भारत के त्रिपुरा राज्य में 19 आदिवासी समुदाय कला और संस्कृति का खजाना है। हर समुदाय के अलग-अलग नृत्य, संगीत और पहनवाना उनकी पहचान का हिस्सा हैं। इन नृत्यों में से एक जाना माना नृत्य है ‘होजागिरी’ नृत्य है जो रियांग समुदाय द्वारा लक्ष्मी पूजा के दिन प्रदर्शित किया जाता है।
लक्ष्मी पूजा को ही त्रिपुरा के आदिवासी होजागिरी कहते हैं। इस होजागिरी महोत्सव के लिए त्रिपुरा के एक जिले को चुना जाता है और त्रिपुरा को अलग-अलग इलाकों से रियांग आदिवासी नृत्य प्रदर्शन के लिए इसमें भाग लेते हैं।
लड़के-लड़कियां मिलकर करते हैं नृत्य का प्रदर्शन
होजागिरी नृत्य के प्रदर्शन के लिए रियांग समुदाय के लड़के और लड़कियां अपना संस्कृतिक पोशाक पहनते हैं जिसमें लड़कियां गले में सिक्कों से बनी हुई एक माला पहनती हैं। यह त्रिपुरा के कई आदिवासी समुदाय में पहनी जाती हैं।
नृत्य प्रदर्शन के समय लड़के ढोल और बांसुरी बजाते हैं और लड़कियां नृत्य करती हैं। यह नृत्य सीखकर और उसका प्रदर्शन करना बिलकुल भी आसान नहीं होता है।
नृत्य में प्रयोग होने वाली वस्तुएं
इसमें समन्वय, धीरज और संतुलन का बड़ा महत्व है। इस नृत्य को सीखने के लिए कई वर्षों का परिश्रम और मेहनत लगता है। इस नृत्य में लड़कियां कलश पर खड़ी होती हैं और सर पर बोतल रख कर नृत्य करती हैं। इसमें थाली, रूमाल, आदि का भी प्रॉप की तरह उपयोग किया जाता है।
धनंजय रियांग नामक गांव के एक बुजुर्ग ने बताया कि त्रिपुरा के आदिवासी प्राचीन काल से ही हिंदू धर्म को मानते आ रहे हैं और हर साल अक्टूबर के महीने में दुर्गा पूजा मनाते हैं। इस पूजा के चार दिन बाद पूर्णिमा के दिन लक्ष्मी पूजा भी करते हैं जिस दिन को रियांग समुदाय के आदिवासी होजागिरी के नाम से मनाते हैं।
वीर चंद्र रियांग जो धनंजय रियांग के ही निवासी है। इस दिन के बारे में बताते हैं, “होजागिरी का अर्थ है सतर्क, इसीलिए इस दिन रियांग आदिवासी पूरी रात जागकर होजागिरी नृत्य करती है।”
देशभर में प्रसिद्ध हो रहा है होजागिरी नृत्य
सिर्फ रियांग समुदाय ही नहीं, बल्कि त्रिपुरा के और भी आदिवासी समुदाय इस दिन को मनाते हैं। इस दिन की एक प्रथा है, जहां लोग एक दूसरे के घर से समान चुराते हैं, जैसे खेत से सब्जी और घर के पशु-पक्षी आदि। इस दिन चोरी करने से भी कोई कुछ नहीं बोलता, क्योंकि यह रिवाज़ सदियों से चला आ रहा है।
होजागिरी नृत्य अब पूरे भारत में प्रसिद्ध है। यह देखने में बहुत ही सुंदर और असाधारण है। इस नृत्य को अब देश भर में बड़े-बड़े सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भी देखा जा सकता है। इस नृत्य के कई विडीओज़ आपको इंटरनेट पर मिलेंगे लेकिन अगर आप कभी त्रिपुरा आएं, तो इस नृत्य को आप लाइव ज़रूर देखें, आपको अपनी आंखों पर विश्वास नहीं होगा।
लेखक: समीर देब्रमा, अनुवाद: लूना देब्रमा, कोकबोरोक से
लेखक के बारे में: समीर देब्रमा त्रिपुरा के खोवाई जिले में रहते हैं। वह स्तानक की पढ़ाई पूरी कर चुके है और हाल फिलहाल में सरकारी नौकरियों की तैयारी कर रहे हैं। वह एक पुलिस ऑफिसर बनना चाहते हैं। खाली समय में, वह हिंदी क्लासिकल गाने सुनना और कला का अभ्यास करना पसंद करते हैं।