त्रिपुरा के आदिवासी बांस का कई प्रकार से इस्तेमाल करते हैं। खाना बनाने से लेकर खाने तक, चटाई बनाने से लेकर घर बनाने तक आदिवासियों को बांस का लाभ होता है।
त्रिपुरा के चंदी ठाकूर पारा में बांस से घर का छत भी बनाया जाता है। बांस के इस छत को त्रिपुरा की आदिवासी भाषा कोकबोरोक में जाप वामूंग (Jap Wamung) कहते हैं। यह छत घर को धूप और बारिश से रक्षा करता है।
बांस का यह छत बनाने के लिए पहले जंगल से बांस काटकर लाया जाता है। इसके साथ हमें तार, हथौड़ा, कील, आरी, लकड़ी और दराता की भी ज़रूरत पड़ती है।
छत को माप लिया जाता है और इस हिसाब से ज़मीन पर इसका ढांचा बनाया जाता है ताकि छत बनाने में आसानी हो।
माप के हिसाब से फिर बांस को काटा जाता है। इस बांस से छत तैयार करने से पहले धूप में सुखाया जाता है। अगर यग ना सुखाया जाए, तो बाद में मुरझा सकता है।
काटे हुए बांस को एक ऊपर और एक नीचे तब तक बुना जाता है जब तक कि यह ज़मीन के आकर का ना हो जाए। इस छत को बनाने में लगभग एक पूरा दिन लग जाता है।
यह बांस का छत जब पूरा बनता है, तो इसे रात भर ऐसे ही रखते हैं और दूसरे दिन इस पर फिर से काम शुरू कर देते हैं।
दूसरे दिन इस छत के बाजुओं को सफाई से काट दिया जाता है। इसके बाद इसका माप लेकर इसे बीच से काटकर तार से बीचोंबीच ठीक से बांध दिया जाता है फिर इसे घर पर चढ़ाकर बांध दिया जाता है।
इस पूरी प्रक्रिया में लगभग एक हफ्ता लग जाता है। यह मेहनत, धीरज और कुशलता का काम है जिसे सभी लोग आसानी से नहीं कर पाते हैं। इसके लिए तगड़ा अनुभव होना ज़रूरी है। त्रिपुरा के कई आदिवासी इस काम के ज़रिये आमदनी कमा लेते हैं।
नोट: यह जानकारी चंदी ठाकूर पारा के बसंत देब बर्मा से प्राप्त हुई है।
लेखिका के बारे में- खुमतिया त्रिपुरा की निवासी हैं। वो BA पढ़ चुकी हैं और समाज सेविका बनना चाहती हैं। उन्हें गाने, घूमने, फोटोग्राफी और वीडियो एडिटिंग में रुचि है।