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“जब पहली बार मैं अपने लड़के दोस्त के साथ सोया”

आश्वस्त होने के लिए कि मैं सही ट्रेन पर चढ़ रहा था या नहीं, मैंने सबसे पहले टिकट में दी गई जानकारियों को देखा फिर जब ट्रेन पर चढ़ा तो अपने आप ही मुस्कुरा पड़ा। मैं अपने कुछ करीबी दोस्तों और एक खूबसूरत वीकेंड की यादों के साथ वापस जा रहा था।

अब मैं जब अपने अतीत को याद करता हूं, जब मैं बहुत खुश और आश्वस्त नहीं रहता था, तब भी मेरी यह मुस्कान गायब नहीं होती है।  एक समय ऐसा था जब मैं कुछ हद तक यह मानता था कि इस दुनिया में मेरी मौजूदगी ही एक गलती है।

दुनिया के बारे में बहुत कुछ ऐसा था जो गलत लगता था। इसकी सही वजह मैं समझ नहीं पा रहा था लेकिन इस वजह ने  मेरे दिमाग में घर कर लिया था। धीरे-धीरे ये मुझे पागल बना रही थी लेकिन मेरे पास यही एकमात्र दुनिया थी। इसलिए इसमें फिट होने की मैंने पूरी कोशिश की। 

मैं यहां जो ज़िन्दगी जी रहा था उसमें समाज जो बातें हमें सिखाता है उनका पालन कर रहा था। जैसे स्कूल जाना, ट्यूशन करना, भगवान की पूजा करना और भी बहुत कुछ। 

मैंने अपने लिए दुनिया खोजी 

इस बीच मेरी खुद को तलाशने की यात्रा थोड़ी लंबी और निराशाजनक ज़रूर रही लेकिन आखिरकार फायदेमंद रही। अपनी किशोरावस्था में मैंने एक ऐसी दुनिया ढूंढ निकाली जहां कोई सीमाएं नहीं थी, कोई भेदभाव नहीं था और इसकी यात्रा करने में ज़्यादा खर्च भी नहीं था, वो दुनिया थी इंटरनेट।

मैंने अपने सभी दोस्तों से सुना था कि वे पॉर्न देखते हैं। वे बताते थे कि वो इतना कामुक होता है कि उसके बारे में सोचकर ही वे हस्तमैथुन कर लेते थे। मैं भी इसे आजमाना चाहता था। हालांकि यह मुझे उत्तेजित नहीं कर पाता था फिर भी मैं कोशिश के लिए तैयार था। मैंने अपने दोस्तों और सहपाठियों की सुझाई कई कामुक फिल्में देखीं भी लेकिन हर बार जब हस्तमैथुन करने की कोशिश की, असफल रहा।

कुछ समय के लिए मुझे ऐसा लगने लगा कि मेरे साथ कुछ गड़बड़ है लेकिन मैं अभी भी इस उम्मीद में था कि अगर मैं यह मान लूं कि मैं एक सामान्य आदमी हूं तो शायद सब कुछ ठीक हो जाएगा। मैं अपनी कामुकता को समझने की कोशिश करने लगा।

पहली बार अपने लड़के दोस्त के साथ सोने का अनुभव

जब मैं 16 साल का था तब मेरी क्लास के एक लड़के के साथ गहरी दोस्ती हुई और अंततः मैं उसके साथ ‘सो’ गया। यह मेरी ज़िन्दगी का पहला रिश्ता था। अगले 5 सालों में जब भी हम एक साथ सोए, मैं कभी भी शीर्ष पर नहीं होना चाहता था।

मैं वास्तव में रिश्ते के निचले आधे हिस्से में संतुष्ट था। ना ही सिर्फ शारीरिक, बल्कि हर तरह से मैं एक अधीन पार्टनर रहना पसंद करता था। 

बाद में मैं ऐसी ही स्थिति की कल्पना भी करने लगा लेकिन एक औरत के साथ जो मेरे ऊपर रहे और लिंग के साथ मुझसे संभोग करे। सिर्फ इतना सोचने भर से मुझे असीम आनंद मिलता था और मेरी ज्ञानेन्द्री जागकर एकदम तन जाती थीं। जागृत हो उठती थीं।

मैं अभी भी हस्तमैथुन की कला नहीं सीख पाया था। उन दिनों मैं बीडीएसएम (BDSM- ऐसी सेक्सुअल प्रक्रिया जिसमें एक पार्टनर गुलाम और दूसरा मालिक होता है) से बिल्कुल अनजान था।

जब पहली बार मेरी दोस्ती एक लड़की से हुई 

जब मैं 18 साल का हुआ, तब मेरी दोस्ती एक लड़की से हुई। मुझे पहली बार यह एहसास हुआ कि एक लड़के और एक लड़की के जीवन में कितना अंतर है। मैं एक लड़की के लिए प्यार और देखभाल की भावनाओं से अनजान था।

अगर मैं अब उसके लिए अपनी भावनाओं को समझने की कोशिश करता हूं, तो ये पाता हूं कि वो प्यार था लेकिन उस समय मैं यह मान नहीं पाया था। मैं सिर्फ इतना जानता था कि जिस दिन वो मेरे साथ रहती थी, मैं बहुत खुश रहता था।

कई मायनों में वह मेरे लिए ही बनी थी क्योंकि मैं कल्पना भी नहीं कर पाता था कि मेरा जीवन कैसा होता, अगर मैं उससे नहीं मिला होता।

जब हम बात किया करते थे, तो कई बार ऐसा होता था जब उसने मुझे कुछ ऐसा कहने या करने पर मजबूर किया जो मैं वास्तव में नहीं करना चाहता था। या फिर मैं ऐसा करने का साहस नहीं रखता था। जैसे कि एक बार मुझे एक लड़की पसंद आई थी लेकिन मुझमें उसे यह बताने की हिम्मत नहीं थी।

उसने मुझे प्रोत्साहित किया कि मैं उस लड़की से बात करूं। उसके ऐसा कहने से मुझमें जैसे साहस आ गया और मैंने उस लड़की से बात की। ऐसे ही फिर एक बार जब मैं काफी निराश हो गया था तो मुझे उससे बाहर निकालने के लिए उसने शर्त रखी कि अगर मैं जल्दी ठीक नहीं हुआ तो वो मेरे साथ सारे रिश्ते तोड़ देगी।

उसके ऐसा करने पर फिर से मुझे एक असीम ऊर्जा का अनुभव हुआ था। उसका ऐसे बात करना मुझे भावनात्मक और कामुक रूप से बहुत उत्तेजित करता था। इतना अधिक कि मैं (उद्देश्यपूर्ण लेकिन गुप्त तरीके से) कोशिश करने लगा कि उसके सामने असहाय या शर्मनाक परिस्थितियों में बना रहूं। उसका मेरे ऊपर हावी होना मुझे उत्तेजित करता था। शायद उसे मेरी भावनाओं के बारे में पता नहीं था। आखिर काफी समय तक मैं भी तो यही मानता था कि मैं उसके लिए एक भाई वाली भावनाएं रखता हूं।

जब हम थोड़े बड़े हुए और वो दूसरे लोगों में दिलचस्पी लेने लगी तो मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था लेकिन मैंने कोई सवाल नहीं किया। मैं अपने इस रिश्ते से मिलने वाले एड्रिनैलिन (जोश दिलाने वाले रस) का आदी हो चुका था।

मुझे अधीन होने का एहसास हुआ 

इस दौरान मुझे पहली बार महसूस हुआ कि मैं अधीन/वश्य स्वभाव का हूं। हालांकि यह सरल-सी घटना थी लेकिन मेरे दिल में इसकी एक बहुत खास जगह है। एक बार मैं अपने भाई, उसके दोस्त और दोस्त की बहन के साथ ‘डम्ब शेरॉज’ (जब संकेतों से, बिना कुछ बोले अपने टीम मेंबर को किसी तस्वीर या स्थिति के बारे में समझाने में मदद करनी होती है) खेल रहा था।

मैं और उसकी बहन एक टीम में थे और भाई और उसका दोस्त दूसरी टीम में। खेल में जो पहली फिल्म मुझे मिली वह थी ‘जोरू का गुलाम’। मैंने गोविंदा की तरह एक्टिंग करने की कोशिश की। जाने-पहचाने इशारों और भावों के ज़रिये कोशिश की कि मेरी पार्टनर को फिल्म का नाम समझ आ जाए। 

ऐसा करते हुए अचानक मेरी अंतरात्मा ने मुझसे कुछ कहा। मैंने मेरी पार्टनर से फर्श से उठने और एक कुर्सी पर बैठने के लिए कहा। वह घबरा गई लेकिन उसने वही किया जो मैंने कहा। फिर मैंने अपनी आंखों को बंद किया, सितारों के बारे में सोचा और कल्पना की कि वह मेरी प्रेमिका है। फिर मैं उसके सामने घुटने टेककर बैठ गया। दूसरों को संभवतः यह जीतने के लिए किया गया एक गंभीर प्रयास लगा होगा। वो अनुमान भी नहीं लगा सकते थे कि उस समय का मेरा वो अनुभव कैसा था!

तेज़ धड़कन और मेरी आंखों से बहते खुशी के आंसू सब यही बोल रहे थे कि मैं ऐसा ही बनाया गया हूं। मैं जो हूं बस यही हूं और यही होना चाहता हूं। ये लाइनें मेरे सर से दिल तक उतर चुकी थीं। मुझे नहीं पता कि मुझे ऐसा महसूस क्यों हुआ? या फिर यह समझने के लिए इस पल तक क्यों रुकना पड़ा?

लेकिन एक बार जब बात समझ में आ गई फिर पीछे मुड़कर कभी नहीं देखा। मैंने अपनी बारी के बाद एक ब्रेक लिया और बालकनी में गया। मेरा दिल बहुत दूर जैसे रात के काले आसमान में कहीं उड़ रहा था। आखिरकार मैंने खुद को पहचान लिया था।

जब मुझे पता चला क्या होता है बी.डी.एस.एम 

एक दिन मैं Literotica.com से रूबरू हुआ, जहां लेखक कई श्रेणियों और शैलियों में कामुक कहानियां पोस्ट करते हैं। बी.डी.एस.एम श्रेणी में मैंने एक लेखिक द्वारा लिखित कहानी पर क्लिक किया जो खुद को रीता (नाम बदल दिया गया है) के नाम से प्रस्तुत कर रही थीं। यह मेरे जीवन का एक महत्वपूर्ण मोड़ था।

रीता की कहानी ने कई नई संभावनाएं खोलीं। कहानी एक ऐसे युगल के बारे में थी जो एक 24/7 के लिए एक अधीन महिला चाहते थे। कहानी इतनी खूबसूरत और सुगम तरीके से लिखी गई थी कि एक नौसिखिया भी पारस्परिक और अपारस्परिक बी.डी.एस.एम के रिश्ते के बीच के अंतर को समझ सकता था।

मैंने उसकी सारी कहानियों को एक एककर पढ़ा। क्या वास्तव में ऐसे लोग होते थे जो आत्मसमर्पण करना चाहते थे? या यह केवल एक उपन्यास तक सीमित रहने वाली कल्पना थी? मैं तो हमेशा सोचता था कि जो लोग अपनी इच्छा के छीने जाने से आनंद अनुभव करते हैं या फिर जो दूसरों के दिए गए शारीरिक चोट पसंद करते हैं, वे सिर्फ एक ही जगह मिल सकते हैं और वो जगह है पागलखाना।

मैंने रीता की कहानियों को फिर से पढ़ा और हर एक कहानी के नीचे प्रशंसा की चंद लाइनें भी लिख दीं। जल्द ही उसने मेरी प्रशंसा के लिए धन्यवाद लिखकर जवाब दिया। यह इस विचित्र (KINKY) दुनिया की ओर खुलने वाला मेरा सबसे पहला दरवाज़ा था।

पहले हमारी बातचीत पूरी तरह से एक लेखक और प्रशंसक जैसी थी लेकिन बाद में हम निजी ईमेल का आदान–प्रदान करने लगे। जिस दिन से उस खेल (dumb charades) के दौरान मुझे अपने वश्य या अधीन प्रकृति का एहसास हुआ था तब से ही मैं किसी से इसकी चर्चा करने में डर रहा था।

दुनिया के दूसरे हिस्से में बैठे एक लेखक के साथ बात करना और अपने सवालों का जवाब ढूंढना सबसे सुरक्षित तरीका लग रहा था। वह अच्छी थी, धैर्ययुक्त और जानकार भी। बाद में मैंने साहस कर उससे अपने मन के सारे सवाल भी पूछ डाले। उसने जवाब नए प्रश्नों के रूप में दिए। उन नए सवालों ने मुझे सोचने के लिए प्रेरित किया और उसके अपने पति के साथ 24/7 बी.डी.एस.एम जीवन शैली की एक झलक भी दी। बी.डी.एस.एम अब एक गहरे, नीले सागर की तरह लग रहा था। मैं वास्तव में उसके जैसा दोस्त पाकर बहुत खुश था।

एक आदमी ने फिर से मुझे मेरी यादों से बाहर खींचा और कहा, “क्या आप अपने बर्थ पर वापस जा सकते हैं? नींद आ रही है।” अब मैं अपने बर्थ पर चढ़कर लेट गया। मैं करवट लेकर लेटा था फिर अचानक ही सिकुड़कर पीठ के बल सो गया। वो मीठा दर्द मुझे मेरी जादुई वीकेंड की प्यारी याद दिला रहा था। मुझे तब वो समय याद आया जब मुझे इस भावना का पता नहीं था और यह सब मेरे लिए बहुत अजीब था।

ऑनलाइन लैंगिक खेल

एक दिन मिस रीता और मैंने सोचा कि एक ऑनलाइन लैंगिक खेल (DOM-SUB जिसमें एक पार्टनर प्रबल होता है और दूसरा विनम्र) मज़ेदार हो सकता है। उसने मुझे खेल शुरू करने से पहले बहुत सारे सवाल भेजे। जैसे- मैं कैसा दिखता हूं? पावर-प्ले से मैं क्या उम्मीद रखता हूं?

मुझे कई शब्द गूगल करने पड़े। जैसे कि ओ.टी.के( Over The Knee- घुटनों पर) और “कोलार्ड” (Collared- पट्टा पहने हुए)। फिर मैंने उसके सवालों का ईमानदारी से जवाब दिया।

चूंकि वह एक लेखिका थी और मैं एक महत्वाकांक्षी लेखक, यह खेल जल्द ही हमें पूरी तरह से एक अलग दुनिया में ले गया जहां कोई सीमा नहीं थी। जहां हमारे सारे सपने सच हो रहे थे। इस खेल में कुछ चीज़ें थीं जो मुझे पसंद थीं और कुछ जो नापसंद थीं लेकिन हर चीज़ ने मुझे कुछ नया सिखाया। मैं हमेशा सोचा करता था। काश यह दुनिया वास्तविक होती।

‘किंकी’ की ऑनलाइन दुनिया में मिले मेरे जैसे लोग

मिस रीता ने मुझे एक किंकी (KINKY) सोसिअल नेटवर्क से अवगत कराया। जब मैं उसमें शामिल हुआ तो वहां पर उप-पुरुषों (जिन्हें अधीन/वश्य होने की इच्छा हो) की संख्या में हो रही बढ़ोत्तरी को देखकर अचंभित था। गिनती से ऊपर की संख्या थी।

मुझे साइट के अंदर एक भारतीय समूह मिला और मैंने यह महसूस किया कि यहां मुझे लेकर कोई धारणा नहीं बनाई जाएगी और ना ही मुझे अजीब समझा जाएगा। यह महसूस करना मेरे लिए किसी खज़ाने से कम नहीं था। यहां मैं अपने दिल में बंद किए गए रहस्यों के एक बड़े बॉक्स को खोल सकता था जिसे मैंने तब तक सिर्फ मिस रीता के साथ ही बांटा था।

जब मैंने समूह के ऑनलाइन बोर्ड पर चल रही चर्चाओं को अच्छी तरह पढ़ा, तो मुझे एहसास हुआ कि मुझे वास्तविक जीवन में बी.डी.एस.एम के बारे में कुछ भी नहीं पता था। मैं एक मूक लेकिन उत्सुक प्रेक्षक था। जब मैंने पहली बार कई भारतीय शहरों में हो रही इन पार्टियों के बारे में पढ़ा, तो मैं काफी उत्सुक हुआ।

हालांकि उन चर्चाओं में यह नहीं बताया गया था कि वास्तव में इन पार्टियों में होता क्या है? मुझे अपने शहर में ऐसी एक भी पार्टी में शामिल होने का मौका नहीं मिल पाया था। इसलिए मैंने डर को हावी हो जाने दिया। मेरी सबसे बड़ी आशंका यह थी कि क्या असली जीवन में इन विचित्रमार्गियों (Kinksters) से मिलना सुरक्षित होगा?

एक दिन मैंने एक आदमी की उस समूह पर एक पोस्ट देखा जो बी.डी.एस.एम दुनिया में एक संरक्षक की तलाश में था। मैंने उसकी खोज के लिए उसे शुभकामनाएं दी। उसने निजी संदेश के माध्यम से मुझे धन्यवाद दिया। उसका नाम अशोक था (नाम बदल दिया गया है)। मुझे पता चला कि उसने कोलकाता में हुई कुछ पार्टियों में हिस्सा लिया था।

जब मैं एक अंजान किंकस्टर से  मिला

एक दिन जब मैं काम पर था तब अशोक ने मुझे एक संदेश भेजा कि वह अगले दिन मेरे शहर के आस-पास ही रहेगा और अगर मैं चाहूं तो हम मिल सकते हैं। मैं बहुत घबरा गया। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि क्या मैं एक ऐसे आदमी को जिसे मैं सिर्फ ‘किंकी’ वेबसाइट से जानता था, वास्तविक ज़िंदगी में मिलना ठीक रहेगा या नहीं।

मैं यह भूल रहा था कि मैं भी तो उसके लिए उसी तरह से एक अंजान किंकस्टर ही था फिर मुझे वास्तविक दुनिया में पहली बार एक नए व्यक्ति से मिलने पर दिए गए सुझावों और निर्देशों का एक लिंक मिला। मैंने उसे पढ़ा और सारे निर्देशों का पालन करने का निर्णय लिया।

मैंने अशोक को फोन किया तो उसने मुझे एक होटल में आने के लिए कहा लेकिन मैंने इनकार कर दिया, क्योंकि निर्देशों के अनुसार एक नए व्यक्ति से हमेशा सार्वजनिक जगह पर मिलना चाहिए। मैंने अपने होटल के पास के एक ‘ओवर ब्रिज’ का सुझाव दिया। हालांकि आज मैं अपने ‘सार्वजनिक स्थान’ के इस सुझाव पर हंसता हूं लेकिन उस समय वास्तव में मैं बहुत घबराया हुआ था।

अशोक एक शांत और जानकार व्यक्ति मालूम हुआ। मीठी ज़ुबान में बोलता था। मैंने उससे कई सवाल पूछे और उसे अपने एक आदमी के साथ बने रिश्ते के बारे में भी बताया। वो बात जो मैंने आज तक किसी को नहीं बताई थी, वह मेरी बातों से विचलित नहीं हुआ।

मुझे वो काफी समझदार इंसान लगा। उसने मेरे खुद के अधीन या वश्य  होने की प्रकृति को स्वीकार करने की हिम्मत की सराहना भी की। उसने कहा कि वह किंकी (Kinky) जीवन शैली में नया था लेकिन वो ऐसे कई लोगों को जानता था जिनको इसमें काफी अनुभवी था।

मैंने उससे पार्टियों के बारे में पूछा तो उसने बताया कि ये पार्टियां ‘नियमित दोस्तों’ के समूह के साथ कॉफी के लिए मिलने से अलग नहीं होती हैं। वास्तव में अशोक से मुलाकात के एक महीने बाद ही मुझे अपनी पहली ऐसी पार्टी में हिस्सा लेने के लिए कोलकाता जाने का मौका मिला।

‘किंकी’ पार्टियों में मैंने सीखा कि पुरुष भी अधीन हो सकते हैं

उन पार्टियों में एक ही टेबल पर अन्य लोगों को देखकर जो ‘किंक’ (Kink) के बारे में आज़ादी और उत्साह से ऐसे बात कर रहे थे मानो वो क्रिकेट की चर्चा कर रहे हों, मुझे बहुत अचम्भा हुआ। किंक (Kinky) जीवन शैली के प्रति उनके दृष्टिकोण और उत्साह को देखकर मैं बहुत खुश था।

इन पार्टियों में मैंने सीखा कि पुरुष भी अधीन हो सकते हैं। महिलाएं प्रभावशाली हो सकती हैं और कुछ लोग दोनों भी हो सकते हैं। ‘किंक’ जैसा होना ना तो कोई बीमारी  है, ना मानसिक अस्थिरता और ना ही एक अनुचित बचपन का नतीजा।

यह केवल कुछ लोगों की अपनी पसंद है और दूसरों के लिए जीवन जीने का एक तरीका है। कुछ के लिए यह उनकी निजी रिश्ते और ज़िंदगी में मसाला लाने का एक नया तरीका है।

मैंने एक-एककर सबकी बातें सुनी और अपनी बात भी रखी। जीवन में पहली बार मुझे ऐसा लगा जैसे मैं अपने लिए कुछ कर रहा था। अधिक जानने की इच्छा मुझे उस समूह में वापस ले आती थी। बाद में मैं कोलकता में होने वाले पार्टियों के आयोजन में सहयोग देने लगा।

मैंने कुछ अद्भुत दोस्त भी बनाएं और आखिरकार उन लोगों से मिला जो मेरे जैसे थे, मुझे पहचानते थे और मुझसे प्यार करते थे। मुझे उनके सामने कोई ढोंग करने की ज़रूरत नहीं थी। ऐसे लोगों को ढूंढना मेरे लिए बहुत मुश्किल रहा। 

मैं एक ‘सामान्य जीवन’ ही जीता हूं

मुझे याद नहीं कब मैं यह सब सोचते हुए ट्रेन में सो गया। कभी-कभी सोचता हूं कि मेरे बीते कल का स्वरूप शायद ही मुझे अब पहचान सके। मैंने यह सीखा है कि प्राकृतिक रूप से वश्य प्रकृति का होने का मतलब यह नहीं है कि मुझे रोज़मर्रा की ज़िंदगी में भी ऐसा ही होना पड़ेगा।

मैं अपने काम में आक्रामक हो सकता हूं। घर पर सकारात्मक हो सकता हूं और अपने दोस्तों के साथ भी ऊंचे स्वर में बात कर सकता हूं।

मैं एक ‘सामान्य जीवन’ ही जीता हूं। मेरे चारों ओर के अधिकांश लोगों को पता भी नहीं है कि मेरा जीवन असल में कितना असाधारण है। मैं अपनी कहानी को एक पसंदीदा उदाहरण के साथ समाप्त करता हूं। ‘बात सिर्फ इतनी नहीं है कि आप क्या हैं, उससे भी ज़्यादा महत्वपूर्ण यह है कि आप उसे कैसे जीते हैं।’


केविन द्वारा लिखित

आइंगबे मानन द्वारा चित्रण

केविन एक 29 वर्षीय व्यक्ति हैं जो अपनी पहचान विनम्र होने से करते हैं। वह 2008 में अपने वश्य/अधीन प्रकृति के बारे में जागरुक हुए थे और उसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। वह ‘द किंकी कलेक्टिव‘ (The Kinky Collective) के सदस्य हैं, जो कि भारतीय समुदाय में ‘किंकी’ को एक मित्रवत शब्द बनाने के लिए अपने दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हैं।

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