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“परंपराओं के नाम पर पीरियड्स के दौरान मेरी दोस्त से गोबर के उपले तुड़वाए गए”

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लड़की की तस्वीर

प्रतिदिन की तरह सब स्कूल पहुंच चुके थे। मैं भी रोज़ की तरह अपनी डेस्क पर बैठकर उसका इंतज़ार करने लगा। उस दिन दृष्टि (बदला हुआ नाम) अन्य दिनों की अपेक्षा देर से स्कूल में आई थी। उसकी आंखे डबडबाई हुई थी।

हम दोनों एक-दूसरे को आंखों ही आंखों में देखते रहते थे। शायद हम दोनों एक-दूसरे को पसंद करते थे फिर भी हम दोनों के बीच बात कम ही या यूं कहें होती ही नहीं थी।

कुछ साल बाद आगे की पढ़ाई के लिए हम दोनों के स्कूल अलग-अलग हो गए। बाद में सात-आठ साल बाद हम दोनों पुनः मिले। अब मोबाइल का युग आ चुका था। एक दिन फोन पर बात ही बात में उस दिन की घटना का जिक्र छिड़ गया। 

जब दीदी के पीरियड का खून दृष्टि के कपड़ों पर लग गया

पहले उसने उस घटना के बारे में बताने से इनकार कर दिया लेकिन मेरे बार-बार पूछने पर उसने बताया कि मैं दीदी के पास सोई हुई थी और उस दिन दीदी को महीना (गाँव में पीरियड का प्रचलित नाम) आया था। जब मैं सुबह उठी तो देखा कि घर के कुछ लोग मुझे देखकर हंस रहे थे।

उसने बताया, “कुछ लोग मुझे रसोई में ना घुसने के लिए कह रहे थे। जब मैंने अपने कपड़े देखा तो उसमें खून लगा हुआ था। बाद में दीदी ने बताया कि पीरियड उनको आया है और उन्हीं का गंदा खून मुझे लगा था।”

जब पहली बार दृष्टि को पीरियड हुआ

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Flickr

दीदी के साथ सोने के कारण घटी उस घटना के एक साल बाद दृष्टि को पहली बार पीरियड हुआ। वह चूंकि दीदी के साथ पूर्व में घटी घटना के कारण पीरियड के समय किए जाने वाले व्यवहार को जानती थी। इससे वह डरी हुई थी फिर भी उसने यह बात अपनी माँ को बताई।

दृष्टि नें मुझे बताया कि उसकी माँ सबसे पहले उसे घर मे लेकर गई और एक अढ़इया (गाँवो में प्रचलित पत्थर का एक बाट जिसका वजन 3.50 किलो होता है) पर उसको बैठाकर नहलाया गया। फिर एक गोबर की उपली लाकर उसे तुड़वाया गया। इन सब कार्यों को परम्परा का नाम देते हुए उसे बताया गया कि इससे पीरियड के समय दर्द कम होगा।

उसने यह भी बताया कि इन सब कामों को करने के बाद उसकी माँ ने हिदायत दी कि उसे अब अगले 2 दिन नहाना नहीं है अगर वह नहाती है, तो उसका पीरियड अनियमित हो सकता है।

पहले पीरियड के दौरान दृष्टि पर लगाई गई बंदिशें

इसके अतिरिक्त उसे पीरियड अवधि में अचार का डब्बा छूने की मनाही भी की गई। पहली बार अपने ऊपर इतनी बंदिशों के कारण वह डरी रहती थी लेकिन धीरे-धीरे वह इन चीज़ों की अभ्यस्त हो गई।

उसने बताया कि उस समय घर के किसी पुरुष सदस्य से पीरियड के विषय में बात नहीं की जा सकती है। अतः पैड के लिए पैसे मांगने में भी दिक्कत होती थी। अक्सर पढ़ाई के दौरान किताब-कलम के नाम पर मांगे गए पैसों से कभी-कभी वह पैड खरीद लेती थी। ज़्यादातर वह कपड़े का प्रयोग करती थी।

पीरियड्स के दौरान कपड़े का प्रयोग बेहद कठिन होता है

उसने बताया कि शुरुआत के दो-तीन दिन ज़्यादा खून बाहर आता था, जिससे एक साथ अधिक कपड़ो का प्रयोग करना पड़ता था। उन कपड़ों को सम्भालना मुश्किल होता था जिसके कारण अक्सर माँ स्कूल जाने से रोक देती थी।

इन सब बातों को बताते हुए वह हंस रही थी। उसने कहा आज मैं जब उन दिनों के बारे में सोचती हूं तो मुझे अजीब अनुभव होता है। साथ ही इस बात की भी समझ हुई कि वे सब सिर्फ गलत धारणाएं थीं।

उसने यह भी कहा कि इन गलत धारणाओं का खत्म होना बेहद ज़रूरी है लेकिन इसके लिए बहुत मेहनत करनी होगी और बिना शिक्षित हुए इन्हें खत्म करना बहुत मुश्किल है।


नोट: विवेक YKA के तहत संचालिच इंटर्नशिप प्रोग्राम #PeriodParGyaan के मई-जुलाई सत्र के इंटर्न हैं।

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