कोरोना की वैश्विक महामारी ने सम्पूर्ण जनजीवन को लॉक ही कर दिया है। सामूहिक एकत्रीकरण से इस बीमारी का फैलाव बहुत अधिक होता है। इसलिए यातायात बंदी और लॉकडाउन कर दिया गया है।
मैं विश्वविद्यालय में पीएचडी का शोध छात्र हूं। जब कोरोना महामारी की शुरुआत हुई थी, तब हमारे विश्वविद्यालय ने भी अवकाश जारी किया। कोरोना के बढ़ते प्रभाव, लॉकडाउन और यातायात बंदी के कारण मैं घर नहीं जा सका। इसलिए मुझे यहीं सांची में रुकना पड़ा।
मेरा ज़्यादातर संपर्क शोध या विमर्श के विषय से होने के कारण मैं विश्वविद्यालय में शैक्षणिक गतिविधियों से संबंधित ही लिखता था। प्राचीन भारतीय समाज एवं संस्कृति, दर्शन, इतिहास, पुरातत्व और अन्य मानविकी विज्ञानों से संबंधित विषयों इत्यादि के बारे में थोड़ा बहुत पढ़ा भी है और पढ़ने की इच्छा भी रखता हूं।
लॉकडाउन और यातायात बंदी के कारण मुझे घर जाने के लिए अवसर नहीं मिला जिसका कोई दुख नहीं है। वह इसलिए क्योंकि मैंने कभी भी शैक्षणिक गतिविधियों से परे जाकर व्यक्तिगत कुछ ऐसा लेखन कभी भी नहीं किया है।
मेरा खुद का अनुभव मुझे यही सिखाता है कि हम जो कुछ भी पढ़ते हैं, उसका समाज के बदलाव के लिए उपयोग ना हो तो वह पढ़ना बेकार है। मैं व्यक्तिगत रूप से बुद्ध और उनके विचारों से जुड़ा हूं, जिसके कारण भी कुछ विचारों की स्वतंत्रता का अनुभव कर सकता हूं।
गौतम बुद्ध के उपदेश भी सामाजिक बदलाव की बात करते हैं और व्यक्ति को एक स्वतंत्र अभिव्यक्ति होने के लिए प्रोत्साहित भी करते हैं। गौतम बुद्ध के कालाम सुत्त के मुताबिक, “हे कालामों, जो मानने और करने से बुरा होता है, सुज्ञ जन जिसे अनुचित मानते हैं, उसे छोड़ दो और जो करने से भलाई होती है, जिसको सुज्ञ जन उचित मानते हैं, वही करते रहो। हर बात अपनी बुद्धि और अनुभव की कसौटी पर कसकर ही अपनाओ, अन्यथा उसका त्याग करो।”
बुद्ध अपने कालाम सुत्त में आगे कहते हैं,
- मा अनुस्सवेन- यानी कि केवल सुनी हुई बातों को मत मानो।
- मा इतिकिरियाय- केवल अफवाहें हैं, इसलिए मत मानो।
- मा परंपराय: केवल परंपरा है, इसलिए मत मानो।
- मा पिटक सम्पदानेन: केवल धर्मग्रंथों में लिखा है, इसलिए मत मानो।
- या नयहेतु: केवल न्यायपूर्ण दिखाई है, इसलिए मत मानो।
- मा तक्क-हेतु: केवल तर्क संगत लगता है, इसलिए मत मानो।
- मा आकार परिवत्तेन: केवल उपर-उपर से ठीक दिखाई देता है, इसलिए मत मानो।
- मा भब्बरुपताय: केवल भव्य रूपमय है, देखने में विशाल है, इसलिए मत मानो।
- मा दिट्ठिनिज्झानखंतिया: केवल अपनी सोच से मेल खाता है, इसलिए मत मानो।
- मा समणो गरू’ति: केवल कहने वाला महान गुरू या धर्मोपदेशक या धर्म संस्थापक है, इसलिए भी मत मानो।
बुद्ध अपनी शिक्षा को भी बुद्धि और अनुभव की कसौटी पर कसकर ही अपनाने की सलाह देते हैं। सुनार जैसे सोने की परिक्षा आग में जलाकर, हथौड़े से ठोककर करता है, उसी तरह मेरी शिक्षा भी अनुभव की कसौटी पर आजमाकर ग्रहण करो। यह बुद्ध का आग्रह है मगर क्यों?
क्योंकि ऐसा करने से बुद्धि को गुलामी में बांधने वाले सभी बंधन टूट जाते हैं और आदमी अपनी और औरों की सही भलाई जानकर सर्वत्र सुखदायक बर्ताव करने के काबिल हो जाता है। यही मानवता है, सही मानवधर्म है। मुझे लगता है इस बात का ज़्यादा परिणाम मेरे व्यक्तिगत जीवन पर हुआ है।
गौतम बुद्ध के त्रयी सिद्धांतों का भी काफी परिणाम मेरे जीवन पर मैं महसूस करता हूं। ये त्रयी सिद्धांत इस प्रकार है।
- त्रिरत्न- बुद्ध, धम्म एवं संघ
- प्रज्ञा, शील
- करुणा और स्वतन्त्रता, समानता एवं बंधुत्व।
इन सभी के कारण ही मेरी यह सोच-समझदारी विकसित हुई है। तर्क, अनुभवों से किसी बात को स्वीकार करना, कोई भी चीज़ नित्य ना होकर निरन्तर बदलती रहती है। बुद्ध के विचारों ने मुझे बदलाव का पक्षधर होना सिखाया।
मुझे लगता है कि सोशल मीडिया ने खुलकर पढ़ने और लिखने का अवसर प्रदान किया है। इसके अलावा मैं सोशल मीडिया के माध्यम से कुछ ऐसे माध्यमों से जुड़ा जो स्वतः कुछ बदलाव की बात पर खुलकर चर्चा या विमर्श करता है।
जैसे कि तर्कशील सोसाइटी, तर्कशील और अभिव्यक्ति इत्यादि से जुड़कर समाज में बदलाव की बात पर मेरा ध्यान आकर्षित हुआ और मैं लिखने लगा। संभवतः एक वर्ष पूर्व की ही बात होगी जब हमारे मित्र Youth Ki Awaaz के लिए लिखते थे।
बहुत कुछ बातचीत भी इस विषय हुआ करती थी। वो कहते थे कि आप भी लिखा करिए इस प्लेटफॉर्म पर। उस दौरान Youth Ki Awaaz पर मेरा अकाउंट तो बन गया मगर एक या दो आर्टिकल लिखकर हमने लिखना छोड़ ही दिया था।
अब जब लॉकडाउन हुआ और दिन-ब-दिन जो खबरें मिलती गईं तो लगा कि अब घर भी तो नहीं जा रहे हैं और काम भी पढ़ना-लिखना ही है, तो क्यों ना कुछ लिखा जाए। तब जाकर स्मरण आया कि कभी हमने भी Youth Ki Awaaz पर अकाउंट क्रिएट किया था।
शायद पासवर्ड भूल गया था तो नया पासवर्ड बनाया और पुनः लिखना चालू किया। मैंने पूर्व में ही बताया है कि मानविकी विज्ञान से संबन्धित विषयों को पढ़ने के कारण मेरे ज़्यादातर विचार और आर्टिकल भारतीय समाज एवं संस्कृति, दर्शन, इतिहास,पुरातत्वशास्त्र और अन्य मानविकी विज्ञानों के इर्द-गिर्द होते हैं। घर में भी बातचीत होती रहती है, सभी जगह कोरोना का डर है। इसलिए चिंता तो बनी रहती है।