होली के त्योहार का कौन नहीं इंतज़ार करता? रंग- रंगोली, स्वादिष्ट खाना और गाँव के लोगों के साथ यह त्योहार मनाना- इन चीजों का मज़ा ही कुछ और है। आज कल होली आने से पहले गाँव के बच्चे पिचकारी की मांग करते है, लेकिन बाज़ार में जो रंग मिलते है, उनमें कई प्रकार के केमिकल होते है, जो लोगों के सेहत, त्वचा, आँखों के लिए हानिकारक साबित हो सकते है, और कभी कभी खेल खेल में रंग पेट में भी जा सकते है। इसलिए हम यह रंग इस्तेमाल नहीं करते।
बिना रंग की होली की कल्पना भी नहीं की जा सकती, इसलिए छत्तीसगढ़ के ग्रामीण क्षेत्र के आदिवासी अपने हाथों से होली के लिए रंग बनाते हैं। हमें प्राकृतिक रंगों को अपनाना चाहिए। छत्तीसगढ़ के आदिवासियों का यह रंग बनाने का तरीक़ा मैं आपके साथ बाँटना चाहती हूँ, ताकि आप भी घर पे यह रंग बना सके और होली के समय अपने आप को सुरक्षित रख सकें। इन साधारण विधि के साथ आप पलाश और हरसिंगार के फूलों से आकर्षक व चटकीले रंग तैयार कर सकते हैं और होली के रंग-बिरंगी त्यौहार का जमकर मज़ा ले सकते है।
पलाश (Butea monosperma/ Sacred Tree) भारतवर्ष के ज़्यादातर पश्चिमी और मध्य भागों के जंगलों में पाया जाता है। पलाश का वृक्ष मैदानों और जंगलों में ही नहीं, बल्कि 4000 फुट ऊंची पहाड़ियों की चोटियों-तट पर किसी ना किसी रूप में अवश्य मिलता है।यह तीन रूपों में पाया जाता है- वृक्ष रूप में, क्षुप रूप में और लता रूप में। बगीचों में यह वृक्ष रूप में मिलता है, जंगलों और पहाड़ों में अधिकतर क्षुप रूप में पाया जाता है और लता रूप में कम मिलता है।
पलाश के पत्तों का उपयोग दोना पतल बनाने के लिए भी किया जाता हैं और इसके फूल और बीज औषधि के रूप में भी काम आते है।, छाल से एक प्रकार का रेसा निकलता है। पलाश, जिसे परसा/ टेसू/ किंशूक/ केसु के नामों से भी जाना जाता है, हिंदु धर्म में एक पवित्र पेड़ माना जाता है। इस पेड़ के फूल बड़े आकर्षक होते है और इस पेड़ को दूर से देखें तो इसके फूल ज्वाला की तरह नज़र आते है। इसी कारण इसे “जंगल की आग” भी कहा जाता है।
पलाश का फूल उत्तर प्रदेश और झारखंड का राज्य पुष्प है, और इसे भारतीय डाक तार विभाग द्वारा डाक टिकट पर प्रकाशित कर सम्मानित किया जा चुका है। ऐसे सुंदर फूलों से हम आदिवासी होली के समय रंग बनाते है।
फूलों से रंग बनाने की विधि
प्राचीन काल से ही फूलों से होली के रंग तैयार किए जा रहे हैं। यह रंग बनाने के लिए पहले पलाश के फूलों को पानी में डालकर फूलों को गर्म किया जाता है। इन्हें गर्म तब तक करते हैं जब तक पलाश का रंग ना निकल जाए। फूलों के रंग निकालने के बाद तुरंत उसका उपयोग नहीं किया जाता, उसके ठंडे होने का इंतजार किया जाता है। फिर रंग के लिए उसका उपयोग करते हैं।
इसी प्रकार हरसिंगार के फूलों को पानी में भिगोकर नारंगी रंग बनाया जा सकता है। टेसू के पानी में एक चुटकी चंदन पाउडर को मिलकर नारंगी रंग भी बना सकते है।
पलाश के फायदे
पलाश औषधि के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है, जैसे सूजन कम करने के लिए, आंतों के कीड़ों को मारने के लिए और पेट सफाई के लिए। पलाश कीटाणु नाशक और दर्द नाशक गुणों से भरपूर है।आयुर्वेद सिद्ध और यूनानी जैसी पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली में पलाश के विभिन्न हिस्सों का इस्तेमाल किया जाता है।
होली ख़ुशियों का त्योहार है, लेकिन इससे सिर्फ़ हमारी नहीं, बल्कि प्रकृति और पशुओं की भी हानी होती है। केमिकल वाले रंग का पानी जब मिट्टी और पानी के स्रोत में घुल-मिलता है, तो वह भी दूषित हो जाते है। अगर पशु-पक्षी इस रंग के सम्पर्क में आए, तो उनपर भी इसके बुरे परिणाम हो सकते है। अगर आपको अपने आप की और प्रकृति की चिंता है, तो पलाश और अन्य फूलों से रंग बनाना की सोचे।
यह लेख Adivasi Awaaz प्रोजैक्ट के अंतर्गत लिखा गया है, और इसमें Prayog Samaj Sevi Sanstha और Misereor का सहयोग है।
लेखिका के बारे में- वर्षा पुलस्त छत्तीसगढ़ में रहती है। पेड़-पौधों की जानकारी रखने के साथ-साथ वह उनके बारे में सीखना भी पसंद करती हैं। उन्हें पढ़ाई करने में मज़ा आता है।