मैं भैया की शादी के लिए बहुत ही उत्सुक थी। हम सह परिवार अपने गांव ओड़िशा पहुंचे। सब लोग शादी की तैयारी में जुटे हुए थे। मैं रसोईघर में दाल बना रही थी। अचानक मुझे कुछ अजीब-सा गीला महसूस हुआ, मैंने मां को आवाज़ दी “मां, मुझे कुछ गीला गीला महसूस हो रहा है और पेट में भी दर्द हो रहा है।”
इस पर माँ ने कहा “वहीं खड़ी रह मेरे पास मत आ।” वह समझ गई कि मुझे महीना यानी पीरियड आ गया है। माँ मुझे घर की पीछे की कोठरी में ले गई और बताया कि कपड़ा कैसे लगाते है। इसके बाद मझे चटाई, तकिया और एक चादर दे कर बोली अब सात दिन तक यही पर रहना है, भाई और पापा की शक्ल भी नहीं देखना। यह सुन कर मेरा तो दिमाग खराब गया कि मेरे साथ यह क्या हो रहा है?
आज मुझे अपना हाल समझ आया
दिखाता है क्या क्या ये लाल रंग
आज मुझे ये सवाल समझ आया
मेरे आंखो के आगे अंधेरा छा गया और महसूस हुआ कि अचानक ही मेरी ज़िन्दगी बदल गई। माँ-बाप, भाई सब दूर हो गए। माँ ने भइया से कहा, “पूरे गांव को आमंत्रण दे आ और सब से कह देना कि मेरी बहन बड़ी हो गई है।” भाई ने इस प्रथा का पूरा विरोध किया लोकिन उनकी बातों का किसी ने ध्यान नहीं दिया।
उस कोठरी में दूसरा कोई नहीं था बस मैं अकेली थी। दिल और दिमाग में तरह-तरह के सवाल उमड़ रहे थे। क्या मुझे एक लड़की होने की सज़ा मिल रही है? काश ऊपर वाला मुझे लड़की ही नहीं बनता। मैं कभी भी अकेले नहीं रही और ना ही कभी अकेले सोई थी। दोपहर में माँ मुझे दूर से ही खाना दे गईं और कहा प्लेट धो कर रख देना और अगले सात दिन तक तुम्हे खाना इसी प्लेट में ही मिलेगा।
माँ से मैंने कुछ पूछना चाहा लेकिन वो अनजानों की तरह दूर से खाना दे कर चली गईं। रातभर डर के मारे मुझे नींद नहीं आई और पूरी रात रो-रो कर गुज़र गई। कोई भी मेरे पास आता ही नहीं था क्योंकि अगर आ जाएगा तो उसे सिर धो कर नहाना पड़ेगा। मुझे आज भी याद है सात दिनों तक मैने एक ही कपड़े पहन रखें थे, वो सात दिनों तक मुझे सात सालों के बराबर महसूस हुए।
अकेले रहते मुझे सब याद आ रहा था
भाई के साथ वो बात-बात पर झगड़ना
मां के साथ वो जा कर लिपट जाना
पर जब रीति रिवाजों का दिखा आइना
तो फिर हुई सारे जग से रुसवाई
मेरी आंखे झट से भर आई
आखिर सातवां दिन आया भोर में ही मुझे नदी पर ले जाया गया, नहलाया गया और जो कपड़े मैंने उतारे थे, उन कपड़ों को एक गढ्डा खोद कर उसमें दबा दिया गया। जब घर आई तो कपड़े और श्रृंगार का सामान रिश्तेदार और मामा मेरे लिए लाए थे। वो सब मुझे पहनाया गया। हल्दी लगाई गई। मेरा श्रृंगार किया गया फिर बैंड-बाजे के साथ मंदिर ले जाया गया रास्ते में लोग बड़ी-बड़ी बाते बना रहे थे। कह रहे थे,
यही लड़की है जिसे पीरियड्स हुए हैं। इसकी तो भाई की शादी है।
लोग ऐसे देख रहे थे जैसे मैंने बहुत बड़ा गुनाह कर दिया हो। दो दिन बाद भैया कि शादी हुई। पूरी शादी में मैं ही लोगो की चर्चा का विषय बनी रही। सभी बाते बनाने में मगन थे लेकिन किसी ने भी इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि एक लड़की के मन पर इन सब परिस्थितियों का क्या असर पड़ेगा? क्या एक लड़की होने की इतनी बड़ी सज़ा होती है। आज भी अगर किसी को पीरियड आता है तो उसे इसी प्रकार की मानसिक तनाव से हो कर गुजरना पड़ता है।
इसमें मेरा क्या दोष है
बेड़ियों की बंदिशों में ,जकड़ी सदा ही नारी है
जंजीर नहीं तो क्या, परम्परा ही भारी है
मासिक धर्म है ये कोई शर्म नहीं है
फिर क्यों मंदिर,रसोई में प्रवेश नहीं है
जबकि इसमें मेरा कोई दोष नहीं है