माहवारी वैसे तो एक सामान्य शारीरिक प्रक्रिया है लेकिन भारत सहित विश्व के कुछ अन्य देशों में भी इसे अलग-अलग प्रथाओं से बांधा जाता है, जिसके कारण इस पर खुलकर चर्चा नहीं होती है।
माहवारी को अक्सर निजी या घरेलू विषय तक सीमित कर दिया जाता है और इसे यौनिक विकास या प्रजनन के साथ जोड़कर बहुत कम ही लड़कियों को बताया जाता है जिसके कारण वे भी इस विषय पर खुलकर बात नहीं करती हैं। ऐसे में पीरियड्स से सम्बंधित अनेक समस्याओं को प्रथाओं के नाम पर झेल जाती हैं।
स्वाभाविक सी बात है जब भुक्तभोगी खुद किसी समस्या पर नहीं बोलता या उसके हल के कारण को नहीं खोजता तो अक्सर अन्य लोग भी उस पर मौन ही रहते हैं।
चुनावी वादों में भी माहवारी संबंधित घोषणाएं नदारद
अक्सर चुनावों के समय प्रचार के साधन के रूप में विभिन्न राजनीतिक पार्टियों द्वारा प्रयुक्त होने वाले घोषणापत्रों में कहीं भी माहवारी को लेकर नीति बनाने के विषय में कोई उल्लेख नहीं रहता है।
इसका एक बड़ा कारण महिलाओं द्वारा इस विषय पर अपनी समस्याओं को विभिन्न मंचो पर ना उठाया जाना रहा है।
पढ़ी-लिखी महिलाओं से लेकर संगठित और असंगठित क्षेत्रों में काम करने वाली तमाम महिलाएं माहवारी से सम्बंधित अनेक परेशानियों को उठाती हैं लेकिन अक्सर वे इन पर खुलकर बात करने से कतराती हैं।
माहवारी के मुद्दों को क्यों खुलकर उठाने की ज़रूरत है?
मुझे लगता है कि अगर ये महिलाएं इस माहवारी की समस्या को उठाना शुरू करें तो ज़रूर स्थानीय नेताओं का ध्यान इस ओर जाएगा।
जो महिलाएं शादी से पहले अपने माता-पिता के घर पर पीरियड से सम्बंधित बात को नहीं उठा पाती हैं, वे बहुत सारी समस्याएं इस सम्बंध में झेलती हैं। इन महिलाओं को चाहिए कि जो समस्याएं वे झेली हैं, वो अन्य युवा लड़कियों को ना झेलनी पड़े। इसके लिए वे आगे आएं।
पुरुषों की क्या भूमिका हो?
इस कार्य को शुरू करने का एक आसान तरीका यह है कि पत्नी ने पीरियड्स के संबंधित जो समस्याएं शादी से पहले झेली हैं, उन बातों को पति को बताए।
अक्सर पति -पत्नी आपस मे हर विषय पर बात करते हैं। अगर महिला खुद इस विषय पर नहीं बोल पाती (जबकि उसे बोलना चाहिए) तो उसे अपने पति से इस समस्या के बारे में बात करनी चाहिए और पुरुषों को भी चाहिए कि वे माहवारी को महिलाओं का विषय समझकर शर्म ना करें और उन समस्याओं को विभिन्न स्तरों से उठाएं।
इससे धीरे-धीरे निचले स्तर से लड़कियों में जागरूकता आएगी और हो सकता है वे भी आगे आकर पीरियड्स से सम्बंधित समस्याओं को उठाएं।
पाठ्यक्रमों में कैसे माहवारी पर विशेष ध्यान दिया जाए?
इसके अतिरिक्त हमें महिलाओं को पीरियड्स आने की अवस्था से पहले ही इस सम्बंध में सचेत करने की ज़रूरत को समझना चाहिए। हमको ये प्रयास करने चाहिए कि जब वे माहवारी की अवस्था तक आएं तब तक उन्हें माहवारी के बारे में पूर्ण जानकारी हो ताकि वे माहवारी के समय स्वयं अपना उचित देखभाल कर सकें।
इसके लिए हमें पाठ्यक्रमों में माहवारी के विषय को बाकायदा शामिल करना चाहिए। शिक्षकों को भी माहवारी के विषय में छात्राओं को जागरूक करने के लिए बेहतर ट्रेनिंग दी जानी चाहिए, क्योंकि अक्सर देखा जाता है कि पाठ्यक्रम में माहवारी के बारे में जो भी थोड़ी-बहुत जानकारी होती है, उसे पढ़ाने से कतराते हैं।
मेरे क्लास में शिक्षक ने माहवारी के प्रसंग को पढ़ाया ही नहीं!
साल 2006-07 की बात है जब हमारी कक्षा लड़के और लड़कियों के साथ संयुक्त रूप से हुआ करती थी। हमारी कक्षा में जीव विज्ञान पढ़ाने वाले गुरुजी के सामने जिस दिन माहवारी वाला चैप्टर आया, वो हमलोगों को यह कहते हुए दूसरा चैप्टर पढ़ाने लगे कि ये (माहवारी) चैप्टर ज़रूरी नहीं है।
वास्तव में उस समय हम लोग माहवारी के विषय में जानते भी नहीं थे। इस वजह से हमलोगों ने यह मान लिया कि ये चैप्टर ज़रूरी नहीं है। मुझे लगता है कि यह समस्या अब भी बहुत सारे स्कूलों में है।
क्या कहता है Youth Ki Awaaz और WSSCC का सर्वे?
अभी हाल ही में Youth Ki Awaaj और WSSCC द्वारा किए गए सर्वे में भी माहवारी से संबंधित कई प्रकार के अनुभव आए। इस सर्वे में 28.3 प्रतिशत लोगों ने कहा कि उनके अध्यापक ने माहवारी सम्बंधित विषय को छोड़ दिया। वही, 49 प्रतिशत लोगों ने बताया कि माहवारी जैसे विषय पर स्कूलों में और बेहतर ढंग से बताया जाना चाहिए।
मुझे लगता है कि अगर महिलाओं को उनकी पढ़ाई के दौरान ही माहवारी पर विस्तृत रूप से बताया जाए, नुक्कड़ नाटकों के माध्यम से जागरूकता फैलाई जाए तो निश्चित ही वे जागरूक होकर इन समस्याओं को विभिन्न मंचों के ज़रिये उठाएंगी। इससे नीति नियंताओं के ऊपर एक दबाब बनेगा और वे माहवारी के सम्बंध में बेहतर नीति बनाने का प्रयास करेंगे।
नोट: विवेक YKA के तहत संचालिच इंटर्नशिप प्रोग्राम #PeriodParGyaan के मई-जुलाई सत्र के इंटर्न हैं।