पैड वुमन के नाम से मशहूर राजस्थान की भारती सिंह चौहान माहवारी को लेकर समाज में फैली भ्रांतियों और वर्जनाओं को दूर कर रही हैं। साथ ही बालिकाओं को शिक्षित और जागरुक भी कर रही हैं।
अभी अपने नवाचार स्पॉटलेस डेम (बेदाग नारी) के माध्य्यम से जरूरतमंद महिलाओं को रोज़गार भी उपलब्ध करवा रही हैं। ‘पैडवुमन ऑफ राजस्थान’ भारती सिंह चौहान सोशल एक्टिविस्ट, सोशल एन्टरप्रेन्योर और पर्यावरणविद के साथ-साथ एक मोटिवेशनल स्पीकर भी हैं।
समाजसेवा के क्षेत्र में भारती सिंह चौहान का 15 साल से ज़्यादा का अनुभव रहा है। वो प्रवीणलता संस्थान की फाउंडर चेयरपर्सन हैं। इनका उद्देश्य महिला शिक्षा, सुरक्षा, स्वास्थ्य और सतत आजीविक के साथ उनका सर्वागीण विकास कर उन्हें रोज़गार के साथ जोड़ते हुए आत्मनिर्भर और जागरूक बनाना है।
उन्हें अपने सामाजिक कार्यों के लिए 36 राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों के साथ महामहिम राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी भी सम्मानित कर चुके हैं। हाल ही में भारती सिंह चौहान को अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को में स्थित फेसबुक मुख्यालय में “टेल हर स्टोरी” कॉन्टेस्ट के तहत साउथ एशिया से अकेली भारतीय महिला होने पर सम्मानित किया गया।
फेसबुक जल्दी ही उनकी कहानी पर एक फिल्म बनाएगा। इन्हें बालिका शिक्षा और स्वास्थ्य पर किए जा रहे सामाजिक कार्यों के लिए कई राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय अभियानों की ब्रांड एम्बेसडर भी बनाया गया है। वो कई कॉर्पोरेट की सेक्शुअल हैरसमेंट कमेटी की एक्सटर्नल कमेटी मेंबर भी हैं।
माहवारी को लेकर अवधारणा
आज भारत में बनी फिल्म पीरियड: एंड ऑफ सेन्टेन्स को ऑस्कर मिल चुका है। देश-दुनिया का ध्यान भारत में माहवारी की समस्या से जूझ रही शहरी और ग्रामीण तबके की महिलाओं की ओर पर पड़ा है। फिल्म बन भी गई, ऑस्कर भी मिल चुका मगर अभी भी समस्या जस की तस बनी हुई है।
भारती सिंह कहती हैं कि 7 साल पहले जब इस विषय पर हमने काम करना शुरू किया था तब ना तो कोई इस विषय पर बात करता था और ना ही करना चाहता था। फिल्म और ऑस्कर तो बहुत दूर की बात थी। केवल सरकारी विज्ञापनों के कुछ वीडियोज़ और सामग्रियां उपलब्ध थे।
यह सर्वविदित है कि पूरे विश्व में मई के महीने में मासिक धर्म स्वच्छता दिवस यानी ‘Menstrual Hygiene Day’ मनाया जाता है। देश-विदेश में इसी महीने सैकड़ो चर्चाएं और संगोष्ठियां आयोजित की जाती हैं, जहां महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर बात होती है। फिर भी बहुत सारे ऐसे मुद्दे हैं जो आज भी महिलाओं से कोसो दूर हैं या यूं कहें कि वे आज भी अनसुने, अनकहे व पूरी तरह से नज़रंदाज़ हैं।
गौरतलब है कि ‘पैड वुमन ऑफ राजस्थान’ भारती सिंह चौहान स्वयंसेवी संस्था प्रवीणलता संस्थान की फाउंडर-चेयरपर्सन हैं। उनकी यह कोशिश रहती है कि अब समाज को और प्रबुद्धजनों को महिलाओं के इस एक बेहद संवेदनशील मुद्दे मासिक धर्म या माहवारी को पहली प्राथमिकता दी जाए और इस पर खुल कर विभिन्न मंचों पर बातचीत की जाए।
इसी विषय को लेकर भारती सिंह चौहान पिछले 7 सालों से राज्यभर के अलग-अलग हिस्सों में काम कर रही हैं। उनका कहना है कि माहवारी पर यह आज की बात नहीं है। यह पुराने ज़माने से चली आ रही सामाजिक पारम्परिक समस्या है।
वो कहती हैं, “इसका हल भी समाज से ही निकलेगा। जब समाज में व्याप्त रूढ़िवादी सोच वाले इसे भी आम शारीरिक और नैसर्गिक प्रक्रिया मानने लगेंगे तो हालात ठीक होने शुरू होंगे। यह कोई श्राप, अभिशाप या कोई दैत्ययी प्रक्रिया नहीं है, बल्कि महिला का वो पहला गहना है जिससे उसके महिला होने की पूर्णता का एहसास होता है।”
माहवारी और आशा
इसी क्रम में उनका एक नवाचार स्पॉटलेस डैम (बेदाग नारी) है, जो सही और सुरक्षित माहवारी प्रबंधन की बात करता है। इसकी टैग लाइन भी ‘सेलिब्रेट द रेड ड्रॉप्लेट्स’ है। इस नवाचार के माध्यम से करीब देश विदेश के 100 वॉलंटियर्स अपनी सेवाएं दे चुके हैं और यह क्रम आगे भी जारी है।
उनकी संस्था पिछले 7 सालों से राजस्थान के 9 ज़िलों के 30 गाँवों में 135 कार्यशालाओं के माध्यम से शहरी और ग्रामीण परिवेश की ज़रूरतमंद किशोरियों और महिलाओं को सुरक्षित माहवारी प्रबंधन के लिए शिक्षित और जागरूक कर चुकी है। साथ ही उन्हें निःशुल्क सैनिटरी पेड्स भी उपलब्ध करवा चुकी है।
अभियान के लोगों से जुड़ने का सबसे अच्छा माध्यम सोशल मीडिया रहा जहां पर इस अभियान को बहुत सपोर्ट मिला। अभी इस अभियान को दूर दराज़ के ग्रामीण इलाकों से आगे बंजारा, भील और आदिवासी जनजाति की महिलाओं के लिए भी किया जा रहा है, क्योकि वहां सही माहवारी प्रबंधन विषय एक नई रौशनी की तरह है।
क्लॉथ रियूज़ेबल सैनिटरी पैड्स पर काम करने से पहले भारती सिंह चौहान की संस्था द्वारा करीब 1 लाख 80 हज़ार सैनिटरी पैड्स का नि:शुल्क वितरण किया जा चुका है।
भारती बताती हैं, डिस्पोज़ेबल से रियूज़ेबल पैड पर इसलिए आना हुआ क्योंकि डिस्पोज़ेबल पैड्स पर्यावरण के साथ-साथ महिलाओं के लिए भी हानिकारक हैं। साथ ही इनसे जो अपशिष्ट बनता है, उसे डिकम्पोज़ (सड़ने) होने में 500 से 800 साल लग जाते हैं।”
वो कहती हैं, “डिस्पोज़ेबल सैनिटरी पैड्स के परिणामस्वरूप दुनियाभर में लाखों टन प्लास्टिक कचरे का निरंतर निर्वहन होता है, जो लगभग गैर-बायोडिग्रेबल हैं। एक स्वस्थ महिला अपने पुरे माहवारी जीवन काल में 153 किलो प्लास्टिक कचरा उत्पन्न करती हैं, जो पर्यावरण के लिए हानिकारक है।”
पुरानी परम्परा या रूढ़िवादी सोच
भारती सिंह चौहान बताती हैं कि जब भी उनकी टीम सुदूर ग्रामीण इलाकों में इस विषय पर काम के लिए जाती थी, तो वहां की महिलाओं और बालिकाओं को यह लेने में शर्म आती थी। वे बोलती थीं कि आप तो यह सब देकर चले जाते हो मगर हमें इसे उपयोग में लेने के बाद बाहर फेंकने में डर लगता है, क्योंकि इसे कई बार जानवर भी खा लेते हैं, जो ठीक नहीं है।
भारती बताती हैं कि ग्रामीण उन्हें यह भी कहते थे कि इन सैनिटरी पैड्स को यहां-वहां फेंक देने पर जादू-टोना या फिर ऊपरी हवा का भी डर बना रहता है। आज भी सुदूर ग्रामीण महिलायएं माहवारी के दौरान राख, चिन्दी कपड़े, अखबार और पत्तियों का इस्तेमाल करती हैं।
वो कहती हैं, “कई महिलाओं ने नि:शुल्क सैनिटरी पैड्स को स्वीकार करने से मना कर दिया था, क्योंकि इसके साथ कई मिथक और वर्जनाएं जुड़ी हुई थीं। हम जब उन दिनों में डिस्पोज़ेबल सैनिटरी पैड्स इस्तेमाल में लेते हैं, तो हमें जलन और सफेद पानी की समस्या ज़्यादा रहती है। इसलिए कपड़ा सही रहता हैं। हमारे पुरखे भी कपडा ही इस्तेमाल करते थे। हमें भी यही ठीक लगता है।”
भारती कहती हैं, “अभी भी ज़रूरतमंद ग्रामीण परिवेश की महिलाओं के लिए पहली प्राथमिकता घर खर्च और परिवार के सदस्यों का खाना पीना है। उन्हें अपनी माहवारी के समय हर महीने 30-40 रुपये बेकार में खर्च हो जाते हैं वाली सोच से बाहर लाने की ज़रूरत है और इस पर अभी काम करना बाकि है। इसलिए कपड़ा ही बेहतर विकल्प है। बशर्ते वो साफ-सुथरा और त्वचा अनुकूल हो”
उन दिनों में कपडा इस्तेमाल की इस बात को भारती सिंह ने गंभीरता से लिया और वो और उनकी टीम एक ऐसे कपड़े के लिए रिसर्च में लग गए जो दाग धब्बे से दूर, पर्यावरण और त्वचा अनुकूल साथ ही जीवाणुरोधी भी हों। एक साल के लंबे शोध के बाद निष्कर्ष उन्हें बांस के बने कपड़े में मिल गया। अब उनकी संस्था बम्बू चारकोल से बने कपड़े का पैड बनाती है जिसका नाम भी इन्होंने मेरा पैड रखा है।
समाधान: पर्यावरण अनुकूल सैनिटरी पैड्स
भारती कहती हैं कि मेरा पैड जैविक और पर्यावरण अनुकूल बम्बू चारकोल के कपड़े से बना सैनिटरी पैड है, जो प्राकृतिक फायबर से युक्त, जीवाणु रोधी और तरल पदार्थ को अधिक सोखने वाला है, जो इस पैड को औरों से खास बनाता है।
भारती का कहना है कि इस पैड को पांच साल तक इस्तेमाल किया जा सकता है। यह पैड इको फ्रेंडडी, एक्सेसिबल, अफोर्डेबल, स्केलेबल और हैल्दी भी है। यह पैड ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों की करीब 20 ज़रूरतमंद किशोरी बालिकाओं द्वारा बनाया जा रहा है जिससे उन्हें रोज़गार भी उपलब्ध हो रहा है।
भारती अपनी संस्था द्वाराअब तक शहरी और ग्रामीण ज़रूरतमंद 14073 किशोरियों और महिलाओं को पर्सनल हाइजीन और मेंस्ट्रुअल हाइजीन पर ट्रेंनिंग दे चुकी हैं। साथ ही 43,612 रियूज़ेबल सैनिटरी पैड्स भी निःशुल्क उपलब्ध करवा चुकी हैं, जो पांच सालों तक चलते हैं जिसकी वजह से ये अब तक 1,37,337 किलो (151 टन ) सैनिटरी वेस्ट को बचा चुकी हैं जो पर्यावरण को काफी हानि पहुंचा सकते थे।
कुछ ज़रूरी बातें
- अभी तक संस्था 10 देशों में अपने पैड को भेज चुकी है।
- संस्था ने माहवारी विषय को लेकर एक रोचक पॉकेट बुक (मेरा पैड-मेरी सहेली) भी बनाई है, जिसे वो सरकारी विधालयों और कार्यशालाओं में कॉरपोरेट के माध्यम से निःशुल्क वितरित भी करती है।
- वॉटर एड और यूनिसेफ की माने तो आज भी 14% किशोरी बालिकाएं माहवारी के समय होने वाले इन्फेक्शन से जूझ रही हैं। वहीं, 28% बालिकाएं माहवारी को शर्मिंदगी समझकर स्कूल जाना छोड़ रही हैं।