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लॉकडाउन: क्यों बढ़ रही हैं लड़कियों के खिलाफ साइबर क्राइम की घटनाएं?

cyber crime against women amid lockdown

cyber crime against women amid lockdown

एक तरफ जहां देश कोविड-19 के खतरे से लड़ रहा है, वहीं दूसरी ओर महिलाओं की साइबर सुरक्षा भी पुलिस के लिए एक बड़ी चुनौती बन गई है। लॉकडाउन के कारण घर में रहने वाली महिलाएं, युवतियों व छात्राओं पर साइबर अपराधियों की पैनी नज़र है।

ऑनलाइन शिक्षा प्रणाली और वर्क फ्रॉम होम की नई परंपरा ने महिलाओं की साइबर सुरक्षा में बखूबी सेंधमारी की है।

हाल में दिल्ली के तीन नामचीन स्कूलों के स्टूडेंट्स द्वारा सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर आपत्तिजनक चैटिंग प्रकरण और इसके पीछे की असली कहानी के खुलासे ने साइबर सुरक्षा की कमियों को उजागर किया है।

इस पूरे प्रकरण ने साबित कर दिया है कि महिलाएं विशेषकर नवयुतियां साइबर अपराधियों की आसान शिकार हैं। ऐसे में अब हमारी पुलिस को लॉकडाउन को सफल बनाने और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कराने के साथ-साथ साइबर अपराधियों से भी भिड़ना होगा।

क्या कहते हैं महिला आयोग के आंकड़े?

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार- Getty Images

गौरतलब है कि राष्ट्रीय महिला आयोग के आंकड़ों के अनुसार, अप्रैल में साइबर अपराध की 54 शिकायतें मिलीं। जबकि मार्च में 37 और फरवरी में 21 शिकायतें मिली थी।

महिला सुरक्षा के लिए केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा भरसक प्रयास के बावजूद महिलाओं की सुरक्षा नाकाफी साबित हो रही है। महिला सुरक्षा के लिए सरकार द्वारा की जाने वाली तमाम कोशिशों के बीच आधी आबादी को मज़बूत साइबर सुरक्षा देना आज भी एक बड़ी चुनौती है।

सार्वजनिक स्थलों, घरों और कार्यस्थलों पर महिलाओं के साथ हो रहे अपराधों के समानांतर अब महिलाओं पर बढ़ता साइबर अपराध पुलिस की नई मुसीबत बन चुका है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली सहित देश के अन्य राज्यों में महिलाओं के प्रति साइबर बुलिंग और हैकिंग सहित अन्य साइबर अपराध की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं।

कश्मीर के हालात भी चिंंताजनक

अनुच्छेद 370 से आज़ाद होकर केंद्रशासित प्रदेश बने जम्मू-कश्मीर में भी महिलाएं तेज़ी से साइबर अपराध की शिकार हो रही हैं। वास्तव में यह महिलाओं के प्रति हिंसा की नई शक्ल है, जो वायरस की तरह तेज़ी से समाज में फैलता जा रहा है।

महिलाओं के खिलाफ घटने वाले विभिन्न अपराधों में साइबर छेड़छाड़, ब्लैकमेलिंग, फोटो वायरल और ऑनलाइन अपराध तेज़ी से बढ़ रहे हैं। पुलिस की चिंता अब एकांत और सार्वजनिक स्थलों पर महिलाओं को सुरक्षा देने के साथ-साथ साइबर अपराधियों से भी उन्हें सुरक्षित रखने की चुनौतियों में तब्दील हो चुकी है।

साइबर विशेषज्ञों की कमी से जूझता देश

देश के अधिकांश राज्यों की सुरक्षा एजेंसियों के लिए आज महिलाओं की साइबर सिक्योरिटी एक बड़ी चिंता बन चुकी है। इसमें सरकारों को ज़्यादा कामयाबी मिलती नज़र नहीं आ रही हैं। दरअसल पुलिसिया सिस्टम में साइबर विशेषज्ञों की कमी ही इस दिशा में सबसे बड़ा लूप होल साबित हो रहा है।

चंद राज्यों को छोड़ दें तो देश का छोटा, बड़ा हर राज्य महिलाओं को मुकम्मल तकनीकी सुरक्षा प्रदान करने में नाकाम रहा है। गली, सड़क, चौराहों के बाद आज महिलाएं ऑनलाइन प्लेटफार्म पर सबसे ज़्यादा अपराध का शिकार हो रही हैं। महिला अपराध की इस नई शक्ल में महिलाओं को शारीरिक से ज़्यादा मानसिक शोषण से गुज़रना पड़ रहा है।

सोशल मीडिया पर फेक आईडी, अकाउंट का हैक होना, गलत तरीके से किसी महिला की फोटो या वीडियो वायरल करना और साइबर ट्रोलिंग इस अपराध के मुख्य कारक हैं।

स्कूल जाने से लेकर एक नौकरीपेशा महिला तक इस अपराध का शिकार हो रही हैं। महिलाओं की सुरक्षा के लिए मिलने वाली नसीहत ‘घर बैठो सुरक्षित रहोगी,’ भी साइबर अपराध के आगे घुटने टेक चुकी है। घर बैठकर ऑनलाइन बिज़नेस करने वाली महिलाएं भी अब अपराध की गिरफ्त में हैं।

कठोर कानून बनाने की है ज़रूरत

साइबर अपराधियों के बढ़ते हौसले की मुख्य वजह इन अपराधों को रोकने और अपराधियों को दंडित करने के लिए कठोर तथा प्रभावी कानूनों का अभाव है। 2013 में राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा नीति ज़रूर बनाई गई थी लेकिन यह भी कागज़ी घोड़ा से अधिक कुछ साबित नहीं हो रहा है।

यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि देश में अभी भी साइबर अपराध गैर-ज़मानती नहीं है। इसके लिए अधिकतम सज़ा मात्र तीन साल है। ऐसे में ज़रूरी है कि सरकार साइबर अपराध से जुड़े कानूनों में फेरबदल कर इसे कठोर से कठोरतम बनाए ताकि साइबर अपराधियों के दिल में डर बैठे और महिलाएं स्वयं को सुरक्षित महसूस करते हुए देश के विकास में कदम से कदम मिलाकर अपना योगदान दे सकें।

देश में साइबर अपराध से निपटने के लिए साइबर थानों की संख्या में वृद्धि करना बेहद ज़रूरी है। ज़्यादातर शहरों में तो साइबर अपराध की शिकायत भी सामान्य थानों में कराई जाती है, जहां पुलिस इस काम को कर पाने में अक्षम होती है।

इस वक्त देश में साइबर थानों की संख्या पचास से भी कम है। ऐसे में आवश्यक हो जाता है कि एक तरफ जहां सरकार इस अपराध पर अंकुश लगाने के लिए कड़े कानून बनाए तो वहीं आमजन को भी साइबर सुरक्षा से जुड़े उपायों के प्रति जागरूक होना पड़ेगा।


नोट: इस आलेख को शालू अग्रवान ने संजॉय घोष मीडिया अवॉर्ड 2019 के तहत लिखा है।

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