कोरोना संक्रमण की चपेट में लगभग पूरी दुनिया के देश आ चुके हैं। इस महामारी की वजह से दुनिया की एक तिहाई से अधिक आबादी किसी-ना-किसी रूप में घर में बंद है।
उद्योग धंधे बंद होने से विश्व की अर्थव्यवस्था चरमरा गई है। दुनिया अब आर्थिक मंदी के दरवाज़े पर आ खड़ी है। गिरती अर्थव्यवस्था का सीधा असर किसी-ना-किसी रूप से प्रत्येक व्यक्ति पर पड़ेगा। अब चिंता की बात यह है कि दुनिया की आधी से ज़्यादा श्रमिक आबादी बर्बादी की कगार पर आ खड़ी हुई है।
विश्व के 160 करोड़ श्रमिकों की आजीविका खतरे में
हाल ही में 29 अप्रैल 2020 को जारी, अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक संघ की एक रिपोर्ट के अनुसार, कोविड-19 के कारण वर्तमान में विश्व की आधी श्रमिक आबादी के लिए अपनी आजीविका खोने का खतरा बन गया है।
रिपोर्ट बताती है कि आज के समय में दुनिया की कुल श्रमिक आबादी 330 करोड़ यानी लगभग 3.3 बिलियन है। जिनमें से लगभग 2 बिलियन श्रमिक असंगठित क्षेत्र में काम करते हैं।
इन 200 करोड़ श्रमिकों में से लगभग 160 करोड़ श्रमिकों के लिए अपनी आजीविका खोने का बड़ा संकट खड़ा हो सकता है।
कोरोना महामारी फैलने के पहले महीने में ही इन श्रमिकों की मज़दूरी में 60% की गिरावट दर्ज़ की गई थी। कोविड-19 के कारण अमेरिकी महाद्वीप और अफ्रीकी देशों में असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों की आय में 81% तक की गिरावट हो सकती है। वहीं, यूरोप तथा मध्य एशिया में यह गिरावट 70% तक हो सकती है।
भारत के श्रमिकों पर महामारी का प्रभाव
हमारे देश में शुरू से ही सावधानी बरतने और विश्व के सबसे बड़े लॉकडाउन के कारण महामारी का प्रभाव बहुत कम पड़ा लेकिन लॉकडाउन की वजह से सभी क्षेत्र के व्यवसाय और रोज़गार बंद हो गए हैं।
लोगों की आय को बहुत अधिक क्षति हुई है। वर्ष 2018 में प्रकाशित नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, देश के कुल श्रमिकों में से लगभग 85% असंगठित क्षेत्र से जुड़े हुए हैं। इन श्रमिकों में से एक बहुत बड़ी आबादी दैनिक मज़दूरी पर काम करने वाले अकुशल मज़दूरों की है।
उद्योगों के बंद होने से बड़ी संख्या में भारत के अनेक शहरों से गाँवों की तरफ मज़दूरों का पलायन हुआ है जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार की कमी और कामगारों की अधिकता बढ़ी है।
प्रतिस्पर्द्धा के कारण ग्रामीण असंगठित क्षेत्र के दिहाड़ी, कृषि मज़दूरों की मज़दूरी में कमी आई है। इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी बहुत ज़्यादा नुकसान पहुंच रहा है।
लॉकडाउन की वजह से चली गई लगभग 12 करोड़ नौकरियां
कोरोना संकट से पहले भारत में कुल रोज़गार आबादी की संख्या 40.4 करोड़ थी, जो इस संकट के बाद घटकर 28.5 करोड़ हो चुकी है।
रोज़गार ना मिलने के कारण मज़दूर कर्ज़ लेने के लिए मजबूर हो सकते हैं। साथ ही वे बंधुआ मज़दूरी का शिकार हो सकते हैं। इसका प्रभाव बच्चों पर भी पड़ेगा और ज़्यादा से ज़्यादा बच्चे बाल मज़दूरी और भिक्षावृति जैसे कामों में झोक दिए जाएंगे।
सरकार को उठाने होंगे कड़े कदम
सरकार को रोज़गार बचाने के लिए आर्थिक स्तर पर बड़े और कड़े दोनों तरह के फैसले लेने पड़ेंगे। छोटे उद्यमों, कमज़ोर व असंगठित क्षेत्र के सहयोग के लिए लक्षित प्रयास करने होंगे।
साथ ही जल्द से जल्द योजनाबद्ध तरीके से बिना नुकसान उठाए लॉकडाउन खोलने का प्रयास करना होगा।
संदर्भ- आईएलओ द इकोनोमिक टाइम्स, oneindia, बिज़नेस टुडे, जागरण जोश, news.un