और मुद्दों पर भी तमाम देशों के साथ भारत का विवाद चल रहा है लेकिन वहां माल और सेवाओं का बहिष्कार करना एक मात्र विकल्प नज़र नहीं आता।
सोनम वांगचुक की बातों को अपनाना कितना आसान है?
वहीं अगर सोनम वांगचुक की बात पर गौर करें तो उनकी बात में दम तो ज़रूर है लेकिन उन बातों को अपनाना कितना संभव है? यह बड़ा सवाल है? चीनी माल का बहिष्कार करना व्यक्तिगत पसंद पर निर्भर करता है और इसका आधार तब बदल जाता है जब यह व्यक्तिगत पसंद से ज़्यादा व्यक्ति की जेब पर और उसके बजट पर निर्भर करने लगता है।
सोचिए अगर सस्ते दर में अच्छी चीज़ मिल रही हो और उसके उलट वही चीज़ जो ‘मेड इन इंडिया’ होकर भी महंगी मिल रही हो तो आप कौन सी चीज़ खरीदेंगे?
इन सब हैशटेग के बीच 2014 में शुरु हुआ ‘मेक इन इंडिया’ कहीं गुम हो गया है। मीडिया में भी ना तो इस पर कोई चर्चा है और ना ही सोशल मीडिया पर इसकी वाह-वाही जिसका, साफ मतलब है कि यह योजना सफल नहीं हो पाई है।
इस योजना के बाद भारत ‘असेंबली हब’ ज़रूर बन गया है जहां कई मोबाईल फोन के अलग-अलग पार्ट्स को जोड़ा जाता है लेकिन वो डिज़ाइन दूसरे देशों में ही होते हैं। अगर अच्छी गुणवक्ता का सामान सस्ते दामों पर भारत में ही बनाया जाए तो लोग क्यों किसी दूसरे देश का सामान खरीदेंगे?
क्या है सरकार की भूमिका
‘ट्रेड वॉर’ यानी व्यापार युद्ध जिसमें आयात शुल्क बढ़ा दिया जाता है और कई तरीकों से दूसरे देशों के आयात को प्रभावित किया जाता है लेकिन वैश्वीकरण और उदारवाद के बाद अंतरराष्ट्रीय व्यापार संगठन आयात को प्रतिबंध करने की ना तो इजाज़त देता है और ना ही यह कदम किसी भी देश की अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा साबित होता है।
इसीलिए, सरकार से इस स्तर पर तो उम्मीद नहीं की जा सकती है लेकिन घरेलू उद्योग को बढ़ाने में सरकार की क्या नीति है? यह पूछा जाना बहुत ज़रूरी हो जाता है।
क्या कहते हैं आंकड़े?
एक और तथ्य भी जान लेना चाहिए कि भारत चीनी सामानों के लिए एक बड़ा बाज़ार है और चीन अपने निर्यात का कुल 3 प्रतिशत भारत में निर्यात करता है। 2019 में चीन ने कुल 75 खरब डॉलर का व्यापार भारत के साथ किया है। वहीं भारत अपने निर्यात का 4.4% से 5.3% चीन में निर्यात करता है और इसमें भारत का 17 खरब डॉलर का कारोबार होता है।
ऐसे में चीन से व्यापार युद्ध करना खुद के पैर पर कुल्हाड़ी मारने जैसा है जिससे भारत की अर्थव्यवस्था को ही चोट पहुंचेगी। भारत का चीन के साथ व्यापार घाटा कोई नई बात नहीं है जब आयात निर्यात से ज़्यादा हो जाए है तो उसे व्यापार घाटा कहते हैं। 1991 से 1993 तक तो चीन के साथ भारत का व्यापार ठीक चल रहा था, बल्कि इससे पहले तो भारत खुद मुनाफे में चल रहा था, लेकिन इसके बाद भारत का घाटा लगातार बढ़ता चला गया।
2018-19 में भारत ने करीब 70.3 खरब डॉलर का आयात किया था और 16.7 खरब का निर्यात, इसमें कुल 53.6 खरब डॉलर का घाटा सामने आता है। वहीं 2019 में 7 हज़ार अरब का कारोबार भारत ने चीन के साथ किया जिसमें 5 हज़ार 625 अरब का आयात और 1 हज़ार 350 अरब का निर्यात है जिसमें 4 हज़ार 200 अरब से भी ज़्यादा का घाटा भारत को झेलना पड़ा जो अर्थव्यवस्था के लिए ठीक नहीं है।
क्या कहते हैं ‘एक्सपर्ट्स’?
चीन के साथ इस व्यापार में हर तरफ से घाटा ही घाटा नज़र आ रहा है और गैर-व्यापारिक विवाद भी चीन के साथ लगातार बढ़ रहे हैं। दोनों की सेना मज़बूत है तो ज़ाहिर है कि युद्ध में सबका नुकसान है। भारत का भी यही कहना है कि बातचीत से ही मामला हल हो सकता है।
दूसरी बात, चीनी माल के बहिष्कार करने को लेकर यह है कि एकदम से इतना बड़ा बहिष्कार करके कुछ निकलने वाला नहीं है, बल्कि नुकसान ही है। कुछ विशेषज्ञ बताते हैं कि ‘इंपोर्ट सब्सटीट्यूशन’ यानी आयात प्रतिस्थापन ही एक मात्र हल है। मेक इन इंडिया पर ज़ोर दिया जाए, भारत के उद्योगपति भी अपने उत्पाद की कीमत किफायती रखें ताकि वो चीन के सस्ते माल के साथ बराबरी से प्रतिस्पर्धा कर सकें।
चीन अपना सारा माल और अपनी सेवाएं परोक्ष रूप से नहीं बेचता, कई भारतीय व्यापारी हैं जो चीनी माल को खरीद कर बेचते हैं। जिसमें छोटे और मझौले व्यापारी भी हैं। अगर भारतीय चीनी माल का बहिष्कार कर देंगे तो वे अपनी जेब के बजट से समझौता कर बैठेंगे और अपने ही लोगों का बहिष्कार कर देंगे।