आज पूरी दुनिया में जहां कोरोना नामक भयावह संकट छाया हुआ है, पूरी दुनिया आज इससे लड़ रही है, वहीं मैं भी इससे लड़ रही हूं। हमारे जेनरेशन का इस प्रकार की महामारी को देखना बड़ी घटना है।
इससे पहले हमने सिर्फ इसके बारे में पढ़ा था और दादी नानी से सुना था कि इस प्रकार की महामारी से हज़ारों लोग मर जाते थे। आज यह सब देख भी रही हूं। हमें इससे आगे के लिए सीख भी लेनी चाहिए।
पहले भी लोगों के बीच काफी दूरियां थीं और अब कोरोना ने इस दूरी को और बढ़ा दिया है। लॉकडाउन लगातार बढ़ रहा है और बढ़ना भी चाहिए जिस तरह से स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही है। कोरोना से संक्रमित लोगो की संख्या लगातार बढ़ रही है जिसे देखते हुए लॉकडाउन हटाने के बारे मे सरकार को सोचना भी नहीं चाहिए।
मैं लॉकडाउन के बिलकुल समर्थन में हूं, क्योकि इस वायरस के संक्रमण से बचने का यह एक तरीका है। यह सब जानते हुए भी मन में बहुत सी बेचैनी है कि कब सब कुछ पहले जैसा होगा, कब हम पहले जैसे बेखौफ कहीं पर भी घूम सकेंगे और सबसे ज़्यादा परेशान करने वाली बात है कि हम घर कब पहुंचेंगे।
इस बात को लेकर भी चिंता है कि हम घर पहुंच भी पाएंगे या नहीं। अब लॉकडाउन का चौथा चरण शुरू होने वाला है, ट्रेन और बस की सुविधाएं भी शुरू हो चुकी हैं फिर भी एक और डर है मन में कि कहीं ट्रैवलिंग के दौरान किसी प्रकार का संक्रमण हम घर में ना लेकर चले जाएं।
यही सबसे बड़ी वजह है कि हम हॉस्टल वाले घर जाने से कतरा रहे हैं। वैसे हमारे विश्वविद्यालय प्रशासन ने हमे दिलासा दिया है कि वे हमे सुरक्षित घर पहुंचाने की व्यवस्था करेंगे।
मैं छत्तीसगढ़ की रहने वाली हूं, मेरा पोस्ट ग्रैजुएशन अभी महाराष्ट्र स्थित वर्धा के महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय में चल रहा है। फाइनल ईयर होने की वजह से रिसर्च प्रोजेक्ट का कुछ ज़्यादा ही बर्डन था जिस कारण लॉकडाउन शुरू होने से पहले घर नहीं पहुंच सकी।
मेरी और दो सहेलियां जो मेरे साथ वर्धा आई हुई थीं, वे भी लॉकडाउन के पहले ही घर जा चुकी हैं। दोस्तों का जाना तो अखरा मगर उतना नहीं जितना फोन का जाना!
मेरा फोन पानी में गिरकर खराब हो चुका है और सबसे ज़्यादा दिक्कत की बात है कि अब वह ठीक नहीं हो पा रहा है। आज लगभग 25 दिन हो गए है लॉकडाउन की वजह से फोन बन नहीं पा रहा है। शॉप वाले भैया ने डिस्प्ले का ऑर्डर दे रखा है मगर लॉकडाउन के कारण पार्सल नहीं आ पा रहा है।
अब बस इंतज़ार है कि कब तक पार्सल आता है। लॉकडाउन में जब आपको एक छत के नीचे ही रहना हो और आपका फोन भी ना हो तो कैसा महसूस होता है? इस लॉकडाउन में फोन का खराब होना मेरे लिए भयावह घटना थी। वो तो अच्छा है कि हॉस्टल में मेरी एक दोस्त के पास एक्सट्रा फोन था जिससे अभी घर में बात के लिए काम चल रहा है जैसे- तैसे।
वर्धा के ग्रीन ज़ोन में होने का भी हमे कोई फायदा नहीं मिल रहा है। अब यहां भी कोरोना के 2 पॉजिटिव केस आ चुके हैं जिसकी वजह से अब वर्धा ग्रीन ज़ोन में नहीं रहा। हमें हॉस्टल से बाहर जाने की इजाज़त नहीं है, लॉकडाउन के इतने दिन बीत चुके हैं हमने सारा दिन हॉस्टल के मेस से रूम तक का सफर तय करके ही दिन निकाल दिया है।
हॉस्टल में हमें किसी चीज़ की कोई समस्या नहीं है। विश्वविद्यालय के वीसी हफ्ते दो हफ्ते में आकर हमारी खैर खबर लेते रहते हैं। इस मुश्किल घड़ी में अभी वो ही हमारे माई-बाप हैं, किसी प्रकार की कोई दिक्कत बच्चो को होने नहीं दे रहे हैं।
सबसे अच्छी बात यह है कि इस बार वर्धा में गर्मी अपना भयावह रूप नहीं दिखा रही है। वजह है कूलर, इस साल कूलर के होने से वर्धा की गर्मी इतनी भयावह नहीं लग रही जितनी असल में यह होती है फिर बीच-बीच में मौसम ठंडा रखने के लिए भगवान बारिश भी तो कारवा रहे हैं।
लॉकडाउन के दौरान सबसे अच्छी चीज़ जो मैंने सीखी है वो है एसपीएसएस चलाना। यह रिसर्च वर्क में डेटा को एनालाइज़ करने वाला सॉफ्टवेयर है। इसे सीखने में भी हमें बहुत मशक्कत करनी पड़ी, क्योंकि ऑनलाइन हमारे सर ने जैसे-तैसे इस सॉफ्टवेयर को इनस्टॉल तो करवा दिया मगर उसके बाद उसको रन करवाना और ऑनलाइन उसे समझना मुश्किल था।
फिर भी हमने शिद्दत से इस काम को किया। जितना हमने इसे सीखने मे एफर्ट लगाया है, उससे ज़्यादा सर ने। क्लास खत्म होने के बाद भी सर ने हमारी लगातार क्लास ली है और हमारा रिसर्च प्रोजेक्ट कंप्लीट करवाया है।
इस लॉकडाउन के टाइम को देखा जाए तो यह खुद को बेहतर बनाने के लिए किसी गोल्डन पीरियड से कम नहीं है। इस समय को अगर अच्छे से इस्तेमाल किया जाए तो अपनी ज़िंदगी को सकारात्मकता में बदल देने का यह अच्छा मौका है।
अपने आप को बेहतरीन बनाने का इससे अच्छा मौका नहीं मिल सकता है। बस मैं भी यही कोशिश कर रही हूं, खुद के साथ वक्त बिता रही हूं, एक छत के नीचे बैठकर ही आस-पास की चीज़ों को देखने-समझने का प्रयास कर रही हूं, जो काम अधूरे रह गए थे उन्हें पूरा कर रही हूं।