पड़ोसी देश नेपाल में अचानक से भारत विरोध की आंच तेज़ी से फैल रही है। लिंपियाधुरा, लिपुलेख और कालापानी को लेकर इन “रोटी-बेटी” के रिश्ते वाले देशों के बीच विवाद और भी गहराता जा रहा है। नेपाल का नया नक्शा जारी करने के ऐलान के बाद नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने भारत पर ‘सिंहमेव जयते’ का तंज कसा है।
यही नहीं नेपाल इन दिनों भारतीय इलाकों में अपनी हथियार बंद मौजूदगी भी बढ़ा रहा है। आखिर ऐसे क्या कारण हैं जिससे नेपाल में भारत के खिलाफ गुस्सा बढ़ रहा है?
क्या अंग्रेजों का गुस्सा भारत पर निकाल रहा है नेपाल?
भारत और नेपाल के वर्तमान विवाद की शुरुआत 1816 में हुई थी। तब ब्रिटिश हुकुमत के हाथों नेपाल के राजा कई इलाके हार गए थे। इसके बाद सुगौली की संधि हुई जिसमें उन्हें सिक्किम, नैनीताल, दार्जिलिंग, लिपुलेख, कालापानी को भारत को देना पड़ा था। हालांकि अंग्रेजों ने बाद में उन्हें कुछ हिस्सा लौटा दिया।
यही नहीं तराई का इलाका भी अंग्रेजों ने नेपाल से छीन लिया था लेकिन भारत के वर्ष 1857 में स्वतंत्रता संग्राम में नेपाल के राजा ने अंग्रेजों का साथ दिया, इसके लिए अंग्रेजों में उन्हें इसका इनाम दिया और तराई का पूरा इलाका नेपाल को दे दिया।
तराई के इलाके में भारतीय मूल के लोग रहते थे लेकिन अंग्रेजों ने जनसंख्या के विपरीत पूरा इलाका नेपाल को दे दिया। नेपाल मामलों पर नज़र रखने वाले एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि वर्ष 1816 के एक जंग में हार की कसक नेपाल के गोरखा समुदाय में आज भी बना हुआ है। इसी का फायदा वहां के राजनीतिक दल उठा रहे हैं। उन्होंने बताया कि दोनों देशों के बीच जारी इस विवाद में एक दिक्कत यह भी है कि नेपाल कह रहा है कि सुगौली की संधि के दस्तावेज गायब हो गए हैं।
भारतीय मूल के मधेसी लोगों के खिलाफ अन्याय से नाराज था भारत
वर्ष 2015 में नेपाल के संविधान में बदलाव करने पर भारत और नेपाल के बीच रिश्ते और ज्यादा तल्ख हो गए। भारत की तरफ से अघोषित नाकाबंदी की गई थी और इस वजह से नेपाल में कई ज़रूरी सामानों की भारी किल्लत हो गई। इसके बाद से दोनों देशों के बीच संबंधों में पुराना भरोसा नहीं लौट पाया है।
भारत नेपाल के नए संविधान से संतुष्ट नहीं था। ऐसे आरोप लगे कि नेपाल ने मधेसियों के साथ नए संविधान में भेदभाव किया है। नेपाल में मधेसी भारतीय मूल के लोग हैं और इनकी जड़ें बिहार और यूपी से जुड़ी हुई हैं।
मधेसियों और भारत के लोगों में ‘रोटी-बेटी’ का रिश्ता है। भारत के नाकेबंदी के बाद भी नेपाल ने अपने संविधान में कोई बदलाव नहीं किया और नाकाबंदी बिना किसी सफलता के खत्म करनी पड़ी। भारतीय अधिकारी ने बताया कि नेपाल में मधेसियों के साथ भेदभाव के आरोप में काफी हद तक सच्चाई है।
नेपाल में सरकारी नौकरियों में पहाड़ी समुदाय का कब्जा है। मधेसियों को पहाड़ी लोग घृणा की दृष्टि से देखते हैं। नेपाल में मधेसियों को ‘धोती’ कहकर चिढ़ाया जाता है। पहाड़ी ये समझते हैं कि मधेसी लोग नेपाल के प्रति नहीं बल्कि भारत के प्रति अपनी निष्ठा रखते हैं।
क्या है ‘सुगौली संधी’ जिसे सीमा विवाद में भारत और नेपाल दोनों आधार बनाते हैं
ईस्ट इंडिया कंपनी और नेपाल के राजा के बीच हुई एक संधि है, जिसे 1814-16 के दौरान ब्रिटेन और नेपाल के बीच हुए युद्ध के बाद हरकत में लाया गया था। इस पर 02 दिसम्बर 1815 को हस्ताक्षर किये गए। 4 मार्च 1816 का इस पर मुहर लग गई। नेपाल की ओर से इस पर राजगुरु गजराज मिश्र और कंपनी की ओर से लेफ्टिनेंट कर्नल पेरिस ब्रेडशॉ ने हस्ताक्षर किया।
संधि के अनुसार नेपाल के कई हिस्सों को ब्रिटिश भारत में शामिल करने, काठमांडू में एक ब्रिटिश प्रतिनिधि की नियुक्ति करने और ब्रिटेन की सैन्य सेवा में गोरखाओं को भर्ती करने की अनुमति दी गई। संधि में यह साफ था कि नेपाल अब अपनी किसी भी सेवा में किसी अमेरिकी या यूरोपीय कर्मचारी की नियुक्त नहीं कर सकता है।
संधि में नेपाल ने अपने नियंत्रण वाले भू-भाग का लगभग एक तिहाई हिस्सा गंवा दिया। जिसमें सिक्किम, कुमाऊं और गढ़वाल राजशाही और तराई के बहुत से क्षेत्र शामिल थे। बाद में तराई भूमि का कुछ हिस्सा 1816 में नेपाल को लौटा दिया गया। इसके बाद 1860 में तराई भूमि का एक और बड़ा हिस्सा नेपाल को 1857 के भारतीय विद्रोह को दबाने में ब्रिटेन की मदद करने के बदले लौटा दिया गया।
दिसम्बर 1923 में सुगौली संधि को शांति और मैत्री की संधि में बदल दिया गया। जब भारत आजाद हुआ तो 1950 में भारत और नेपाल के राणा शाही परिवार ने नई संधि पर हस्ताक्षर किया।
क्या थी संधि की शर्तें
ईस्ट इंडिया कंपनी और नेपाल के राजा के बीच हमेशा शांति और मित्रता रहेगी। इसके अलावा नेपाल के राजा उन सारी भूमि के दावों को छोड़ देंगे जो युद्ध से पहले दोनो राष्ट्रों के मध्य विवाद का विषय थे। उन भूमियों की संप्रभुता पर कंपनी के अधिकार को स्वीकार करेंगे।
अगर इस संधि के अनुसार देखें तो साफ लगता है कि नेपाल अब जिन इलाकों को विवाद का विषय बना रहा है, वो कभी उसके थे ही नहीं। वो पहले भारत में ही थे जिसको नेपाल के राजा ने जब हड़पा तो विवाद पैदा हो गया। उसी के चलते युद्ध हुआ और इसमें नेपाल के राजा को हार का मुंह देखना पड़ा।
1805 में नेपाल ने भारतीय रियासतों से कई इलाकों को हड़पकर अपना विस्तार किया था, जिससे नेपाल की पश्चिमी सीमा कांगड़ा के निकट सतलुज नदी तक पहुंच गई थी। सुगौली संधि से भारत को अपने ये इलाके वापस मिल गए।
इस संधि के चलते मिथिला क्षेत्र का एक हिस्सा भारत से अलग होकर नेपाल के पास चला गया जिसे नेपाल में पूर्वी तराई या मिथिला कहा जाता है। इस संधि के तहत ही जो इलाके अब भारत में हैं, वो उसके पास आ गए जिस पर नेपाल अपना दावा जता रहा है।
संधि के मुताबिक ये प्रदेश थे जिन्हें नेपाल को भारत को सौंपने थे
- काली और राप्ती नदियों के बीच का सम्पूर्ण तराई क्षेत्र (ये इलाका अब विवाद का विषय बना हुआ है),
- बुटवाल को छोडकर राप्ती और गंडकी के बीच का सम्पूर्ण तराई क्षेत्र
- गंडकी और कोशी के बीच का सम्पूर्ण तराई क्षेत्र जिस पर ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा अधिकार स्थापित किया गया था।
- मेची और तीस्ता नदियों के बीच का तराई क्षेत्र
- मेची नदी के पूर्व के भीतर प्रदेशों का पहाड़ी क्षेत्र
- पूर्वोक्त क्षेत्र को भी गोरखा सैनिकों द्वारा 40 दिनों के भीतर खाली किया जाना था।
नेपाल के उन भरदारों और प्रमुखों, जिनके हित के अनुसार पूर्वगामी अनुच्छेद उक्त भूमि हस्तांतरण द्वारा प्रभावित होते हैं, की क्षतिपूर्ति के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी दो लाख रुपये की कुल राशि पेंशन प्रतिवर्ष के रूप में देने को तैयार है जिसका निर्णय नेपाल के राजा द्वारा लिया जा सकता है।
नेपाल के राजा, उनके वारिस और उत्तराधिकारी काली नदी के पश्चिम में स्थित सभी देशों पर अपने दावों का परित्याग करेंगे और उन देशों या उनके निवासियों से संबंधित किसी मामले में स्वयं को सम्मिलित नहीं करेंगे।
नेपाल के राजा, सिक्किम के राजा को उनके द्वारा शासित प्रदेशों के कब्जे के संबंध में कभी परेशान करने या सताने की किसी भी गतिविधि में शामिल नहीं होंगे। कभी नेपाल और सिक्किम के बीच कोई विवाद होता है तो उसकी मध्यस्था ईस्ट इंडिया कंपनी करेगी।
चीन के साथ दोस्ती बड़ा रहा है नेपाल
जानकारी के मुताबिक नेपाल में इन दिनों राजनीति में वामपंथियों का दबदबा है। पीएम केपी शर्मा ओली भी वामपंथी हैं और नेपाल में संविधान को अपनाए जाने के बाद वर्ष 2015 में पहले प्रधानमंत्री बने थे, उन्हें नेपाल के वामपंथी दलों का समर्थन हासिल था।
पीएम ओली अपनी भारत विरोधी भावनाओं के लिए काफी वक्त से जाने जाते हैं। जब वर्ष 2015 में भारत के नाकेबंदी के बाद भी उन्होंने नेपाली संविधान में बदलाव नहीं किया और भारत के खिलाफ जवाबी कार्रवाई के लिए चीन की गोद में जाकर बैठ गए थे। नेपाल की सरकार ने चीन के साथ एक समझौता कर लिया था और इसके तहत चीन ने नेपाल को अपने पोर्ट को इस्तेमाल करने की इजाज़त भी दे दी थी।
जानकारी के लिए बता दें कि नेपाल एक जमीन से घिरा हुआ देश है और उन्हें ऐसा लगा कि वो चीन की गोद में बैठकर भारत की नाकेबंदी का तोड़ निकाला लेगा। चीन ने थिंयान्जिन, शेंज़ेन, लिआनीयुगैंग और श्यांजियांग पोर्ट के इस्तेमाल की अनुमति दी है। अब नेपाल चीन के महत्वाकांक्षी बीआरआई प्रोग्राम में भी शामिल हो गया।
चीन नेपाल तक अपनी रेलवे लाइन बिछा रहा है। इसके साथ ही बड़े पैमाने पर नेपाल में निवेश कर रहा है। इस ताजा विवाद के पीछे भी चीन पर कई आरोप लग रहे हैं। वहीं सेना प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नरवणे ने संकेत दिए थे कि नेपाल के लिपुलेख का मुद्दा उठाने के पीछे कोई विदेशी ताकत भी हो सकती है।
नए नक्शे के बाद भारत ने दी है हिदायत
इस बीच नेपाल ने नया नक्शा भी जारी कर दिया है। वहीं, इस विवाद में नेपाल से ताल्लुक रखने वाली बॉलीवुड एक्ट्रेस मनीषा कोइराला की भी एंट्री हो गई है मनीषा ने नेपाल द्वारा कालापानी और लिपुलेख को अपने नक्शे में शामिल करने का समर्थन किया है।
भारत ने भी इसका जवाब दिया और कहा है कि नेपाल ने जो नया नक्शा जारी किया है, वो अस्वीकारक है और यह कदम ऐतिहासिक साक्ष्यों पर नहीं टिका है।