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पर्यावरण दोबारा जी उठा है लेकिन क्या यह सिर्फ लॉकडाउन तक की कहानी है?

climate during lockdown

climate during lockdown

भारतीय दर्शन में पृथ्वी को वंदनीय माना जाता है। हम भारतीय अपनी संस्कृति एवं परम्परा से ही अक्सर विभिन्न प्रकार की जीवनदायिनी चीज़ों से भावनात्मक प्रतीकों द्वारा जुड़े होते हैं। पृथ्वी जो हमारे जीवन का आधार है, जिसके सहारे हम अपने नित्य के कार्यों को करते हैं।

यही नहीं, उस पर चलकर, खेलकर उसे माँ की गोद में किलकारियां करने के समान समझते हैं जिसमें बीज बोकर जीवनयापन हेतु अन्न पैदा करते हैं।  इसलिए हम भारतीय इसे ‘धरती माँ’ कहकर संबोधित करते हैं।

हमने अपनी धरती माँ से आवश्यकता से अधिक मांग कर ली है। जिसका परिणाम यह हुआ हमारी प्यारी धरती माँ गर्म होती चली गई।

जिसकी भयावहता आवश्यकता से अधिक बारिश होना, जंगलों की भयंकर आग, पिघलते ग्लेशियर के रूप में हमारे सामने आने लगे। नुकसान समझ में आने के बाद धरती माँ को बचाने के लिए बहुत सारे प्रयास किए जाने लगे।

देशों की एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ में धरती का क्या हाल किया

भौतिक प्रधान दुनिया के देशों ने एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ में इनके द्वारा ‌किए गए प्रयासों को कागज़ों में ही सिमटने को मजबूर कर दिया।

फिर इन दिनों पहली बार इस लॉकडाउन के दौर में मानो पृथ्वी सहित सारा पर्यावरण कह रहा हो, “हे मानव, इस विकृत रूप को मैं खुद सुधारुंगी। तुम्हारा स्वार्थ मुझे मेरे पहले की दशा में लाने में तेरे मार्ग में बड़ी बाधा बनेगा।”

फिर क्या था कोरोना जैसी महामारी ने वैश्विक महाशक्तियां यानी अमेरिका से लेकर चीन तक को उत्पादन कार्य बंद करने पर विवश कर दिया।

शहरों में वायु गुणवत्ता सूचकांक सुधर चुके हैं

शहरों से लेकर गाँवों में फर्राटा भरते वाहनों की गति थम गई है। पर्यावरण का गढ़ बन चुकी दिल्ली से लेकर मुझ जैसे ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोग आसमान में बढ़ी हुई नीलिमा के दर्शन कर सकते हैं।

सुबह से कानों में पड़ने वाली वाहनों की करकश ध्वनि की जगह चिड़ियों की चहचहाहट आसानी से सुनी जा सकती है।

विभिन्न शहरों के वायु गुणवत्ता सूचकांक सुधरे हुए वायु की दशा को बता रहे हैं। गंगा, यमुना जैसी नदियां जिनको पवित्र करने के लिए बड़े-बड़े प्रयास किए गए, उनके स्वतः पवित्र होने की बातें भी सामने आ रही हैं।

कोरोना जैसी महामारी ने मानव को घरों में रहने के लिए मजबूर कर दिया है। ऐसा प्रतीत हो रहा है मानो प्रकृति स्वयं अपना आकार ले रही हो लेकिन कब तक?

महामारी से जीत के बाद महामारी पूर्व का काल भविष्य का हाल होगा

निश्चित ही कभी ना कभी मानव इस महामारी से जीत लेगा फिर शायद मनुष्य भौतिक सुख की अंधी दौड़ में भागने लगेगा। वुहान से खबर भी आ गई कि चीन नें धुंआ उगलने वाली फैक्ट्रियों से उत्पादन फिर शुरू कर दिया है फिर धीरे-धीरे पूरी दुनिया पुनः उसी कोरोना काल के पहले वाली स्थिति में चली जाएगी।

हमें इस दौर से बहुत कुछ सीखना होगा। हमें गर्म होती अपनी पृथ्वी को बचाने के प्रयास करने होंगे। हमारे आस-पास आज से दस साल पहले जो पेड़ खड़े हुआ करते थे, वे अब नहीं हैं। बढ़ती आबादी के कारण रहने और अन्न उत्पादन के लिए कम पड़ती जगह के कारण जंगल उजाड़ दिए गए।

जनसंख्या नीति की है ज़रूरत

मैं देख सकता हूं उन स्थानों पर अब बड़े-बड़े भवन लहरा रहे हैं। इसलिए कभी-कभी मुझे महसूस होता है कि क्यों ना अब एक जनसंख्या नीति बने जिसमें बच्चे पैदा करने की एक संख्या निश्चित की जाए।

उस मानक से अधिक बच्चे पैदा करने वालों के लिए कुछ दंड भी निश्चित किया जाना चाहिए। मसलन, उन्हें सरकारी लाभों से वंचित करने जैसे नियम बनाए जा सकते हैं।

पर्यावरण सुरक्षा जैसे विषय पर हम कब गंभीर होंगे?

खेती करने के लिए हमने जंगलों को उजाड़ दिया। हमारे उन खेतों में फसलें भी लहलहाती हैं लेकिन प्रकृति अपना हिसाब भी करती है। वह अपने उजड़े जंगलों के बदले खड़ी फसलों पर कभी बेमौसम बारिश करके तो कभी ओले गिराकर फसल को ज़मीन पर सुला देती है।

हम अक्सर खेतों में गिरी फसल के बीच में आसमान की तरफ निराश होकर देखते किसान की तस्वीर को अखबारों के पन्नों में देखते रहते हैं। शायद अब हमें पर्यावरण सुरक्षा जैसे विषय पर गंभीर हो जाना चाहिए।

हमें विलासिता के साधनों का कम-से-कम और आवश्यक होने पर ही प्रयोग करना चाहिए। निजी वाहनों का कम ही प्रयोग किया जाए तो बेहतर है। हो सकता है आप मेरी इस बात से सहमत ना हों, हो सकता है आप कहें कि क्या हम बैलगाड़ी से यात्रा करें? हो सकता है आपका तर्क हो कि क्या हम एसी ना चलाएं?

बिल्कुल कहिए लेकिन यह भी याद रखिएगा कि प्रकृति का रूप जब विकृत होता है, तो आप घरों में कैद हो जाते हैं। आपके बड़े वाहन जो आपकी विलासिता के प्रतीक थे, उनकी गति थम जाती है। आप एसी का प्रयोग ना करें इसके लिए एडवाइज़री जारी होती हैं।

आज इस लॉकडाउन के दौर में आप वही तो कर रहे हैं जो आप सामान्य दिनों में करने के लिए सोच भी नहीं सकते थे।

पर्यावरण को बचाने के लिए बड़े प्रयास करने होंगे

पर्यावरण को बचाने के लिए बड़े प्रयास करने होंगे ताकि हम आवश्यकतानुसार इन विलासिता के साधनों का प्रयोग भी कर सकें और हमारा वातावरण भी बेहतर रहे। अवैध तरीके से वनों की कटाई पर रोक लगानी होगी।

यद्यपि हम कहते हैं कि हम नए वृक्ष लगाकर उसकी भरपाई कर सकते हैं लेकिन इससे कुुुछ हद तक उस कटाई की भरपाई होती है मगर उसकी पूर्ण भरपाई नहीं हो पाती है, क्योंकि एक वन या वृक्ष जब विकसित होता है तो उसकी जड़ों से लेकर उसके आसपास कई दशकों में एक जैविकीय परिवेश निर्मित होता है। हम उसकी कटाई से उस परिवेश को खो देते हैं।

पुनः उस जैसा परिवेश बहुत मुश्किल से और कई दशकों बाद ही बन पाता है। मेरा मानना है जिस तरह आज इस लॉकडाउन में प्रकृति अपने आपको संवार रही है, ऐसा लॉकडाउन हर वर्ष एक निश्चित दिनों के लिए होना चाहिए।

मैं उम्मीद करता हूं जब विश्व इस महामारी के दौर से बाहर निकलेगा तो उसके बाद नीति नियंता शायद ऐसा नियम बना ही दें कि हर साल एक निश्चित महीने में निश्चित दिन तक पूरी दुनिया में लॉकडाउन हो ताकि प्रकृति अपने आपको कुछ समय के लिए ही लेकिन संवार सके।

अगर हम पर्यावरण के प्रति अब भी नहीं सचेत हुए तो इसके परिणाम भयंकर हो सकते हैं फिर हम हर साल पर्यावरण दिवस, पृथ्वी दिवस कुछ भी मनाते रहें, कोई फर्क नहीं पड़ेगा और हम जंगल की आग, बाढ़ की विभीषिका, बेमौसम बरसात सब झेलते रहेंगे। काश हम अब संभल जाएं।

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